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योजनाओं के बावजूद भी कृषि विकास की रफ़्तार धीमी…

केंद्र सरकार द्वारा मत्स्य पालकों के लिए नीली क्रांति योजना की स्वीकृति प्रदान की गई है,जिससे कि सरकारी जलकर और निजी तालाब में मछली पालन कर ग्रामीण अपनी आमदनी बढ़ा सकें।जिला में मत्स्य पालन की अपार संभावनाएं हैं।इसके बावजूद भी किसान मछली पालन की दिशा में विशेष रुचि नही लेते हैं।हालांकि मछली पालन को लेकर कई नई योजनाएं आने वाली हैं लेकिन वर्ष 2016-17 में अब तक मत्स्य पालन के क्षेत्र में लक्ष्य हासिल नहीं हुआ है।यह जानकारी शुक्रवार को जिला मत्स्य पदाधिकारी विमल कुमार मिश्र ने दी।उन्होंने कहा कि मत्स्य पालन के लिए लोगों को बैंक के माध्यम से दिए जाने वाले ऋण में 50 फीसद का अनुदान दिए जाने का प्रावधान है।वहीं राज्य सरकार द्वारा 20 फीसद अतिरिक्त टॉप अप अनुदान के लिए प्रस्ताव कैबिनेट में भेजा गया है।इस कारण अब तक विभाग को राशि आवंटित नही हुई है।नई योजना के अंतर्गत नए तालाब निर्माण मद में प्रति हेक्टेयर सात लाख रुपये की इकाई लागत, आद्रभूमि के विकास मद में प्रति हेक्टेयर पांच लाख रुपये की इकाई लागत, नए तालाब व विकसित आद्रभूमि मद में प्रति हेक्टेयर 1.5 लाख रुपये की इकाई लागत, आद्रभूमि में अंगुलिकाओं का संचयन मद में प्रति हेक्टेयर 0.5 लाख रुपये इकाई लागत, जलाशय में मछली पालन मद में इकाई लागत तीन लाख रूपये, हैचरी निर्माण मद में प्रति हेक्टेयर इकाई लागत तीन लाख रुपये और फिश मीड मील अधिष्ठापन मद में प्रति हेक्टेयर इकाई लागत 10 लाख रुपये तय किए गए हैं।वहीं एससी-एसटी श्रेणी के मछली पालक किसानों को मछली बेचने के लिए 26 व्यक्तियों को मोपेड सह आइस बॉक्स,नौ व्यक्तियों को दुपहिया वाहन और चार व्यक्तियों को चौपहिया वाहन दिए जाएंगे। वर्तमान समय में जिला में सरकारी जलकर की संख्या 236 ,निजी तालाब की संख्या 286 और नदी किनारे वेट लैंड वाले क्षेत्र दो सौ हेक्टेयर हैं। राशि आवंटित होते ही योजनाओं के लिए आवेदन देने वाले लोगों को योजनाओं का लाभ उपलब्ध करवा दिया जाएगा।जिला का अधिकांश हिस्सा मैदानी क्षेत्र है।

यहां के सैकड़ों हेक्टेयर भूमि में घास लगे हैं।जिसके कारण यहां पशुपालन के लिए उपयुक्त माहौल है।खेतिहर किसान पशुपालन को पूरक व्यवसाय के रुप में अपना सकते हैं।इस दिशा में जिला गब्य विकास विभाग द्वारा किसानों को अनुदानित दर पर ऋण दिए जाते हैं। यह बातें शुक्रवार को जिला गब्य विकास पदाधिकारी अजरुन प्रसाद ने बताई। उन्होंने कहा कि वर्ष 2016-17 में 186 व्यक्तियों को अनुदानित दर पर पशुपालन के लिए ऋण दिए जाने हैं। लेकिन दिसंबर माह तक 22 व्यक्तियों को योजना का लाभ दिलाया गया है।शेष बचे 164 व्यक्तियों को फरवरी माह तक योजना का लाभ उपलब्ध करवा दिया जाएगा।इसके अंतर्गत दुधारू पशु यूनिट पर 1,41,000 रूपये, पांच दुधारू पशु यूनिट पर 3,52,500 रूपये, दस दुधारू पशु यूनिट पर 7,30,000 रुपये और बीस दुधारू पशु यूनिट पर 14,60,000 रूपये दिए जाने का प्रावधान है।अनुदान की राशि लाभुक किसानों को आरटीजीएस के माध्यम से बैंक खाता में भेजे जाएंगे।कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को अनुदानित दर पर आधुनिक कृषि यंत्र और खाद देने की व्यवस्था है।कृषि यंत्र के लिए समय-समय पर कृषि यांत्रिकरण मेला लगाया जाता है।यहां कृषि यंत्रों में लागत मूल्य पर 50 फीसद का अनुदान दिया जाता है।यह बातें शुक्रवार को जिला कृषि पदाधिकारी संत लाल साहा ने बताई।उन्होंने कहा कि खरीफ फसल के अंतर्गत श्री विधि धान उत्पादन में प्रत्यक्षण के लिए जिला से 2610 किसानों का चयन किया गया था। सुगंधित धान उत्पादन प्रत्यक्षण के लिए 428 किसान,तनावरोधी धान उत्पादन प्रत्यक्षण के लिए 318 किसान,जीरो टिलेज से धान की सीधी बुआई प्रत्यक्षण के लिए 602 किसान और पैडी ट्रांसप्लांटर मशीन से बुआई प्रत्यक्षण के लिए 517 किसानों का चयन किया गया।साथ ही गेहूं उत्पादन की दिशा में जीरो टिलेज मशीन से गेहूं उत्पादन प्रत्यक्षण के लिए 1887 किसानों का चयन किया गया।मुख्यमंत्री तीव्र विस्तार योजना के तहत 1542 किसानों को छह किग्रा० की दर से आधार बीज,1542 किसानों को 20 किग्रा० की दर से गेहूं बीज और 1542 किसानों को चार किग्राo की दर से मसूर बीज अनुदानित दर पर दिए गए।संतलाल साहा डीएओ किशनगंज ने बताया कि जिला में खाद बिक्री की दिशा में डीबीटी पायलट योजना लागू हो गया है।जिसके तहत खाद दुकानदारों को पीओएस मशीन उपलब्ध करवाया गया है।इस मशीन के तहत खाद दुकान में उपलब्ध खाद सहित खाद लेनेवाले व्यक्तियों के नाम दर्ज हो जाएंगे।प्रखंड के खाद दुकानों में अब तक 310 पीओएस मशीन लगाए जा चुके हैं।इससे खाद की कालाबाजारी पर निश्चित ही अंकुश लग जाएगा।गौर करे की फाइलों का निपटारा करते किशनगंज को जिला बनने के 27 वर्ष हो पूरे हो गए हैं।लेकिन आज भी जिला में खनन विभाग कार्यालय और भविष्य निधि कार्यालय नहीं खुले।वहीं एसपी कार्यालय और साई सेंटर को अपना भवन नही मिल पाया है।साथ ही जिला में वर्षो पुराना दो ही अंगीभूत महाविद्यालय हैं।विद्यार्थियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए यहां तीन अतिरिक्त अंगीभूत महाविद्यालयों की जरूरत महसूस की जा रही है।

रिपोर्ट-धर्मेन्द्र सिंह 

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