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*बढ़ रही है दहशत आवारा जानवरों की*

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना ::हिंदू समाज में गाय को माता के रूप में पूजा जाता है वहीं समाज में कुत्ता को वफादार जानवर माना जाता है, लेकिन शहरों में बाकी जानवरों के मुकाबले इनकी सबसे ज्यादा दहशत है।

पहले लोग कुत्तों की वफादारी के उदाहरण देते थे, वहीं आज वफादार जानवर हिंसक जानवर के रूप में उभर रहा है। हाल ही में पढ़ने को मिला था कि दो साल की बच्ची को कुत्ते ने नोच कर मार डाला, अपार्टमेंट के लिफ्ट में कुत्ते ने बच्चे को नोच खाया, ऐसे ही न जाने कितने मामले देखने-सुनने को मिल रहे है।

एक समय था कि गाय और सांड हिन्दू समाज में पूजनीय थे, वहीं आज हमारा समाज उसका बहिष्कार कर रहा है जिसका खामियां हमें ही भुगतना पड़ रहा है। क्योंकि अधिकतर सड़क दुर्घटनाएं इनके कारण हो रही है।

यह कहना गलत नहीं होगा कि इसमें कहीं न कहीं मानव का ही दोष है। वर्तमान समय में आवारा जानवरों को सड़क के जानवरों के रूप में परिभाषित किया जा रहा है, जो सड़क पर पैदा होते है और प्रजनन करते है और कभी भी स्वामित्व में नहीं रहते है, खोए हुए जानवर जो घर का रास्ता नहीं ढूँढ सकते है तथा सड़क पर ही विचरण करने लग जाते है, मालिक द्वारा परित्यक्त जानवर जो घर से निकाल दिये जाते है या सड़क पर छोड़ दिया जाता है। जबकि आवारा जानवर जंगली जानवर नहीं होते है।

सामान्य आबादी के लिए, पालतू स्वामित्व के कारणों और लाभों को, बेहतर ढंग से स्थापित करने के लिए, इसे व्यापक आधारित सर्वेक्षण प्रश्नावली के साथ जोड़ा जाना चाहिए। सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से आवारा पशुओं का मुद्दा आज के समय में बहुत बड़ी बहस का हिस्सा हो गया है। लेकिन इसके निवारण के लिए आज तक किसी संगठन एवं किसी सरकार ने कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया है।

देखा जाय तो कुत्ते एवं सांड जैसे आवारा जानवर शहरों के लिए एक प्रमुख मुद्दा बन गया है। समय की कमी के कारण लोग, अपने पालतू जानवरों को ठीक से देखभाल नहीं कर पा रहे है और पालतू जानवरों का परित्याग कर देते है। इस विषय पर किए गए अध्ययन के अनुसार, मुक्त घूमने वाले कुत्ते अधिक समस्या उत्पन्न करते है और यह समस्या पालतू जानवरों के मालिक के कारण ही होती है।

प्रायः देखा जाता है कि जानवर अक्सर यातायात को प्रभावित करता है, जिसके कारण अनावश्यक जाम लग जाती है और लोगों के समय की बर्बादी होती है। इतना ही नहीं बल्कि जानवरों के कारण ही अनेक सड़क दुर्घटनाएं भी होती है। स्थिति तो तब और खराब हो जाती है जब जानवर रात में स्वतंत्र रूप से सड़कों पर घूमते रहते है या बीच सड़क पर बैठ जाते है। कही कही सड़क पर अंधेरा रहने के कारण वाहन चालकों को जानवर को स्पॉट करना भी मुश्किल हो जाता है। सर्वे के अनुसार आवारा पशुओं के कारण प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में दुर्घटनाएं होती है और सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है और कई घायल हो जाते है।

इतना ही नहीं बल्कि कुत्ते को अत्यधिक भौंकने और काटने के कारण न केवल ध्वनि प्रदूषण बल्कि मानव समाज के लिए स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ भी पैदा हो गई है। कुत्ते का आक्रमण, चिकित्सा की समस्या, पालतू जानवरों की स्वामित्व द्वारा खुलेआम सड़कों पर घुमाना, जीवन शैली में बदलाव, सहित कई तरह की कठिनाइ उत्पन्न होता है।

जानवरों पर होने वाले खर्च और रखरखाव के कारण आवारा जानवरों को पालतू बनाने में लोग हिचकिचाते है।इसमें मालिकों के लिए वित्तीय मुद्दों, आवास की समस्याओं, परित्याग और पंजीकरण के लिए कानूनी कार्रवाई के कारण लोग जानवर पालने से घबराते है।

ऐसा भी देखा जा रहा है कि आवारा जानवर विशेष रूप से कुत्ता, गाय एवं सांड से अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनमें से अधिकांश पशु की प्रजनन क्षमता का नुकसान, बुढ़ापा, दूध उत्पादन की समाप्ति, खूँखारपन बर्दाश्त करने की असमर्थता, गाय अवैध या अपंजीकृत डेयरियों और मवेशियों के शेड के मालिकों द्वारा छोड़ दी जाती है। दूध न देने वाले मवेशियों को तथा छोटे बछड़ों को मालिक बाहर जाने देते है ताकि वे बाहर खुले में चर सकें। घर का चारा बच जाय।

शहरों की सड़कों पर घूमने वाले अधिकांश जानवर अस्वस्थ रहते है, जिससे मनुष्यों और जानवरों दोनों के लिए स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ रही है। वे घाँस या अन्य स्वच्छ खाद्य भोजन न खाकर सड़े गले एवं बचे हुए भोजन तथा कचरे से गुजारा कर रहे है।

जानवर सबसे खतरनाक खाद्य-जनित और जल जनित रोग के जनक होते है। जानवर आहार संचालन के संबंध में एंटीबायोटिक्स, पोषक तत्व (नाइट्रोजन और फास्फोरस), हार्मोन, तलछट, भारी धातु, कार्बनिक पदार्थ, अमोनिया और मीथेन सहित बहुत से रोगजनक एवं प्रदूषण पर्यावरण खाद्य श्रृंखला को नुकसान पहुंचाने और पर्यावरण को दूषित करने की क्षमता है। इसके कारण होने वाली बीमारियां न केवल अस्थायी स्वास्थ्य समस्या पैदा करती है बल्कि इससे मृत्यु भी होती है। इसे अगर जल्द से जल्द एक गंभीर समस्या के रूप में नहीं देखा गया तो यह समस्या एक विशाल संकट का रूप धारण कर लेगी।

आवारा कुत्तों के साथ हस्तक्षेप करने वाले व्यक्तियों या पशु कल्याण संगठनों की हर करवाई पर सावधानी से विचार करना चाहिए।
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