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भाग ४: कहाँ गए वो दिन?

लेखक:- बिहार प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक की कलम से

पुलीस अधीक्षक के तौर पर निवास स्थित कार्यालय में बैठा कुछ चुनाव सम्बन्धी काम कर रहा था। खिड़की दरवाज़ा खुले थे। तब ए.सी. (A.C.) का प्रचलन शुरू नही हुआ था। अचानक गाड़ियों का सिलसिला आवास में घुसते हुए देखा। लगा कि एक महत्वपूर्ण केबिनेट मंत्री का कारवां है। उस जिला से वह केबिनेट मंत्री चुनाव में प्रत्याशी बने थे। मैंने जल्द ही देख लिया कि गाड़ी में उनके साथ उनकी ही पार्टी के मेरे एक निकट के कुटुम्ब भी बैठे थे। उनकी मंशा भांपते हुए मैंने अपने रिश्तेदार को आवास के अंदर बैठा दिया और पत्नी से उन्हें नाश्ता करवाने का अनुरोध किया। मंत्री महोदय को मैंने कार्यालय में बैठाया। दोनो से एक साथ बात करना थोड़ा कठिन हो जाता।मंत्री महोदय ने बिना समय व्यतीत किए तुरंत अपने पॉकेट से एक लिस्ट निकाली और मेरी ओर बढ़ाया। सूची पुलीस पदाधिकारियों की थी, जिनके बारे में उनका अनुरोध था कि उन्हें उनके द्वारा दर्शाए गए बूथ पर भेजा जाए। उस लोक सभा चुनाव में, हमने पूरे राज्य में पहली बार उस जिले में ‘रैंडमाईज़ेशन’ (randomisation) की व्यवस्था लगायी थी। अब यह व्यवस्था प्रचलित हो गयी है। इस व्यवस्था में, कम्प्यूटर ही यह निर्णय लेता है कि किस अधिकारी को किस बूथ पर ड्युटी मिलेगी। बिना किसी व्यक्ति के हस्तक्षेप के। कुछ कुछ भाग्य के पहिया के जैसा सॉफ़्ट्वेर रहता है कम्प्यूटर में और वह उस पहिया को चलाकर पदाधिकारियों को अपना अपना बूथ दे देता है। मैंने मंत्री महोदय को बताया कि जो प्रक्रिया मैंने अपनाई है, उसमें SP साहब चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते हैं। आश्चर्य से मेरी ओर देखते हुए उन्होंने कहा, “तो कौन कहाँ जाएगा, ये निर्णय कंप्यूटर साहब ही करेंगे?” उत्तर में मैंने केवल “जी” कहा। एक बार अंत में मानो आश्वस्त होने के लिए उन्होंने पूछा, “मैं मान लूँ न कि यह छोटा सा काम भी आपसे नहीं होगा?” मैंने हाथ जोड़कर कहा “नही”। वह तपाक से कुर्सी से उठे और निकलने लगे। मैंने भी अंदर जाकर अपने रिश्तेदार को सूचित किया। दोनों गाड़ी में बैठे। मैंने काफ़ी झुक कर मंत्री महोदय को प्रणाम किया और चुनाव की तैयारी में लग गया। कारवां मेरे आवास से निकला। लोक सभा के उस चुनाव में, उस क्षेत्र से मंत्री महोदय हार गए और उस समय के एक युवा नेता चुनाव जीत गए। आगे चलकर, यह जीत वह युवा नेता के लिए बहुत शुभ साबित हुआ, क्योंकि उन्होंने राज्य एवं केन्द्र में लंबी और अत्यंत सफल पारी खेली।मेरे और DM साहब के साथ वही हुआ जो सामान्यतः ऐसे पदाधिकारियों के साथ होता है। अगले दिन, एक साथ हम दोनों का तबादला। दोनों का बोरिया बिस्तर बँधा था। दोनों अविलंब निकल गए। कैबिनेट मंत्री जी ने क्या आभास किया होगा, इसका अंदाज़ा नहीं है।

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