किशनगंज : बाल हृदय योजना कार्यक्रम बच्चो के लिए वरदान : जिलाधिकारी
जिले के दिल की बीमारी से ग्रसित बच्चों की धड़कनों को ताकत दे रही है बाल हृदय योजना, से जिले के दो बच्चों को मिला नया जीवन, अब पूरी करेगा अपनी पढ़ाई

योजना के तहत इलाज के साथ-साथ आवागमन का भी खर्च उठाती है सरकारकिशनगंज 20 जून (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, परिवार की खुशियां बच्चों से ही होती है। अक्सर माता पिता बच्चों की खुशी के लिए अपने सामर्थ्य से अधिक कर गुजरते हैं। लेकिन, जब बच्चों पर मुसीबत होती है या उनको कोई गंभीर बीमारी होती, तब उनकी नींद उड़ जाती है। ऐसा ही हाल जिले के कोचाधामन प्रखंड के निवासी 13 वर्षीय दिलनवाज आलम एवं 11 वर्षीय रियाज आलम का हुआ था। जब उनके अभिभावक को पता चला कि उनके बेटे के दिल में छेद है। जिसके कारण वो अक्सर बीमार रहता था। दिल की बीमारी की खबर को सुनकर उनके परिवार के सदस्यों की नींद ही उड़ गई। मध्यम परिवार से होने के कारण इस गंभीर बीमारी का वो अब तक इलाज नहीं करा पाए थे। लेकिन उन्हें बाल हृदय योजना की जानकारी मिली, तब उन्होंने अपने बेटे का इलाज कराने की ठानी।
बीमारी के कारण छूट गई थी बच्चों की पढ़ाई :
दोनों बच्चे के अभिभावक (मो. कमल एवं मुनाजिर आलम) बताते हैं उनके बेटे बचपन से ही बीमार रहता था। सर्दी, खांसी, निमोनिया, बुखार आदि से हमेशा ग्रसित रहता था। कई वर्षो से पटना समेत कई संस्थानों में इलाज के बाद भी बीमारी पकड़ में नहीं आ रही थी। तब चिकित्सकों ने उन्हें इको कराने की सलाह दी। जिसके बाद रिपोर्ट में दिल में छेद होने की बात सामने आई। इस बीच उसकी पढ़ाई भी छूट गई। वहीं, परिजन लगातार चिंतित रहने लगे। लेकिन, जब राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य योजना (आरबीएसके) की टीम ने उनसे संपर्क कर उन्हें दिल की बीमारी से जुड़े इलाज के संबंध में जानकारी दी, तो उनको उम्मीद की किरण दिखी और वे दोनों बच्चे इलाज के लिए मान गए।
ऑपरेशन के बाद बच्चो का बढ़ा आत्मबल :
दोनों बच्चे के अभिभावक बताते हैं की ‘दिल में छेद का ऑपरेशन मई माह में ही हुआ है। ऑपरेशन कराकर लौटने के बाद अब मेरा आत्मबल भी बढ़ा है। इस बीमारी के कारण परिजन काफी दिनों से चिंतित रहने लगे थे। लेकिन, अब हालात सुधरने लगे हैं। वही बच्चे दिलनवाज आलम एवं रियाज आलम ने बताया की साथ पढ़ने वाले बच्चे अब सीनियर हो गए हैं। लेकिन, फिर से नया जीवन मिलने के बाद, अब मैं फिर से अपनी पढाई पूरी करूंगा और परिवार का नाम रौशन करूंगा।
जिलाधिकारी तुषार सिंगला ने बच्चो को अपनी शुभकामनाये देते हुए कहा की जिले में दिल की बीमारी से ग्रसित बच्चों के माता पिता को अब चिंता करने की जरूरत नहीं है। उनके बच्चे के दिल की बीमारियों का इलाज अब राज्य सरकार के द्वारा नि:शुल्क कराया जा रहा है। जिसके लिए राज्य सरकार बाल हृदय योजना का संचालन कर रही है। राज्य सरकार के कार्यक्रम (2020-2025) के अन्तर्गत आत्मनिर्भर बिहार के सात निश्चय-2 में शामिल ‘सबके लिए अतिरिक्त स्वास्थ्य सुविधा’ अन्तर्गत हृदय में छेद के साथ जन्में बच्चों के निःशुल्क उपचार की व्यवस्था हेतु स्वीकृत नई योजना ‘बाल हृदय योजना’ कार्यक्रम के तहत यह सुविधा प्रदान की जा रही है। जिसके माध्यम से जिले में अब तक आधा दर्जन से अधिक बच्चों के दिल की धड़कनों को ताकत मिली है।
छह वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए विशेष प्रावधान :
सिविल सर्जन डा. राजेश कुमार ने बताया की बच्चों में होने वाले जन्मजात रोगों में हृदय में छेद होना एक गंभीर समस्या है। एक अध्ययन के अनुसार जन्म लेने वाले 1000 बच्चों में से 9 बच्चे जन्मजात हृदय रोग से ग्रसित होते हैं, जिनमें से लगभग 25 प्रतिशत नवजात बच्चों को बीमारी के पहले साल में ही शल्य क्रिया की आवश्यकता रहती है। राज्य सरकार 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चे के साथ मां के अतिरिक्त एक और परिजन के खर्च भी उठाती है। राज्य के बाहर के चिह्नित चैरिटेबल ट्रस्ट अस्पताल/निजी अस्पताल में चिकित्सा के लिए आने जाने के लिए परिवहन भाड़े के रूप में बाल हृदय रोगी के लिये 5,000 रुपये है। वहीं, अटेंडेंट के लिए अधिकतम धन राशि भी 5,000 हजार रुपये से बढ़ाकर 10,000 रुपये कर दी गई है। उनके साथ एक समन्वयक भी रहते हैं, जो इलाज के बाद बच्चों के साथ ही वापस आते हैं।
बच्चों को इलाज के लिए भेजा जाता है अहमदाबाद :
आरबीएसके डीआईसी प्रबंधक सह जिला समन्वयक पंकज कुमार शर्मा ने बताया, योजना के तहत दिल में बीमारी वाले बच्चों को गुजरात के अहमदाबाद के सत्य साईं अस्पताल में भेजा जाता है। जिससे सरकार ने एग्रीमेंट किया है। जिले से बच्चों को इलाज के लिए वहां भेजा जाता है और वहां मुफ्त में इलाज करवाया जाता है। इस योजना के कार्यावयन की जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग को दी गई है। जिसमें आरबीएसके की टीम पूरी तरह से सहयोग में लगी हुई है। उन्होंने कहा, इस योजना से गरीब व मध्यम परिवार को काफी सबल मिला है। दिल की बीमारी से ग्रसित बच्चों के माता-पिता का मानना है कि उनकी आर्थिक स्थिति उन्हें अपने बच्चे के इलाज के लिए दूसरे राज्य में जाने की अनुमति नहीं देती है। ऐसे में, बिहार सरकार की यह योजना उनके लिए वरदान साबित हुई है।