खेलो इंडिया बेशक एक लॉन्च पैड, लेकिन पुरुष जिम्नास्टों को आगे बढ़ने के लिए आंतरिक इच्छाशक्ति की जरूरत: राष्ट्रमंडल खेल 2010 के दोहरे पदक विजेता आशीष कुमार

त्रिलोकी नाथ प्रसाद-राष्ट्रमंडल खेल 2010 के दोहरे पदक विजेता आशीष कुमार, साई प्रतिभा पहचान एवं विकास समिति के सदस्य के रूप में कार्यरत हैं-
नई दिल्ली, 14 मई: राष्ट्रमंडल खेल 2010 में रजत और कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचने वाले जिम्नास्ट आशीष कुमार ने पुरुष जिम्नास्टों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन करने की अपनी आंतरिक इच्छाशक्ति को जगाने का आग्रह किया है।
34 वर्षीय आशीष कुमार 2010 एशियाई खेलों में भी पदक जीत चुके हैं। मौजूदा समय में वह भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) की प्रतिभा पहचान एवं विकास समिति (टीआईडीसी) के सदस्य के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2025 बिहार में जिम्नास्टिक प्रतियोगिता के दौरान आशीष कुमार ने कहा कि इस आयोजन ने एथलीटों को बेहतरीन अवसर प्रदान किए हैं। उन्होंने कहा, ” अब खिलाड़ियों, कोचों और फेडरेशन पर इस सफलता का लाभ उठाने और इसे आगे ले जाने की जिम्मेदारी है। उन्हें अगले स्तर का प्रदर्शन सुनिश्चित करना होगा।”
खेलो इंडिया योजना ने शुरुआती किशोरावस्था में जिम्नास्टों के लिए नए दरवाजे खोले हैं, जिनमें से कई उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रयागराज के रहने वाले आशीष कुमार ने कहा कि इन जिम्नास्टों को और अधिक इच्छा के साथ अगले स्तर पर प्रदर्शन करना होगा।
2010 के एशियाई खेलों के पदक विजेता ने कहा, ” हां, हम एथलीटों से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन असली काम अब शुरू होता है- उचित विकास सुनिश्चित करना होगा, खासकर लड़कों के बीच.”
टीआईडीसी, जिसका आशीष हिस्सा हैं, उन प्रतिभाशाली एथलीटों की पहचान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जिन्हें खेलो इंडिया एथलीट (केआईए) के रूप में शामिल किया जा सकता है और राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्रों (एनसीओई) में प्रशिक्षित किया जा सकता है। उनका मानना है कि सब-जूनियर कैटेगरी में ट्रेनिंग के स्तर में व्यापक बदलाव होना चाहिए, खासकर 14 साल से कम उम्र के जिम्नास्टों के लिए।
आशीष कुमार ने कहा, ” उस उम्र में शरीर जल्दी ठीक हो जाता है। इसलिए, शुरुआती सालों से ही हमें उचित शक्ति और कंडीशनिंग शेड्यूल के साथ उनकी लोडिंग क्षमता बढ़ाने पर जोर देना होगा। अगर हम शुरुआत में ही चीजों को हल्का रखेंगे, तो 25 साल की उम्र तक उनका शरीर वर्कलोड को संभालने में सक्षम नहीं होगा।”
विदेशी कोच व्लादिमीर चेर्टकोव के तहत ट्रेनिंग के अपने दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा, ” जब हम 2010 में कॉमनवेल्थ कैंप में थे, तो कोच व्लादिमीर ने हमें अपनी लिमिट से आगे बढ़ने के लिए कहा। उन्होंने हमें सिखाया कि बार-बार तनाव को झेलने में सक्षम शरीर का होना कितना महत्वपूर्ण है। जैसे किसी परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए आप 20-30 बार याद करते हैं। जिमनास्टिक में भी यही होता है- आप तब तक अपनी शारीरिक गतिविधियों को दोहराते हैं जब तक कि आपका शरीर उन्हें अपना न ले।”
आशीष कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि पुरुष जिम्नास्टों को आगे बढ़ने के लिए एक बेहतर रोडमैप की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, ” पुरुष जिम्नास्टिक में सुधार की जरूरत है। हमने हाल ही में महिलाओं के बीच सफलता देखी है, लेकिन पुरुषों को अभी लंबा रास्ता तय करना है। यहीं पर खेलो इंडिया सबसे बड़ा प्रभाव डाल सकता है- क्षमतावान लड़कों की पहचान करके और उन्हें लंबे समय के लिए तैयार कर सकते हैं।”
उन्होंने आगे कहा, ” हालांकि, जोश भीतर से आना चाहिए। आप खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएं और उपकरण दे सकते हैं, लेकिन अगर उनके अंदर कुछ बड़ा हासिल करने की जोश नहीं है- जैसे कि अंतरराष्ट्रीय पदक जीतना- तो कुछ भी काम नहीं करता। कई लोग राष्ट्रीय स्तर पर ही पदक जीतने के बाद ही संतुष्ट हो जाते हैं। इस मानसिकता को बदलना होगा।”
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