ब्रेकिंग न्यूज़राज्य

पद्मश्री के लिए चयनित कपिलदेव प्रसाद ; मिला 52 बूटी कला को सम्मान ।।…

त्रिलोकी नाथ प्रसाद:-नालंदा जिला मुख्यालय बिहार शरीफ से तीन किलोमीटर पूरब उत्तर स्थित एक छोटा सा टोला है बसवन बिगहा है जो आज चर्चे में है। चर्चे में इसलिए कि 26 जनवरी के पहले गुमनामी की जिंदगी जी रहे 52 बूटी हस्तकला कला के बुनकर शिल्पकार कपिलदेव प्रसाद अचानक चर्चा में आ गए हैं। 74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्वारा देश के सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री देने की घोषणा की गई। इसमें देशभर के कई हस्तियों के नाम शामिल हैं। उन्हीं नामों में एक नाम नालंदा से भी जुड़ा है, वह है कपिलदेव प्रसाद का। जो पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित होने वाले नालंदा के पहले शख्स बन गए हैं।
लगभग 70 साल की उम्र में टेक्सटाइल के क्षेत्र में उन्हें पद्मश्री सम्मान देने की घोषणा की गई है। कपिलदेव प्रसाद करीब छह दशक से बुनकरी से जुड़े हैं। उनके दादा शनिचर तांती ने इसकी शुरुआत की थी। फिर पिता हरि तांती ने इस हुनर को आगे बढ़ाया। जब वे 15 साल के थे, तब बुनकरी को रोजगार बनाया। अब उनका बेटा सूर्यदेव सहयोग करता है,बल्कि पूरा परिवार इसमें लगा है।
पद्मश्री सम्मान की घोषणा के बाद कपिलदेव प्रसाद ने पीआईबी से कहा कि यह सम्मान पाकर वह काफी खुश हैं। यह सम्मान सिर्फ उनका नहीं, बल्कि हर बुनकर और जो हस्तकरघा व्यवसाय से जुड़े हैं उन सब का है। उन्होंने कहा कि इस सम्मान के साथ नालंदा की पहचान जुड़ी है। इस सम्मान से मुझे उम्मीद जगी कि इसे जल्द ही जीआई टैग मिलेगा। इसके लिए आवेदन भी किया गया है, जिससे हस्तकरघा को और बढ़ावा मिलेगा। साथ ही रोजगार के अवसर खुलेंगे तथा आर्थिक विकास के रास्ते भी खुलेंगे।

कपिलदेव प्रसाद बताते हैं कि 60 के दशक में बिहारशरीफ स्थित नवरत्न महल में सरकारी बुनकर स्कूल खुला था। जहां नियमित पढ़ाई जारी रखते हुए बच्चे बुनकरी सीखते थे। 1963 से 65 तक यहीं बुनकरी सीखी। कपिलदेव प्रसाद का जन्म 1954 में हुआ है। हस्तकरघा उनका खानदानी पेशा रहा है। वे बताते हैं कि उनके दादा भी हस्तकरघा के जरिए बावन बूटी साड़ी बनाते थे और बाद में पिता ने भी यही धंधा अपनाया था। पिछले 60 वर्षों से वे लगातार हस्तकरघा से जुड़े रहे और अब इस कार्य में उनका एकलौता पुत्र भी हाथ बंटाता है।
बिहार की वस्त्र शिल्प परम्परा में बावन बूटी का प्रमुख स्थान है। इसका केन्द्र नालन्दा जिले का बसवन विगहा गाँव है। यहाँ निर्मित होने वाले वस्त्रों पर बौद्ध धर्म से जुड़े प्रतीकों यथा महाबोधि मंदिर, नालन्दा विश्वविद्यालय, स्तूप इत्यादि इस्तेमाल किया जाता है। ‘बावन बूटी’ कला की चर्चा करते हुए कपिलदेव प्रसाद बताते हैं कि यह प्राचीन कला है जिसके मुख्य शिप्लकार-डिजाइनर थे उपेंद्र महारथी। टेक्सटाइल डिजाइन जैसी विद्या में भी इन्होंने नवीनतम प्रयोगों को बढ़ावा दिया है। महारथी ने बावन बूटी शिल्प को राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विलुप्त हो चुकी इस कला के लिए नए-नए डिजाइन सृजित कर उन्होंने इसे एक नया आयाम दिया। इसमें कमल का फूल, बोधि वृक्ष, बैल, त्रिशूल, सुनहरी मछली, धर्म का पहिया, खजाना, फूलदान, पारसोल और शंख आदि चिह्न मिल जाएंगे। ये सभी बौद्ध धर्म के प्रतीक होते हैं। इस कला से सजी साड़ियां, चादर, शॉल, पर्दे आदि आपको बाजार में मिल जाएंगे। इनकी लोकप्रियता भारत के अलावा जर्मनी, अमेरिका और ऑस्ट्रे लिया तक फैली हुई है। इसके अलावा बौद्ध धर्म मानने वाले देशों में भी आपको इस कला के नमूने मिल जाएंगे। श्री प्रसाद बताते हैं कि वर्षों से इस कला पर काम करने वाले कारिगरों को कभी भी न तो राज्य स्तोर पर बहुत सराहना मिली न विश्वेस्त र पर। मगर देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने बावन बूटी से बने परदों को राष्ट्रपति भवन में जब लगवाया तो लोगों को इस कला के बारे में परिचय मिला।
हस्तकला की बावन बूटी साड़ी का इतिहास बौद्ध काल से जुड़ा रहा है। श्री प्रसाद बताते हैं कि तसर और कॉटन के कपड़ों को हाथ से तैयार कर इसमें बावन बूटी की डिजाइन की जाती है।मशीन का प्रयोग नहीं होता है। यह बावन बूटी बौद्ध धर्म से जुड़ा है। कहा तो यह भी जाता है कि बावन बूटी साड़ी में बौद्ध धर्म की कला को उकेरा जाता है। इसे 52 बूटी साड़ी इसलिए कहा जाता है क्यों कि पूरी साड़ी में एक जैसी 52 बूटियां यानि मौटिफ होते हैं। बावन बूटी के माध्य‍म से छह गज की साड़ी में बौद्ध धर्म की कलाकृतियों को उकेरा जाता है, जो ब्रह्मांड की सुंदरता का वर्णन करती हैं। बौद्ध र्धम में आठ चिन्ह होते हैं। बावन बूटी हस्तंकला में इन्हींद चिन्होंत का प्रयोग किया गया है। यह बूटिया काफी महीन होती हैं। साड़ी के अलावे अंगवस्त, चादर, कुर्ता आदि के कपड़े पर बावन बूटी कला के छाप पड़ते ही कीमत तो बढ़ जाती ही है साथ ही कपडे का स्वरूप भी अति सुन्दर हो जाता है।
52 बूटी कला के शिल्पकर व बुनकर कपिलदेव प्रसाद का पद्मश्री के लिए चयन से जो सम्मान इस कला को मिला है उम्मीद है यह और मजबूत होगा और लोग इसके पार्टी आकर्षित होंगे।

—-

Related Articles

Back to top button