निर्जीव।…

पटना डेस्क:-जब कहा जाता हैं कि कण कण में, ईश्वर का वास
होता हैं, तो कोई भी कण निर्जीव कैसे हो सकता
हैं ? अगर हम इस भाव के साथ, अपना व प्रकृति का
विकास करें, तभी वास्तविक विकास हो पाएगा,
अन्यथा विनाश ही होगा। सबकुछ सजीव ही हैं, बस
सबका बाहरी स्वरूप ही अलग अलग हैं, अंदर
आत्मा तो एक समान ही स्वरूप वाली हैं। इस बात
को जानते हुए भी हम पर्वतों, पेडों व अन्य प्राकृतिक
संसाधनों का, इस प्रकार उपयोग करते हैं कि उनमें
प्राण ही नहीं हैं, जिसका दुष्परिणाम हमारें सामने हैं।
इस संसार के सभी कणों में लिंग, वर्णव्यवस्था जैसे
नियम समान रूप से लागू होते हैं। दृश्य हो या
अदृश्य हो जैसे मौसम, हवा, धूप, रात आदि यह सब
भी जीवित इकाइयां हैं, स्वरूप अलग होने से हम
इस बात को जान नहीं पाते और अपने हाथों ही
अपना विनाश कर बैठते हैं। विजय सत्य की ही