ज्योतिष/धर्म

भगवान परशुराम से जोड़कर देखते हैं तो वहीं कुछ लोग टांगीनाथ धाम मे गड़े फरसे को भगवान शिव का त्रिशुल बताते है,और कुछ लोग भगवान परसुराम का फरसा…..

रिपोर्ट:-धर्मेन्द्र सिंह

भारत चमत्कारों से भरा हुआ देश है यहां हर जगह आपको कुछ ना कुछ इतिहास से जुड़ी चमत्कारिक चीजें दिखाई दे ही जाती हैं। संस्कृति से भरे हुए इस देश में बहुत सी ऐसी घटनाऐं भी सामने आती रहती हैं जिसका पुराणों में उल्लेख है।आज हम आपको एक ऐसे धाम से रूबरू कराने वालें हैं जो भारत के झारखंड राज्य में स्थित है और यहां आज भी भगवान परशुराम का फरसा रखा है जिसके बारे में पुराणों में लिखा हैं कि उस फरसे से उन्होंने 21 बार पृथ्वी से सारे क्षत्रियों का नाश किया था।झारखंड राज्य मे गुमला शहर से करीब 75 km दूर तथा रांची से करीब 150km दूर घने जंगलों के बीच स्थित है टांगीनाथ नामक एक धाम।यहाँ आने के बाद आप आज भी भगवान परशुराम का फरसा ज़मीं मे गड़ा हुआ देख सकतें हैं।आपको बता दें कि झारखंड में फरसा को टांगी कहा जाता है,इसलिए इस स्थान का नाम टांगीनाथ धाम पड़ गया।धाम में आज भी भगवान परशुराम के पद चिह्न मौजूद हैं ।पुराणों में लिखे एक उल्लेख के अनुसार भगवान परशुराम ने इसी जगह अपनी एक गलती को सुधारने के लिए पश्चाताप किया था ।कहा जाता है कि टांगीनाथ धाम मे भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम ने तपस्या कि थी।परशुराम के टांगीनाथ पहुँचने के पीछे भी एक कथा है कि जब राम, राजा जनक द्वारा सीता के लिये आयोजित स्वयंवर मे भगवान शिव का धनुष तोड़ देते है तो परशुराम बहुत क्रोधित होते हुए वहा पहुँचते है और श्रीराम को शिवजी  का धनुष तोड़ने के लिए भला–बुरा कहते हुए उनकी आलोचना करते हैं ।परशुराम की सारी आलोचनाओं के बाद भी राम मौन रहते है,जिसे देखकर लक्ष्मण को क्रोध आ जाता है और वो परशुराम से बहस करने लग जाते हैं।इसी बहस के दौरान जब परशुराम को यह ज्ञात होता है कि राम भी भगवान विष्णु के ही अवतार है तो वो बहुत लज्जित होते है और वहाँ से निकलकर पश्चाताप करने के लिये घने जंगलों के बीच आ जाते है।घने जंगलों के बीच वे शिवलिंग की स्थापना करके और अपने बगल मे ही अपना फरसा गाड़ कर तपस्या करते है।इसी जगह को आज सभी टांगीनाथ धाम से जानते हैं।यहाँ पर गड़े लोहे के फरसे की जहां एक अद्भुत विशेषता यह है कि हज़ारों सालों से खुले मे रहने के बावजूद इस फरसे पर ज़ंग नही लगी है तो वहीं दूसरी विशेषता यह है कि ये जमीन मे कितना नीचे तक गड़ा है इसकी भी कोई जानकारी अब तक नही लग पाई है।हालांकि एक अनुमान 17 फ़ीट का बताया जाता है ।

जब एक लोहार ने लोहा प्राप्त करने के लिए फरसे को काटने का प्रयास किया तो हो गई पूरी लोहार जाति की रहस्यमयी मौत 

कहा जाता है कि एक बार क्षेत्र मे रहने वाली लोहार जाति के कुछ लोगो ने लोहा प्राप्त करने के लिए फरसे को काटने का प्रयास भी किया था।वो लोग फरसे को तो नही काट पाये लेकिन उनकी पूरी जाति के लोगो को इस दुस्साहस की भारी कीमत चुकानी पड़ी और जिसके परिणामस्वरूप उन लोगों की अपने आप अचानक मौत होने लगी। इसी डर के चलते पूरी लोहार जाति ने वो क्षेत्र छोड़ दिया और आज भी धाम से 15 km के दायरे  में लोहार जाति के लोग नही बसते है ।जहां कुछ लोग इस फरसे को भगवान परशुराम से जोड़कर देखते हैं तो वहीं कुछ लोग टांगीनाथ धाम मे गड़े फरसे को भगवान शिव का त्रिशुल बताते हुए इसका सम्बन्ध शिवजी से भी जोड़ते है।

भगवान शिव से जोड़ते हुए लोग पुराणों की एक कथा का भी उल्लेख करते है जिसके अनुसार एक बार भगवान शिव किसी बात से शनि देव पर क्रोधित हो जाते है और गुस्से में वो अपने त्रिशूल से शनि देव पर प्रहार कर देते हैं।शनि देव त्रिशूल के प्रहार से किसी तरह अपने आप को बचा लेते है लेकिन शिवजी का फेका हुआ त्रिशुल एक पर्वत की चोटी पर जाकर धस जाता है,वह धसा हुआ त्रिशुल आज भी यथावत वही पडा है।क्योंकि टांगीनाथ धाम मे गड़े हुए फरसे की ऊपरी आकृति कुछ-कुछ त्रिशूल से मिलती है इसलिए लोग इसे शिव जी का त्रिशुल भी मानते है।पुरातत्व विभाग द्वारा टांगीनाथ धाम में जब कुछ साल पहले खुदाई की गई थी तो वहां से जो कुछ निकला उसने लोगों के होश उड़ा दिए ।

यह सब चीज़े आज भी डुमरी थाना के मालखाना में रखी हुई है ।

टांगीनाथ धाम में हुई थी खुदाई, निकले थे प्राचीन सोने और चांदी के बहुमूल्य आभूषण

आपको बता दें कि 1989 में पुरातत्व विभाग ने टांगीनाथ धाम मे खुदाई की थी,खुदाई में उन्हें सोने चांदी के आभूषण सहित अनेक मूल्यवान वस्तुए मिली थी,लेकिन कुछ कारणों से यहां पर खुदाई बन्दकर दी गई और फिर कभी यहां पर खुदाई नही की गई ।खुदाई में हीरा जडि़त मुकुट,चांदी का अर्धगोलाकार सिक्का,सोने का कड़ा,कान की सोने की बाली,तांबे की बनी टिफिन जिसमें काला तिल व चावल रखा था,आदि चीजें मिलीं थीं । यह सब चीज़े आज भी डुमरी थाना के मालखाना में रखी हुई है ।

 

टांगीनाथ धाम के विशाल क्षेत्र मे फैले हुए अनगिनत अवशेष यह बताने के लिए पर्याप्त है कि यह क्षेत्र किसी जमाने मे हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल रहा होगा लेकिन किसी अज्ञात कारणों से यह क्षेत्र खंडहर मे तब्दील हो गया और भक्तों का यहां पहुचना कम हो गया।नक्सलवाद के चलते और ऊपर से सरकार के लचर रवैये ने भी इस धाम को कोई महत्व नहीं दिया जिस कारण लोगों को इसके बारें में पता ही नहीं चला है।हो सकता है कि सरकार शायद इस पर कुछ काम करे और इसे दुबारा सही से खोला जाये…..।।।।।

धर्मेन्द्र सिंह 

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