किशनगंज : गर्भवती माता के लिए नौ माह में चार बार प्रसवपूर्व जांच जरूरी: डॉ शबनम यास्मिन

उच्च जोखिम वाले प्रसव का पता लगाने में मिलती है मदद, जिला में 25 प्रतिशत गर्भवती की होती है चार बार एएनसी, प्रसव पूर्व जांच को बढ़ाने के लिए आशा कर रही जागरूक।
किशनगंज/धर्मेन्द्र सिंह, मां बनना एक स्त्री के लिए उसके जीवन का सबसे सुखद अहसास है।गर्भधारण के साथ ही गर्भवती का भ्रूण के साथ भावनात्मक संबंध बन जाता है। गर्भावस्था जहां खुशी का पल होता है वहीं इस दौरान जच्चा बच्चा की उचित देखभाल बहुत ही आवश्यक होती है। ऐसे में गर्भवती महिलाओं की समय समय पर प्रसव पूर्व जांच जरूरी है। प्रसव पूर्व जांच जच्चा बच्चा के सही स्वास्थ्य को सुनिश्चित करता है। जिससे गर्भावस्था संबंधी जोखिम और जटिलताओं से बचाव में मदद मिलती है। प्रसव पूर्व जांच से उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था की पहचान कर उसका सही इलाज किया जाता है। प्रसव पूर्व जांच को एंटी नेटल केयर या एएनसी भी कहते हैं। गर्भावस्था के दौरान मां को होने वाली गंभीर बीमारी का पता लगा कर समय रहते भ्रूण को उस बीमारी से बचाव किया जा सकता है। प्रसव पूर्व जांच के दौरान गर्भवती में कुपोषण का पता चल पाता है। जिसके बाद उन्हें पोषक आहार संंबंधी परामर्श दिया जाता है। गुरुवार को सदर अस्पताल की महिला चिकित्सा पदाधिकारी सह गाइनोकोलॉजिस्ट डॉ शबनम यास्मिन ने बताया कि नियमित प्रसव पूर्व जांच कराने वाली महिलाओं के बच्चे स्वस्थ्य होते हैं। यह मातृ शिशु की मृत्यु के जोखिम को भी कम करता है। गर्भवती माता को प्रसव काल के नौ माह में चार बार प्रसवपूर्व जांच की जाती है। इनमें प्रथम जांच 12 सप्ताह के भीतर या गर्भावस्था का पता चलने के साथ होती है। दूसरी जांच 14 से 26 सप्ताह, तीसरी जांच 28 से 34 सप्ताह तथा चौथी जांच 36 सप्ताह से प्रसव के समय तक के बीच होती है।
प्रसव पूर्व जांच में बीपी, हीमोग्लोबिन, वजन, लंबाई, पेशाब में शक्कर व प्रोटीन जांच सहित एचआईवी व अन्य प्रकार की आवश्यक जांच शामिल हैं। इन सब जांच के साथ ही गर्भवती महिलाओं को टेटनस का इंजेक्शन, आयरन व फॉलिक एसिड की टैबलेट दिये जाते हैं। यदि महिला में खून की कमी होती है तो पोषण संबंधी सलाह व दवाई आदि दी जाती है। हाल में जारी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे—5 की रिपोर्ट के मुताबिक 25 प्रतिशत महिलाओं की उनकी गर्भावस्था के दौरान चार बार पूरी तरह प्रसवपूर्व जांच हुई। वहीं नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे—4 की रिपोर्ट के मुताबिक यह 12 फीसदी था। पांच सालों में चार बार होने वाली प्रसवपूर्व जांच में दो गुना इजाफा हुआ है। एनएफएचएस—5 के मुताबिक गर्भधारण की पहली तिमाही में होने वाली प्रसवपूर्व जांच का प्रतिशत 63.2 है। जबकि एनएफएचएस—4 में यह 33 प्रतिशत ही था। जिला में स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रसवपूर्व जांच की संख्या को लगातार बढ़ाने की कोशिश जारी है। आशा व आंगनबाड़ी सेविकाओं की मदद से लगातार इसके लिए जागरूकता लायी गयी है। जरूरत इस बात की है कि यह प्रतिशत और अधिक बढ़े ताकि अधिक से अधिक प्रसवपूर्व जांच कर मातृ शिशु मृत्यु की संख्या को कम किया जा सके।