कल होने वाले जीवित्पुत्रिका व्रत
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*कल होने वाले जीवित्पुत्रिका व्रत का नहाय खाय आज, और कल रविवार को सूर्योदय से पूरा दिन पूरी रात के व्रत के बाद रात्रि शेष 4 से 5 बजे भोर तक व्रत करने के बाद ओरी टिक के जल से और सूर्योदय के बाद 5:55 के बाद अन्न से व्रत पारण:-*
*आज शनिवार को नहाय खाय के साथ कल रविवार को जिवितपुत्रिका व्रत किया जाएगा। सनातन धर्म में इस व्रत का खास महत्व है। वंश वृद्धि व संतान की लंबी आयु के लिए महिलाएं जिउतिया का निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन माताएं अपनी सन्तानों की सुरक्षा व स्वास्थ्य के लिये पूरे दिन तथा पूरी रात 24 घंटे तक निर्जला उपवास करती हैं।*
*यह व्रत आश्विन माह की कृष्ण पक्ष के उदया अष्टमी तिथि को किया जाता है। अतः इस व्रत में अष्टमी कब से सुरु है इसका कोई मतलब नहीं होता, चाहे अष्टमी कभी सुरु हो लेकिन इस व्रत में सिर्फ सूर्योदय से सूर्योदय तक का व्रत मान्य है। इस व्रत अष्टमी में सूर्योदय से आरंभ कर अगले सूर्योदय तक व्रत करने का महत्व है।
*जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा विधि:-*
*इस में व्रत से एक दिन पहले सर्वप्रथम नहाय खाय फिर अगले दिन सूर्योदय से सूर्योदय तक व्रत और फिर अगले दिन ओरी टिक के व्रत का पारणा करने का विधान है।*
*जिउतिया व्रत का नहाय खाय :-*
इस दिन जीवित्पुत्रिका व्रत का पहला दिन कहलाता है, इस दिन से व्रत शुरू होता हैं। इस दिन महिलायें नहाने के बाद अपने मातृ पूर्वजों को झिंगुनी के पत्ता पर खरी तेल अर्पण कर पवित्र होती हैं और
पूजन कर दिन और रात्रि में पवित्र भोजन करती हैं। और फिर रात्रि समाप्ति से पूर्व रात्रि 3 बजे से 4 बजे के पहले तक दही चूड़ा, चीनी, फल, दूध, मिठाई, खाया-पिया जा सकता है।
*जीवित्पुत्रिका व्रत:-*
सूर्योदय के 1 घंटा पहले से निर्जला व्रत आरम्भ होता है इसमे कुछ भी खाने-पीने या तोड़ने की मनाही है।
इसे ही *खर जितिया* व्रत कहा गया है । इस दिन महिलायें निर्जला व्रत करती हैं। और व्रत पूजन, कथा श्रवण कर पूजन सम्पन्न किया जाता है। यह निर्जला व्रत होता है। *किन्तु रोगी, गर्भवती और वृद्ध माता लोग दिन भर का उपवास कर रात्रि में फलाहार ले सकती हैं।*
*पारण विधि :-*
व्रत करने के बाद अगले दिन रात्रि शेष 4 बजे से 5 बजे भोर तक व्रती अपने सास का मांग भर कर या जिनके सास मृत हो गई हैं उनके लिए पूजा घर के दरवाजे पर स्थान बना कर अपने सास की मांग भर कर (ओरी टिक कर) अन्न दान कर मटर की जाय मुख मे लेकर जल पीवें। और सूर्योदय के बाद प्रातः काल में अन्न से व्रत का पारण किया जाएगा। जिसके बाद व्रत पूर्ण होगा।
*जीवित्पुत्रिका व्रत की लोक कथा :-*
एक समय की बात है, एक जंगल में चील और लोमड़ी घूम रहे थे, तभी उन्होंने मनुष्य जाति को इस व्रत को विधि पूर्वक करते देखा एवम कथा सुनी। फिर उसके बाद दोनों ने इस व्रत को करने का निर्णय लिया और एक साथ किये उस समय चील ने इस व्रत को बहुत ही श्रद्धा के साथ ध्यानपूर्वक किया, किन्तु लोमड़ी भूख बर्दास्त नही हुई और उसने चोरी से मांस भक्षण कर लिया, ध्यान पूजा और व्रत में बहुत कम था। इस व्रत के प्रभाव से चील के संतानों को कभी कोई हानि नहीं पहुंची, सब सुरक्षित बच गए लेकिन लोमड़ी की संतान जीवित नहीं बची। इस प्रकार इस व्रत का महत्व बहुत अधिक बताया जाता हैं।
*जीवित्पुत्रिका व्रत की दूसरी कथा:-* जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई हैं। महा भारत युद्ध के बाद अपने पिता की मृत्यु के बाद अश्वथामा बहुत ही नाराज था और उसके अन्दर बदले की आग तीव्र थी, जिस कारण उसने पांडवो के शिविर में घुस कर सोते हुए पांच लोगो को पांडव समझकर मार डाला था, लेकिन वे सभी द्रोपदी की पांच संताने थी। उसके इस अपराध के कारण उसे अर्जुन ने बंदी बना लिया और उसकी दिव्य मणि छीन ली, जिसके फलस्वरूप अश्वथामा ने उत्तरा की अजन्मी संतान को गर्भ में मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया, जिसे निष्फल करना असंभव था। उत्तरा की संतान का जन्म लेना आवश्यक थी, जिस कारण भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में ही पुनः जीवित किया। गर्भ में मर कर जीवित होने के कारण उसका नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा और आगे जाकर यही राजा परीक्षित बना। तब ही से इस व्रत को किया जाना प्रारम्भ हुआ।
*जीवित्पुत्रिका की तीसरी व्रत कथा :-*
*भगवान कृष्ण द्वारका पुरी में निवास करते थे, उस समय एक ब्राह्मण भी द्वारका में निवास करता था। उसके सात पुत्र बचपन में ही मर चुके थे उसे मृतवत्सा दोष लगा था। अपनी इस दशा से वो ब्राह्मण बहुत दु:खी रहता था। एक दिन ब्राह्मण भगवान कृष्ण के पास गया और कहने लगा –हे भगवन ! आपके राज्य में आपकी कृपा से मेरे सात पुत्र हुए परन्तु जीवित कोई नही रहा, क्या कारण हैं ? यदि आप अपने राज्य में किसी को दु:खी नही देखना चाहते तो कृपया कोई उपाय बताइए।
तब भगवान कृष्ण बोले –हे ब्राह्मण ! सुनो इस बार तुम्हारे जो पुत्र होगा उसकी उम्र तीन वर्ष की हैं। इसकी उम्र बढ़ाने के लिए तुम सूर्य नारायण की पूजा वाले पुत्रजीवी व्रत को धारण करो। तुम्हारी पुत्र की आयु बढ़ेगी। ब्राह्मण ने वैसा ही किया। स्वयं आदित्य का पाठ और उनका परिवार हाथ जोड़ कर विनती करने लगा।
जिससे सूर्य देव का रथ वहाँ रुक गया । ब्राह्मण की विनती से प्रसन्न हो कर सूर्य ने अपने गले से एक माला ब्राह्मण पुत्र के गले में डाल दी और आगे चले गए । थोड़ी ही देर में यमराज उस ब्राह्मण पुत्र के प्राण लेने आये । यमराज को देखा कर ब्राह्मण व उसकी पत्नी दोनों कृष्ण को झूठा कहने लगे । भगवान कृष्ण अपना अनादर जान कर तुरंत आ गए और बोले इस माला को यमराज के ऊपर डाल दो। इतना सुनते ही ब्राह्मण उस माला को उठाने लगा , यह देखकर यमराज डर से भाग गए परन्तु यमराज की छाया वहीँ रह गयी। ब्राह्मण ने उस फूल की माला को छाया के ऊपर फेंक दिया , जिसके फलस्वरूप वह छाया शनि के रूप में आकर भगवान कृष्ण की प्रार्थना करने लगी। भगवान कृष्ण को उस पर दया आ गई उन्होंने उस पर दया कर उसे पीपल के वृक्ष पर रहने के लिए कहा। तब से शनि की छाया पीपल के वृक्ष पर निवास करने लगी इस प्रकार भगवान कृष्ण ने जीवितपुत्रिका व्रत के द्वारा ब्राह्मण के पुत्र की उम्र बढ़ा दी । इस व्रत को श्रद्दापूर्वक करने वाले मृतवत्सा दोष से बचा जा सकता है। जीवित्पुत्रिका व्रत के अखंड तप के प्रभाव से भगवान श्री कृष्ण, भगवान सूर्य, एवं राजा जीमूतवाहन उत्तम आयु आरोग्यता, अखंड सुख सौभाग्य, सुखी व दीर्घायु सन्तान सुख, तथा उत्तम भूमि भवन, वाहन आदि भौतिक सुख सम्पन्नता प्रदान करें….!*
*जीवित्पुत्रिका व्रत प्रभाव से सबके उत्तम संतान सुख एवं सपरिवार की उत्तम जीवन की सहृदय शुभकामना….!*
*महादेव के कृपा से आपको उत्तम संतान सुख के साथ सम्पूर्ण प्रसन्नता बनी रहे।*
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*हरि ॐ गुरुदेव..!*
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*ज्योतिषाचार्य आचार्य राधाकान्त शास्त्री*
*🌺शुभम बिहार यज्ञ ज्योतिष आश्रम🌺*
*राजिस्टार कालोनी, पश्चिम करगहिया रोड, नजदीक:- थाना:- कालीबाग ओ.पी. बेतिया, पश्चिम चम्पारण, बिहार,*
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(अहर्निशं सेवा महे)
*आवश्यक मे कॉल से वार्तालाप समय:- सायं 4 से रात्रि 11 बजे तक।*
*!!भवेत् तावत् शुभ मंगलम्!!*