सर्वे में इतनी हाय-तौबा मची हुई है।… क्यों??
क्योंकि लोगों को छोड़िए, स्वयं अधिकारियों को नहीं पता कि सर्वे कैसे होगा।

अरुण कुमार –बंका /सर्वे का सबसे बड़ा भ्रांति यही है कि सर्वे से भूमि विवाद दूर हो जाएगा।सर्वे से कोई भूमि विवाद नहीं घटेगा बल्कि और बढ़ेगा, नोट कर लें।
सबसे ज्यादा तो बेटी/बहन वाले मामले में ही विवाद बढ़ेगा। चकबंदी हो चुकी भूमि, जिसमें लोग *चक* भूमि पर गए ही नहीं,अपने ही भूमि पर रह गए/बहुत पहले से मौखिक बदलैन की हुई भूमि, जिसमें बदलैन करने वाले की मृत्यु भी हो चुकी है, कागज किसी का, कब्जा लंबे समय से किसी और का, बहुतों ने बदलैन भूमि विक्रय भी कर दी है, बहुत घरों में यह बंटवारा में किसी भाई के हिस्से में पड़ चुका है/ बड़े-बड़े झील,पोखर की भूमि, जैसे कांवर पक्षी विहार की भूमि पर वन विभाग का दावा, उधर किसानों का भी दावा/ बहुत जिले में भूमि संबंधी सरकारी दस्तावेज का उपलब्ध न होना, जमाबंदी return और खतियान बहुत मौजों के अनुपलब्ध हैं/दियारा की भूमि जो पानी कम होने पर नदी से निकलता है, पानी अधिक होने पर नदी में डूबा रहता है, हमेशा विवाद को जन्म देता है/टोपोलैण्ड,भारी विवादित मामला/वक्फ की भूमि, बहुत सारी वक्फ संपत्ति का कोई कागजात नहीं है/मंदिर,मठ की भूमि, भूमि सरकारी या रैयती या धार्मिक न्यास बोर्ड की/बकाश्त भूमि संबंधी मामलों में सर्वे के कर्मी खुद ही अपनी सर्वे की पुस्तक MARBEL एवं राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के पत्रांक 925 दिनांक 11/11/14 का पालन नहीं कर रहे हैं। खुद विभाग mutation के मामलों में उपर्युक्त पत्र का पालन न कर बकाश्त के हर मामले में DCLR के यहां से पहले भूमि का *रैयतीकरण* करवाने की बात कह फील्ड में confusion/आक्रोश को बढ़ावा दे रहा है।बकाश्त के संबंध में सर्वे अधिकारी/कर्मी entry के बिंदु पर मौन हैं। जब ये मौन हैं तो फील्ड में आम जन के confusion का सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है/गैरमजरूआ खास मकान मय सहन बक़ब्जे फलां बेलगानी भूमि, सरकारी या रैयती/बंदोबस्त की गई भूमि जिसका कागजात बन्दोबस्तधारी के पास नहीं है और न ही सरकार के पास डाटा सुरक्षित है/बहुत जगह जमीन के सारे दस्तावेज बड़े भाई(या मुख्तार) के पास, जमाबंदी में नाम भी बड़े भाई का ही तो अन्य भाइयों का क्या/आदि आदि मामलों में राजस्व विभाग तो खुद ही clear नहीं है कि इन मामलों में क्या होगा तो नीचे के अधिकारी का तो कहना ही क्या!
उपर्युक्त वर्णित मामलों का अगर विस्तार से चित्रण किया जाए तो एक ग्रंथ लिखा जाएगा।
फिलहाल कोई भी यह कह सकते हैं कि इन सारे मुद्दों के रहते हुए भी आखिर सर्वे होगा कैसे??
उत्तर बहुत सरल है।
सर्वे का बेसिक क्या है- *हर प्लॉट की विस्तृत जानकारी प्राप्त कर उसको लेखनीबद्ध कर देना।*
यह काम तो CO ही कर लेगा। CO के कंप्यूटर में जितने भी जमाबंदी हैं, उनमें बहुतों का डाटा पूर्ण/शुद्ध नहीं है। सबसे पहले जमाबंदी के उस डाटा को पूर्ण/शुद्ध किया जाना चाहिए। स्वघोषणा जो सर्वे office को दिया जा रहा है, अगर वह CO को बहुत पहले से दिया गया होता और उसका वेरिफिकेशन कर CO से डाटा पूर्ण/शुद्ध करवाने की दिशा में अग्रेतर कार्रवाई करवाई गई होती तो आज आलम कुछ और रहता। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। CO office को जमाबंदी डाटा पूर्ण/शुद्ध करने के काम में लगाया जाए न कि मेला duty/परीक्षा duty/मूर्ति विसर्जन जैसे आलतू-फालतू कामों में उनका समय नष्ट किया जाए।
2) हर गांव में ग्राम सभा बुलाकर कैम्प लगाकर बंटवारा चाहने वाले लोगों का बंटवारा चार्ट अनुसार clear मामलों में त्वरित बंटवारा करते हुए रसीद काट कर अलग कर दिया जाए।
अभी तो एकदम clear मामले का भी ऑनलाइन बंटवारा करा लेना बहुत ही क्लिष्ट कार्य है।
खाता नंबर की कोई आवश्यकता नहीं है। इसको हटा दिया जाए।
मेरे ख्याल से सरकार के पास अधिसंख्य प्लॉट्स की सम्पूर्ण विवरणी आ जाएगी।
चूंकि मृत व्यक्ति के नाम जमाबंदी का चलना भी गलत है। इसलिए अगले चरण में धीरे-धीरे मृत व्यक्ति के नाम चल रही जमाबंदी को खत्म किया जाए। लोगों को सूचना दे दी जाए कि सारे मृत व्यक्ति के वंशज अपना बंटवारा करा के रसीद अलग-अलग कटवा लें। नहीं तो सरकार उन जमाबंदियों को *लॉक* कर देगी। उन मृत नाम से अंकित जमाबंदियों में अंकित जमीन की *रजिस्ट्री* भी *नहीं* होगी।
सरकार ऐसा कर सकती है, क्योंकि सरकार को revenue record update रखना है। अगर SC से बिना जमाबंदी के जमीन नहीं बिकेगी, यह OK हो जाता है, तो सोने पे सुहागा।
ऐसे मृत जमाबन्दीदार के बंटवारा मामलों के लिए भी ग्राम सभा में कैम्प लगाया जाए।
सारा डाटा हर प्लॉट का क्रमिक रूप से पूर्ण/शुद्ध हो जाएगा।
यही न है सर्वे।
जब डाटा क्रमिक रूप से शुद्ध होता चला जाएगा तो भूमि विवाद खुद-ब-खुद कम हो जाएगा।
इसलिए सर्वे office की कोई आवश्यकता नहीं है। बिहार में सर्वे की जरूरत ही नहीं है। सर्वे के बाद फिर चकबंदी होता है। जितनी बार सर्वे होगा, चकबंदी होगा, उतने ही भूमि विवाद बढ़ेंगे।
माफिया लोग सर्वे/चकबंदी कर्मियों की मिलीभगत से सर्वे/चकबंदी में सरकारी भूमि को रैयती भूमि के रूप में entry करवा लेते हैं। एक बार खतियान में नाम आ जाए तो हटना बहुत मुश्किल है। सरकार को सिविल कोर्ट जाना पड़ेगा। एक तरफ ऐसा है, दूसरी तरफ कई रैयती भूमि को जान- बूझकर सरकारी अंकित कर देना भी खूब चलता है। यह कोई मामूली कहने/सुनने की बात नहीं है। यह सच्चाई है। RS में बहुत सारे रैयत की भूमि सरकारी अंकित कर दी गई। बहुतों का फैसला अब तक नहीं हो सका है। नए सर्वे में उनका क्या होगा, इस पर विभाग *मौन* है।
आप कह सकते हैं कि
सर्वे की आवश्यकता है।
इसमें नया नक्शा भी तो बनता है। तो इसका जवाब यह है कि नया नक्शा बनाने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी। नया नक्शा तो बना है 2014 में और रजिस्ट्री क्रमिक जारी ही है तो 2014 का नक्शा भी तो जमीन के बिक्री अनुसार प्लॉट के संयोजन/विखंडन के अनुरूप 2024 में काफी बदल गया होगा।
तो नए नक्शे से फायदा क्या हुआ??
फायदा तो तब होता जब रजिस्ट्री पर रोक रहती।
रोक तो अभी भी नहीं है।
खानापूरी के समय दस्तावेज में नाम अंकित होगा A का और खानापूरी के बाद A अगर B को जमीन बेच देगा तो फाइनल खतियान में नाम आएगा A का। अगर B जागरूक रहेगा तो प्रारूप प्रकाशन के समय आपत्ति कर सकता है। लेकिन क्या वाकई लोग इतने जागरूक हैं? क्या वाकई आज के भागम-भाग में लोगों के पास इतना समय है?
मुझे तो नहीं लगता कि इतनी जागरूकता/समय लोगों के पास है। तो फायदा क्या हुआ? कुछ नहीं।
खतियान(ROR) बनाने से ज्यादा अच्छा कार्य रहेगा हर साल चालू खतियान बनाना। इससे mutation की आवश्यकता ही खत्म हो जाएगी। लेकिन अभी चालू खतियान भी नहीं बन सकता जब तक present जमाबंदी का डाटा पूर्ण/शुद्ध न हो जाए।
35% महिला कर्मियों और अन्य अनुभवहीन संविदा कर्मियों के भरोसे सरकार अगर सर्वे पूरा कराने की सोच रही है तो सर्वे तो होगा, लेकिन कितने HC केस होंगे, यह सरकार की कल्पना के बाहर होगा।
आप कहेंगे, अंग्रेज कैसे सर्वे करा लिए?
उत्तर बहुत सरल है।
1)अंग्रेजों के समय रैयतों के दिमाग में यह बात थी कि वे सिर्फ और सिर्फ रैयत हैं। भूमि के मालिक नहीं हैं। आज लोगों के दिमाग से यह बात निकल चुकी है। लोग मानने को तैयार ही नहीं कि वे रैयत हैं/किराएदार हैं। वे खुद को भूमि का मालिक समझ रहे हैं। इसलिए विवाद तो बढ़ेगा ही। स्वयं विभाग भी उन्हें रैयत कम, मालिक के रूप में ही ज्यादा देखती है। जबकि कृषि योग्य भूमि तो छोड़िए, आवासीय भूमि का मालिक भी सरकार ही है। Act के अनुसार *सबै भूमि गोपाल की*, यह न तो आम जन को पता है न ही सरकार के राजस्व अधिकारियों/कर्मियों को।😊
2) अंग्रेजों के समय जनसंख्या आज की तुलना में बहुत कम थी। इतना छल-कपट भी नहीं था। लोग ईश्वर से डरता था। इसलिए विवाद कम था। आजकल लोग आधुनिक हो चुका है। ईश्वर से भी नहीं डरता। तभी तो ईश्वर को भी धोखा दे दे रहा है। उनके लड्डू में भी घी के नाम पर गाय और सुअर की चर्बी मिला दे रहा है लोग।
3)आबादी कम थी और जमीन का टुकड़ा बड़ा था। जिससे नक्शा बनाने में सहूलियत थी। साथ ही एक गांव में मुश्किल से 10-20 परिवार होते थे। वही आज बढ़कर 100-200-300 परिवार हो चुके हैं। जोत का आकार छोटा हो चुका है।
जाहिर है आज की तारीख में विवाद तो होगा ही।
4) पहले कोई छोटा-मोटा भूमि संबंधी विवाद आया भी तो गांव में पंचायती करके लोग मामले को सुलझा लेता था। आज कोई किसी का बात सुनने को तैयार ही नहीं है। वर्तमान में सरकार किसी भूमि पर सही व्यक्ति को दखल दिला के वापस लौटती है, उधर दबंग पुनः भूमि दखल कर लेता है। ऐसी स्थिति अंग्रेज के समय नहीं थी। लेकिन आज है। ऐसी स्थिति से कैसे निपटा जाए, इसका जवाब आज की तारीख में किसी भी राजस्व अधिकारी के पास नहीं है।🤔
वर्तमान में मैं पुनः कह रहा हूँ कि CO से जमाबंदी डाटा क्रमशः अद्यतन(पूर्ण/शुद्ध) करवाया जाए और ग्राम सभा में कैम्प लगाकर बंटवारा की गति को तीव्र कर ज्यादा से ज्यादा रसीद का bifurcation किया जाए। सर्वे की कोई आवश्यकता ही नहीं रहेगी।
नोट: उपर्युक्त पोस्ट एक आम जागरूक भारतीय नागरिक की हैसियत से मेरे निजी विचार हैं।