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जन्माष्टमी के पन्द्रह दिन बाद मनाया जाता है राधा अष्टमी पर्व।..

पटना डेस्क/इस संसार में जब जब प्रेम की बात होती है, तब-तब राधा कृष्ण की जोड़ी को याद किया जाता है। उनके बीच आध्यात्मिक प्रेम था, जिसका उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में आज भी किया जाता है। हिंदू धर्म में राधा और कृष्ण को प्रेम का प्रतीक माना गया है, और उनकी पूजा के लिए भाद्रपद माह को सबसे खास माना जाता है। बता दें, जहां भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जन्माष्टमी होती है, वहीं इसी माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी मनाई जाती है। इस दिन राधा कृष्ण की जोड़ी की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है। साथ ही पति-पत्नी के रिश्ते में मधुरता बनी रहती है।

इस साल 11 सितंबर को राधा अष्टमी मनाई जाएगी। इस दिन कई मंगलकारी योग का निर्माण हो रहा है, जो सभी के लिए लाभदायक होने वाला है। इस योग में राधा रानी की पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

राधा अष्टमी की तिथि
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भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि आरंभ: 10 सितंबर, मंगलवार, रात्रि 11: 11 मिनट से
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि समाप्त: 11 सितंबर, बुधवार, रात्रि 11:46 मिनट पर
उदयातिथि के आधार पर राधा अष्टमी का पावन पर्व 11 सितंबर को मनाया जाएगा।

राधा अष्टमी का मुहूर्त
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राधा अष्टमी पर पूजा का शुभ मुहूर्त दिन में 11 बजकर 03 मिनट से दोपहर 1 बजकर 32 मिनट तक रहने वाला है। इस दौरान आप विधिनुसार राधा रानी की पूजा कर सकते हैं।

राधा अष्टमी पर बन रहे है ये शुभ योग
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राधा अष्टमी पर प्रीति योग बन रहा है, जो रात 11 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होगा। इसके बाद आयुष्मान योग भी बन रहा है। वहीं इस दिन रवि योग का भी संयोग रहेगा, जो रात 09: 22 मिनट से 12 सितंबर सुबह 6 बजकर 5 मिनट तक रहेगा।

पूजन विधि
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राधा अष्टमी के शुभ अवसर पर सुबह ही स्नान कर लें। इसके बाद साफ वस्त्रों को धारण करें। इसके बाद शुभ मुहूर्त के अनुसार पूजा स्थान पर सभी सामग्रियों को एकत्रित कर लें। सबसे पहले पानी का कलश भरकर रखें। इसके बाद चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उसपर राधा रानी और कृष्ण जी की मूर्ति स्थापित करें। फिर उन्हें वस्त्र पहनाएं, और उनका श्रृंगार करें। इसके बाद धूप, दीप, अक्षत, पुष्प, फल आदि अर्पित करें। फिर श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तोत्र का पाठ करें। इसके बाद आप आरती करना शुरू करें। अंत में श्रद्धा पूर्वक दान भी करें।

राधा अष्टमी का महत्व
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जैसे भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित जन्माष्टमी का व्रत किया जाता है। ठीक वैसे ही राधा अष्टमी का व्रत किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन राधा रानी की सच्चे मन से पूजा करने से वैवाहिक जीवन में खुशियों का आगमन होता है और पति-पत्नी के रिश्ते में मजबूती आती है। इसके अलावा व्यक्ति को धन, ऐश्वर्य, आयु एवं सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

पूजा के दौरान करें इन मंत्रों का जाप
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ओम ह्रीं श्रीराधिकायै नम:।

ओम ह्रीं श्री राधिकायै नम:।

नमस्त्रैलोक्यजननि प्रसीद करुणार्णवे।

ब्रह्मविष्ण्वादिभिर्देवैर्वन्द्यमान पदाम्बुजे।।

नमस्ते परमेशानि रासमण्डलवासिनी।

रासेश्वरि नमस्तेऽस्तु कृष्ण प्राणाधिकप्रिये।।

मंत्रैर्बहुभिर्विन्श्वर्फलैरायाससाधयैर्मखै: किंचिल्लेपविधानमात्रविफलै: संसारदु:खावहै।

एक: सन्तपि सर्वमंत्रफलदो लोपादिदोषोंझित:, श्रीकृष्ण शरणं ममेति परमो मन्त्रोड्यमष्टाक्षर।।

राधा अष्टमी का पौराणिक महत्व
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राधा जी के जन्म को लेकर पुराणों में अलग-अलग कथाएं वर्णित हैं। एक कथा के अनुसार, राधा जी ब्रह्मा जी के कमंडल से उत्पन्न हुई थीं, उन्हें दिव्य शक्तियों से युक्त देखकर वृषभानु और माया नामक दंपत्ति ने गोद ले लिया था। दूसरी कथा के अनुसार, विष्णु के अंश से राधा जी की उत्पत्ति हुई और कृष्ण के अंश से कृष्ण जी का अवतार हुआ। हर कथा राधा और कृष्ण के अटूट प्रेम और दिव्य संबंध को दर्शाती है।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175
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