झूठ बोले, कौआ काटे..

पटना/त्रिलोकीनाथ प्रसाद, कौवा काले रंग का एक पक्षी है जिसे राजस्थानी भाषा में इसे कागला तथा मारवाड़ी में हाडा कहा जाता है।यह कबूतर के आकार का काला पक्षी है जो कर्ण, कर्कश, ध्वनि “कांव-कांव” करता है। कौवे को बहुत उदंड, धूर्त तथा चालाक पक्षी माना जाता है।कौवा एक विस्मयकारक पक्षी है।कौवे में इतनी विविधता पाई जाती है कि इस पर एक काव्यशास्त्र की भी रचना की गई है।भारत में कई स्थानों पर काला कौवा अब दिखाई नहीं देता बल्कि बिगड़ रहे पर्यावरण की मार कौवों पर भी पड़ी है।स्थिति यह है कि श्राद्ध में अनुष्ठान पूरा करने के लिए कौवे तलाशने से भी नहीं मिल रहे हैं। कौवे के विकल्प के रूप में लोग बंदर, गाय और अन्य पक्षियों को भोजन का अंश देकर अनुष्ठान पूरा कर रहे हैं।कौवे की 6 प्रजातियां भारत में मिलती है।भारत के ख्याति प्राप्त पक्षी विज्ञानी सलीम अली ने हैंडबुक में दो का ही जिक्र किया है।पहला जंगली कौआ (कोवर्स मैक्रोरिनवोस) और दूसरा घरेलू कौआ (कोवर्स स्प्लेनडर्स) जंगली कौआ पूरी तरह काला होता है जबकि घरेलू कौआ गले में भूरी पट्टी लिए होता है।शायद इसी को देख कर रामायण महाग्रंथ के रचयिता तुलसीदास जी ने काग भुसुंडि नाम अमर मानस पात्र की संकल्पना की हो, जिसके गले में कंठी माला सी पड़ी है।विशेषज्ञ बताते हैं कि कौवा का दिमाग लगभग उस तरीके से काम करता है जैसे चिंपैंजी और मानव का करता है।कौआ लोगों की नजर में अछूत है पर इतने चतुर, चालाक एवं बुद्धिमान होते हैं कि यह चेहरा देखकर पहचान लेते हैं कि कौन खुराफाती है और कौन दोस्त हो सकता है।कौए अपनी चतुराई दिखाने मैं लाजवाब होते हैं इसलिए वैज्ञानिक इनको उम्दा, चतुर पक्षियों में इसलिए गिनते हैं क्योंकि इन्होंने ऐसे तमाम इम्तिहान पास किए हैं, जिन्हें दूसरे पक्षी पास नहीं कर पाते। इजराइल के कौए की कुछ प्रजातियों को इतना प्रशिक्षित कर लिया जाता है कि वह मछलियां पकड़ने के लिए ब्रेड के टुकड़ों की जगह ले जाने का काम निपटाते हैं।अमेरिकी यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के शोधकर्ताओं का कहना है कि वह खुद के लिए खतरा पैदा करने वाले चेहरे को 5 साल तक याद रख सकते हैं की क्षमता रखते हैं। पूर्वी एशिया में कौवा को किस्मत से जोड़ा जाता है तो अपने यहां मुंडेर पर बैठकर कांव-कांव करने वाले कौए को संदेशवाहक ही माना जाता है।कुछ कौवे कमजोर पड़वों को ताजा मांस खाने के लोभ में मार तक देते हैं।भूरे गले वाले कौए फसलों को तबाह करने में अव्वल होते हैं।आइरिश कौवा को युद्ध और मृत्यु की देवी से भी जोड़ा जाता है।ऑस्ट्रेलियाई इनको संस्कृति नायक के तौर पर भी देखते हैं तो भारत में कौवा का सिर पर बैठना बुरा माना जाता है और इसको टोने के रूप में प्रचारित किया जाता है।योग वशिष्ट ने काग भूसुंडी भी की गई है जिसमें माता सीता के पांव पर कौए के चोंच मारने का प्रसंग भी आया है।इस प्रकार कौआ के विषय मे बताने की कोशिश है और इसलिए झूठ बोलने वालों को कौआ काट लेता है।रणनीतियों और राजनीतियों को समझने की जरूरत है कि जिस प्रकार श्राद्ध अनुष्ठान में कौआ नहीं मिलने पर विकल्प को भोजन का अंश दान करते हैं वैसे ही दोगली राजनीति का विकल्प ढूंढना आवश्यक है।
- ज्ञान का अर्थ है जानने की शक्ति सच को झूठ को छत से पृथक करने वाली जो विवेक बुद्धि है उसी का नाम ज्ञान है।
- झूठ बोलना भी एक कला है जिसमें इंसान अपने बुने हुए जाल में फंसता भी खुद हैं और उसमें उलझता भी खुद है।
- एक झूठ को छुपाने के लिए हजार झूठ बोलने से अच्छा है क्यों ना एक केवल सच ही बोल दिया जाए।
- झूठ भी कितना अजीब है खुद बोलो तो अच्छा लगता है और दूसरे बोले तो गुस्सा आता है।पहले झूठ बोलना पाप था लेकिन अब झूठ बोलना मजबूरी और जरूरी है।
- झूठ बोलना पहली बार आसान हो सकता है पर बाद में सिर्फ परेशानी देता है और केवल सच पहली बार बोलना कठिन होता है पर बाद में सिर्फ सुकून ही सुकून देता है।
- सीख नहीं पा रहा हूं मीठे झूठ बोलने की हुनर, कड़वे केवल सच ने हमसे ना जाने कितने लोगों को छीन लिया है।
झूठ बोले कौवा काटे काले कौवे से डरियो…।यह गीत आज की वर्तमान राजनीति एवं प्रशासनिक व्यवस्था पर बिल्कुल सटीक बैठती है।आप समझ गए होंगे कि मैं क्या कहना चाहता हूं।कोरोना के संक्रमण में राजनेताओं ने लोगों ने अपनी औकात तब दिखाएं जब प्रकृति ने अपनी लीला करना कम किया।कोरोना संकट में राहत पहुंचाने तथा अपने राहत की राजनीति में ऐसा व्यवस्था कर रहे हैं जैसे अपनी बहन-बेटी की शादी में करते हैं।क्या कोरोना वायरस जैसा अन्य समस्या अगले वर्ष नहीं आएगा ? क्या इनलोगों को अगले किसी भी वायरस से लड़ने के लिए मजबूत किया जा रहा है ? पूरी दुनिया इस सरकार एवं प्रशासन की हरकत को देख रही हैं और इसका जिम्मेदार लोगों को भी।भले ही इनलोगों को अभी बहुत कुछ समझ में नहीं आ रहा है पर झूठ बोलने की वजह से जब इन्हें कौवा काटेगा तब इन्हें मालूम होगा कि झूठ बोलना कितना महंगा पड़ा।कोरोना वायरस को चीनी नाम देने वाले सुशासन की सरकार ने अपनी नाकामी की नाकामी को छुपाने के लिए जितने चाहे बहाने बनाए और केंद्र सरकार अपनी तत्परता का परिचय दें परन्तु कोरोना वायरस के लिए दोनों जिम्मेवार हैं।और डिजिटल इलेक्शन लड़ने की मंशा रखने वाले मोदी और नीतीश कुमार को मालूम है इन्हें कि आज के समय में कौए ने काटना बंद कर दिया है लेकिन जब कौआ काटेगा (वोटर जब घेंगा दिखायेगा) तो इससे इन्हें कोई नहीं बचा पाएगा।जम्मू कश्मीर का मुद्दा हो या का और नर्क का, लेकिन स्थिति जस की तस है और यह कहावत को चरितार्थ करने में लगे हैं।बम ब्लास्ट से देश की राजधानी दिल्ली, मुंबई, गुजरात दहल गई लेकिन क्या इन भ्रष्ट राजनेताओं का दिमाग खुलेगा या अभी और ब्लास्ट देखने की आवश्यकता है ? आखिरकार हर बार बम ब्लास्ट विस्फोट में मुस्लिम और उसके समुदाय का ही हाथ रहता है, क्या देश में घुसपैठ मुस्लिम समुदाय से ही होते हैं ? जब तक आर-पार की लड़ाई नहीं होगी तब तक इसका समाधान संभव नहीं है।भारत आजादी के बाद से ही मुसीबतों का देश बन गया है और भारत-पाकिस्तान युद्ध खेलता रहा है लेकिन सिवाय राजनीति के बहुत भी आज तक कुछ नहीं किया गया।बिहार में कोरोना संक्रमण ने लोगों को एकजुट करने का प्रयास किया लेकिन अपनी आदतों से लाचार बिहार के राजनेता पदाधिकारी अपनी बिरादरी का बराबर का परिचय देते रहे हैं। आखिरकार शासन के मंत्री को कौआ काटने में कामयाब हो ही गया।सभी मंत्री, मुख्यमंत्री और पदाधिकारी सिर्फ राजनीति की तरह राजनीति करने के हथकंडे अपनाए हुए दिखे।भाजपा को मालूम था कि कभी भी कौआ अपना विचार बदल सकता है।
यहां यह कहना होगा कि-जस करनी तस भोग हूँ ताता, आगे करत तो पीछे क्यों पछताता।
इस कोरोना के लिए फिर से प्रकृति को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है।बिहार में कोरोना एक राजनीति की देन है और संक्रमण गंदी राजनीतिक चाल।इस बार की तबाही का मंजर देखकर हर कौवे ने अपनी शक्ति का एहसास कराएगा तथा चुनाव में कराने का मन बना चुकी है।वह भी अब जमाने के साथ अपना विचार बदल रहा है और उसे पता है कि किस प्रकार का निर्णय लेना है।नीतीश जी, लालू जी और सुशील कुमार मोदी जी को जनता 30 वर्ष में समझ गई है और समस्या को पहचानती भी है।ध्यान रहे कहीं आपके के कौआ को दूसरा दाना ना दे जाए और आपका भी कौआ आपके आपको कहीं काटने ना लग जाए।कौवा काटता है तो आप तो किसी से कह भी नहीं पाएंगे नहीं इलाज करा पाएंगे।कौआ काटने के मामले में दो कदम आगे निकल चुकी है और अब काटने को भी तैयार है और समस्याओं से निजात पाने के लिए विदेशी को मौका देने को भी तैयार हो सकती है।20 लाख करोड़ का पैकेज और बिहार को विशेष राज्य का दर्जा के लिए केंद्र से मदद की भीख मांग रहे हैं कोरोना के बाद कौवे को दाना देने से जिस प्रकार की तत्परता दिखाई जा रही है इसी प्रकार या कहा जाता है कि मैं फला पार्टी का नेता हूं और अगले वर्ष या किसी भी तरह के विपत्ति आने की तबाही से मैं आपको बचा सकता हूँ का ताल ठोक कर डिजिटल चुनाव लड़ने की कोशिश की जा रही है ताकि पथ भ्रष्ट नेता का दर्शन न हो सके और अंधभक्ति में चुनाव जीत जाएं।ज्ञानी कौवे से आज मदद की भीख मांगी जा रही है उसी को गद्दी से दूर रखने की कोशिश की जा रही थी।भारतीय कौए को पता है किसको कितना महत्व देना है और झूठ बोलने वाले को हुए हमेशा कौआ कहता है और वर्तमान समय में उसकी दांत और मजबूत हो गई है।अब देखना है कि वह किसको कितना काटता है या अंधभक्ति में पित्रशोक कई तरह भूल जाये।सावधान रहें, वक्त है आपके पास विकल्प पर निर्णय लेने का अन्यथा आप फिर 5 साल के लिए शिकार ना हो जाए।