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पार्ट १३: कहाँ गए वो दिन?

बिहार प्रदेश के पूर्व महानिदेशक की कलम से

ज़िन्दगी के डगर पर कई प्रकार के प्राणी मिलते हैं जो कई प्रकार की अनुभूतियाँ पैदा कर जाते हैं। कुछ आजीवन अमित छाप छोड़ जाते हैं, तो कुछ सहज ही मिट जाते हैं।
वर्ष 1983 में मेरा पद नवीकरण बिहार राज्य के andrang ज़िले में पुलिस अधीक्षक के रूप में हुआ था। प्राकृतिक रूप से वहाँ के ज़िला पदाधिकारी से मुलाकात हुई और सरकार की कार्यप्रणाली के अनुसार मिलने का दौर और सिलसिला चल पड़ा है ।आपकी जीप पर मदनपुर चलना है “, अनुरोध आया ज़िला पदाधिकारी प्राधिकरण का। हम तुरन्त ही पुलिस की जीप पर रवाना हो गए हैं।” रास्ता में उन्होंने बताया कि वे कुछ बहुत आवश्यक निजी कार्यवश अवकाश पर रांची जा रहे हैं। मैं हतप्रभ रह गया। समझ नहीं पाया कि पुलिस जीप से चलने का निर्देश क्या है।
“आपके साथ जीटी रोड पर ज़िले की सीमा के पार तक चलेंगे।” मैंने उनसे सवाल किया। मेरे मन में उनके लिए अत्यधिक सम्मान था जो उनके पूरे जीवन काल तक रहा और आज भी है। उम्र में बहुत बड़े थे। ज़िले का सरहद पार कर गया। उन्होंने अनुरोध किया की जीटी रोड पर चरही जाने वाली ट्रक पर सवार होकर निकल जाने का इरादा है। मैंने अपने ड्राइवर से कहा की हाथ से एक केक वाले ट्रक को रुकवाईये।
जब तक यह प्रक्रिया चल रही थी, मैंने उनसे कौतुहल शांत करने के लिए प्रश्न पूछ ही लिया। “आपने औरंगाबाद से कोई समझौता क्यों नहीं ली? चरही से आगे रांची कैसे जाइयेगा? आपके साथ कोई नहीं है, कठिनाई तो नहीं होगी?” आॅनर्स प्रश्न करते हैं।
“आप चिंता न करें, कोई समस्या नहीं होगी।” मुस्कुराते हुए मुद्रा में उत्तर मिला।
ट्रक रुका हुआ था। मैंने ड्राइवर से कहा कि डीएम साहब हैं, चरही तक भेंटगे, ठीक से ले जाइयेगा, तब तक नहीं होना चाहिए। ड्राइवर और खलासी दोनों के चेहरे पर विस्मय और हर्ष का मिश्रित भाव दिखा।
खलासी ने अपने लिए जो लकड़ी का पटरा होता है, उस पर चादर बिछा कर अपने नए मेहमान का स्वागत किया।
डीएम साहब ट्रक पर चढ़ने लगे। मुझे उनके हाथ में अख़बार का एक पन्ना लपेटा दिखा। गौर से देखा तो पता लगा कि कुछ कपड़े बाँधे हुए थे। वे ट्रक पर सवार हो चुके थे। प्रणाम किया और मैं भी वापस andrang अपनी जीप से लौट लगाई। बहुत सारे प्रश्न थे। उनके जाने पर मैंने उनसे पूछा कि चरही से रांची कैसे गया? जवाब मिला, “जीपी टैक्सी से। भीड़ थी। पीछे लटक गया था।”बिरेन्द्र कुमार सिन्हा, आईएएस 1975, बिहार कैडर। यह परिचय उस व्यक्ति का है। भारत सरकार के ग्रामीण विकास के सचिव के पद से सेवा निवृत हुई। दुनिया को भी अलविदा कह चुके हैं।याद रह जाएँगे वे लोग जिन्होंने आम लोगों की नज़रों में बड़े पदों पर रहकर अपने को “छोटा” बना कर, महामानव बना लिया। आप धन्य हैं।

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