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मृदा स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभावः मुद्दे और सुधार रणनीतियाँ विषय पर एक दिवसीय कर्मशाला का आयोजन।

त्रिलोकी नाथ प्रसाद:-सचिव, कृषि विभाग, बिहार श्री संजय कुमार अग्रवाल द्वारा आज ‘‘मृदा स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभावः मुद्दे और सुधार रणनीतियाँ’विषय पर बामेती, पटना में आयोजित एक दिवसीय कर्मशाला का उद्घाटन किया गया।

जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या।

सचिव, कृषि विभाग ने अपने संबोधन में कहा कि जलवायु परिवर्तन आज एक वैश्विक समस्या के रूप में उभर रही है, जिसका प्रत्यक्ष असर कृषि एवं इससे जुड़ी गतिविधियों पर देखा जा सकता है। असमान वर्षापात एवं तापमान में अप्रत्याशित बदलाव कृषि पारिस्थितिकी एवं खाद्यान्न सुरक्षा के समक्ष चुनौतियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण मिट्टी के जलधारण करने की क्षमता में कमी आ रही है तथा मृदा में उपलब्ध जैविक कार्बन एवं सूक्ष्म जीवों के संतुलन प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि हमारा प्रदेश मुख्य तौर पर सिंधु-गंगा के मैदानी भू-भाग का हिस्सा है, जो अपनी उपजाऊ मिट्टी एवं सघन खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। परन्तु अपनी इन विशेषताओं के बावजूद यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रति अति संवेदनशील है, जो कहीं-ना-कहीं मृदा स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के संदर्भ में हम सभी का ध्यान आकर्षित करता है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव।

सचिव, कृषि ने बताया कि मृदा स्वास्थ्य का तात्पर्य मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों से है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रही तापमान में वृद्धि मिट्टी में आर्द्रता के सामंजस्य एवं मिट्टी की बनावट को प्रभावित करता है। फलतः सभी पोषक तत्वों का वहन पौधों तक समुचित तौर पर नहीं हो पाता है। मृदा में उपलब्ध जैविक कार्बन तथा सूक्ष्म जीवों की उपलब्धता मृदा स्वास्थ्य के मुख्य सूचक हैं। परन्तु जलवायु परिवर्तन, सघन एवं एकल फसल पद्धति की बहुलता एवं लगातार किए जाने वाले गहन जुताई के कारण मृदा में उपस्थित जैविक कार्बन का वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में उत्सर्जन निरंतर तीव्र गति से हो रहा है। मृदा में उपस्थित सूक्ष्म जीवों की कमी के कारण जैव-भू-रासायनिक चक्रण (Bio-Geo-Chemical Cycling)] पौधों की वृद्धि और स्वास्थ्य के साथ-साथ मृदा कार्बन पृथक्करण (Carbon Sequestration) जैसे तन्त्र प्रभावित हो सकते हैं। अधिक उपज की लालसा में कृषि रसायनों एवं उर्वरकों का अन्धाधुंध प्रयोग पिछले 20-30 वर्षों में तीव्र गति से बढ़ा है, परन्तु फसल उत्पादकता की दर उस अनुरूप नहीं बढ़ रही है, जो हमारी मृदा स्वास्थ्य के बदलते स्वरूप को इंगित करती है।
मृदा पर रासायनिक उवर्रकों के असंतुलित उपयोग का कुप्रभाव
उन्होंने कहा कि मृदा में यूरिया एवं अन्य नाइट्रोजनयुक्त रासायनिक खादों के असंतुलित उपयोग से वायुमंडल में नाइट्रस ऑक्साइड जैसे गैसों के अत्यधिक उत्सर्जन का खतरा बढ़ रहा है। फसल उत्पादकता को बढ़ाने एवं श्रम लागत को कम करने में कृषि यांत्रिकरण की अहम भूमिका रही है। परन्तु शोध में पाये जाने वाले परिणाम के अनुसार कुछ कृषि यंत्र मृदा के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव यथा मिट्टी की संरचना (Soil Structure) में परिवर्तन तथा मृदा संघनन (Soil Compaction) इत्यादि को दर्शाते हैं, इसलिए कृषि यंत्रों के उपयोग पर युक्तिसंगत विचार किया जाना आवश्यक है।
मृदा स्वास्थ्य के सुधार हेतु विभिन्न योजनाओं का कार्यान्वयन
श्री अग्रवाल ने कहा कि वैश्विक समुदाय द्वारा मृदा स्वास्थ्य को सतत् विकास के महत्वपूर्ण घटक के रूप में देखा जा रहा है। वर्तमान में कृषि विभाग द्वारा मृदा स्वास्थ्य को अक्षुण्ण रखने तथा सतत् विकास के परिकल्पना के साथ समायोजित करने हेतु किसानों को मिट्टी जाँच के आधार पर अनुशंसित उर्वरक के प्रयोग हेतु मृदा स्वास्थ्य कार्ड का वितरण, जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ाने हेतु ढ़ैंचा एवं मूंग बीज का वितरण, पोषक तत्वों के चक्रण हेतु फसल विविधीकरण को बढ़ावा, जीरो टिलेज, संरक्षित खेती एवं जलवायु अनुकूल खेती जैसे आधुनिक तकनीक को बढ़ावा दिया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि आज समय की माँग है कि मृदा स्वास्थ्य को अक्षुण्ण रखने हेतु सभी हितधारकों यथा कृषक, कृषि वैज्ञानिक, नीति-निर्माता, उपभोक्ता इत्यादि को एक सूत्र में पिरोया जाये, ताकि इसे एक लोक नीति के रूप में सभी हितधारकों द्वारा स्वीकार किया जा सके तथा उनकी एक समान सहभागिता एवं सहमति सुनिश्चित हो सके। इसलिए आज के इस एक दिवसीय कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य किसानों एवं वैज्ञानिकों के संवाद द्वारा मृदा स्वास्थ्य के वास्तविक पहलुओं पर चर्चा किया गया, जिससे वर्तमान एवं भविष्य के हित में मृदा स्वास्थ्य पर सशक्त लोक नीति का निर्माण किया जा सके।

इस बैठक में अपर निदेषक (शष्य) श्री धनंजयपति त्रिपाठी, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ0 एच0एस0 सिद्धू, ICRISAT के वैज्ञानिक डॉ0 एम0एल0 जाट, बीसा, जबलपुर के वैज्ञानिक डॉ0 रवि गोपाल सिंह, डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर के प्राध्यापक डॉ0 रंजन लाईक, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर के सहायक प्राध्यापक (मृदा विज्ञान) डॉ0 सुनील कुमार, सीसा, पटना के वैज्ञानिक डॉ0 एस0पी0 पुनिया, विश्व बैंक नई दिल्ली के विशेषज्ञ सुश्री सौम्या श्रीवास्तव सहित अन्य पदाधिकारी एवं विशेषज्ञ तथा किसानगण उपस्थित थे।

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