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ओए “भगतां धन्य है तेरी मां” जिसने तेरे जैसे वीर पुत्र को जन्म दिया -बोघा

केवल सच-पलामू

किशुनपुर – भगत सिंह की बैरक की साफ-सफाई करने वाले वाल्मीकि समाज के व्यक्ति का नाम बोघा था ।भगत सिंह उसको बेबे (मां) कह कर बुलाते थे , जब कोई पूछता की भगत सिंह यह भंगी बोघा तेरी बेबे कैसे हुआ ?तब भगत सिंह कहते मेरे द्वारा नित्य क्रिया या तो मेरी बेबे ने उठाया या भले पुरुष बोघे ने, बोघे में मैं मां अर्थात अपनी बेबे को देखता हूं। यह मेरी बेबे ही है , यह कहकर भगत सिंह बोघे को अपने आलिंगन में भर लेते हैं । भगत सिंह जी प्रायः बोघा से कहते बेबे मैं तेरे हाथों की रोटी खाना चाहता हूं। पर वह अपनी जाति को याद करके झिझक जाता और कहता भगत सिंह तू ऊंची जात का सरदार और मैं एक अदना सा भंगी “भगतां तू रहने दे ,जिद ना कर” ।भगत सिंह फिर भी अपनी जीद के पक्के थे फांसी से कुछ दिन पहले जिद करके उन्होंने बोघे को कहा बेबे अब तो हम चंद दिन के मेहमान हैं, अब तो इच्छा पूरी कर दे ।बोघे की आंखों में आंसू बह चले रोते-रोते उसने स्वयं अपने हाथों से उस वीर बलिदानी के लिए रोटियां बनाई और अपने हाथों से ही खिलाए। भगत सिंह के मुंह में रोटी का ग्रास डालते ही बोघे की रुलाई टूट पड़ी “ओए भगतां ओए मेरे शेर” धन्य है तेरी मां जिसने तुझे जन्म दिया। भगत सिंह ने बोघे को अपने आलिंगन में भर लिया। ऐसी सोच के मालिक थे सरदार भगत सिंह जी। परंतु आजादी के 75 वर्ष बाद भी हम समाज में व्याप्त उच्च नीच के भेदभाव की भावना को दूर करने के लिए वह ना कर पाए जो 88 वर्ष पहले भगत सिंह ने किया। महान बलिदानी भगत सिंह को हम सभी का प्रणाम।

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