ताजा खबर

*माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की उपासना से शुरु हुई नवरात्रि*।।…

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, 17 अक्टूबर :: माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की उपासना से आज से शुरु हुई नवरात्रि। माँ शैलपुत्री के आराधना से प्राणियों को सभी प्रकार का मनोवांछित फल प्राप्त होता है। माँ शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का पुष्प रहता है। माँ की वाहन वृषभ हैं। माँ की उपासना में साधक अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं, क्योंकि शैलपुत्री का पूजन करने से ‘मूलाधार चक्र’ जागृत होता है और यहीं से योग साधना आरंभ होती है।

माँ दुर्गा को मातृ शक्ति यानी स्नेह, करूणा और ममता का स्वरूप मानकर पूजा किया जाता हैं। इसलिये पूजा में सभी तीर्थों, नदियों, समुद्रों, नवग्रहों, दिक्पालों, दिशाओं, नगर देवता, ग्राम देवता सहित सभी योगिनियों को भी आमंत्रित किया जाता है और कलश में उन्हें विराजने की आहवान के साथ हीं, सभी देवी-देवता की पूजा होती है।

*“जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा, स्वधा नामोस्तुते”*

इस मंत्र का ध्यान कर सुख, सम्पत्ति एवं आरोग्य के लिए आराधना करते हैं। माँ दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल पर बीच में स्थापित की जाती है और उनके दोनों तरफ यानि, दायीं ओर देवी महालक्ष्मी, गणेश और विजया नामक योगिनी की प्रतिमा रहती है और बायीं ओर कार्तिकेय, देवी महासरस्वती और जया नामक योगिनी रहती है।

” *वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्द्वकृत शेखराम।*
*वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम॥”*

माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री और संस्कृत में शैल का अर्थ पर्वत होने के कारण माँ शैलपुत्री कहलाती हैं। माँ दुर्गा शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक सनातन काल से मनाया जाता रहा है। आदि-शक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में पूजा की जाती है इसलिये इसे नवरात्र के नाम जाना जाता है। यह पर्व हिन्दू समाज का एक महत्वपूर्ण पर्व है जिसका धार्मिक, आध्यात्मिक, नैतिक एवं सांसारिक इन चारों ही दृष्टिकोण से काफी महत्व है।

दुर्गा पूजा का त्यौहार वर्ष में दो बार मनाया जाता है। एक चैत्र मास में और दूसरा आश्विन मास में। चैत्र मास में माँ दुर्गा की पूजा बड़े ही धूम धाम से की जाती है लेकिन आश्विन मास में माँ दुर्गा की पूजा का सप्तशती में भी  शारदीय नवरात्रि की महिमा का विशेष व्याख्यान किया गया है। दोनों मासों में दुर्गा पूजा का विधान एक जैसा ही है, दोनों ही प्रतिपदा से दशमी तिथि तक मनायी जाती है।

माँ शैलपुत्री को ही पार्वती, हैमवती के नाम से भी जाना जाता है। निर्वाण मन्त्र *“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे”* का यथा सामर्थ जप नवरात्रि की अवधि में करना चाहिए।
————-

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button