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किशनगंज : भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली के नये युग का आगाज

आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार के लिए एक ऐतिहासिक कदम के रूप में तीन नये कानून भारतीया न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) एक जुलाई से लागू होंगे। ये कानून क्रमशः औपनिवेशिक युग के भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे

किशनगंज, 01 जुलाई (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, देश में 01, जुलाई 2024 से ब्रिटिश हुकूमत के तीन आपराधिक कानूनों का अंत और भारतीय संसद द्वारा बनाये गये नये कानून के साथ एक जुलाई का अरुणोदय, भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में एक नये युग का आगाज है। आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार के लिए एक ऐतिहासिक कदम के रूप में तीन नये कानून भारतीया न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) एक जुलाई से लागू होंगे। ये कानून क्रमशः औपनिवेशिक युग के भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे। नये आपराधिक कानूनों के लागू होने के बाद एफआईआर से लेकर अदालत के निर्णय तक की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन हो जायेगी और भारत अपनी आपराधिक न्याय प्रणाली में आधुनिक तकनीक का सबसे अधिक इस्तेमाल करने वाला देश बन जायेगा। यह कानून तारीख दर-तारीख के चलन की समाप्ति सुनिश्चित करेंगे और देश में एक ऐसी न्यायिक प्रणाली स्थापित होगी, जिसके जरिये तीन वर्षों के भीतर न्याय मिलना सुनिश्चित हो सकेगा। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक सुलभ, जवाबदेह, भरोसेमंद और न्याय प्रेरित बनाने का प्रयास है। 600 से अधिक संशोधनों और कुछ जोड़ने एवं हटाने के साथ आपराधिक कानूनों को पारदर्शी, आधुनिक और तकनीकी तौर पर कुशल ढांचे में ढाला गया है, ताकि वे भारत की आपराधिक न्याय व्यवस्था को कमजोर करने वाली मौजूदा चुनौतियों से निपटने में सक्षम हों। तीनों नये आपराधिक कानून को वर्ष 2023 में संसद के शीतकालीन सत्र में पारित किया गया था। नये कानूनों के लागू होने के बाद पुलिस, जांच और न्यायिक व्यवस्था का चेहरा बदल जायेगा। कई तरह के मामलों में इन कानूनों का व्यापक असर पड़ेगा। नये कानूनों में महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराधों की जांच को प्राथमिकता दी गयी है। सूचना दर्ज होने के दो महीने के भीतर जांच पूरी होगी। पीड़ित, गवाह और बड़े पैमाने पर जनता के अधिकारों और भलाई की रक्षा के लिए कुछ खास चीजें जोड़ी गयी हैं और संशोधन किये गये हैं। इन तीनों कानूनों में जीरो एफआईआर, ऑनलाइन शिकायत एवं इलेक्ट्रानिक माध्यम से समन और सभी जघन्य अपराधों में घटना स्थल की अनिवार्य वीडियोग्राफी का प्रावधान शामिल हैं। सबूत एकत्र करने के दौरान घटना स्थल की अनिवार्य रूप से वीडियोग्राफी करायी जायेगी, ताकि सबूतों के साथ छेड़छाड़ न की जा सके। पीड़ित और आरोपी दोनों को ही एफआईआर की कॉपी, पुलिस रिपोर्ट, चार्जशीट, बयान, स्वीकारोक्ति समेत मामले से जुड़े अन्य कागजात 14 दिन के भीतर हासिल करने के हकदार होंगे। मामले को बेवजह लंबा नहीं खींचा जा सके, इसकी भी व्यवस्था की गयी है। कोई भी आदालत मामले को अधिकतम दो सुनवाई तक ही टाल सकती है। गवाहों की सुरक्षा का भी पुख्ता इंतजाम किया गया है। इसके लिए सभी राज्य सरकारों को अनिवार्य रूप से गवाह सुरक्षा योजना लागू करनी होगी। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए बीएनएस में नया अध्याय जोड़ा गया है। आजादी के 76 साल बाद भी राष्ट्र के प्राथमिक आपराधिक कानून में इस भाषा का बने रहना एक उपहास था, जिसे बहुत लंबे समय तक नजरअंदाज किया गया। नये आपराधिक कानूनों को पेश करना और संस्कृत नाम भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय साक्ष्य आधिनियम ब्रिटिश राज से विरासत में मिली भारत की विरासत का अंत है और भारतीय लोकाचार के पुनरुत्थान की शुरुआत है। इन नये कानूनों को लेकर भविष्य के कई प्रश्न भी उपजेंगे, बावजूद इसके सकारात्मक उम्मीद की जानी चाहिये कि ये कानून एक अधिक न्यायसंगत और सामंजस्यपूर्ण समाज के लिए प्रयासरत राष्ट्र की आकांक्षाओं के अनुरूप और भारतीय लोकतंत्र के लचीलेपन और लोगों की बदलती जरूरतों और मूल्यों के अनुरूप विकसित होने की क्षमता का प्रतीक साबित होंगे। पहली बार हमारी आपराधिक न्यायिक प्रणाली भारत द्वारा, भारत के लिए, भारतीय संसद द्वारा बनाये गये कानूनों से चलेगी और पारदर्शी कानूनी प्रक्रियाओं के एक नये युग की शुरुआत होगी।

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