किशनगंज : मौसम में हो रहे बदलाव के कारण बच्चों को निमोनिया का खतरा अधिक
निमोनिया के उपचार में देरी से बचें, लक्षण दिखे तो तुरंत करायें जांच व उपचार
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निमोनिया से बचाव के लिये रखें इन बातों का ध्यान
- बच्चे, खास कर छोटे शिशुओं के पास धूम्रपान करने से बचें।
- बच्चों के आसपास तेज इत्र का प्रयोग, धूप व मोमबत्ती जलाने से बचें।
- बच्चों को संतुलित व स्वस्थ आहार का सेवन करायें, कम उम्र के बच्चों को नियमित अंतराल पर स्तनपान करायें।
- घर में बच्चों के खेलने के स्थान को स्वच्छ, सुंदर व हवादार बनायें।
- बच्चों के पास खांसते, छिंकते समय पर अपना मूंह को पूरी तरह ढकें।
- खाना खाने से पहले बच्चों को हाथ धोने की सही तकनीक का इस्तेमाल के लिये प्रेरित करें।
किशनगंज, 31 मार्च (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, बदलते मौसम का हमारी सेहत पर गहरा असर पड़ता है। कुछ बीमारियां इस मौसम में घात लगाये रहती है। इसमें निमोनिया भी एक है। दरअसल बदलते मौसम में खांसी व जुकाम बेहद आम होता है। लेकिन कई बार खांसी, जुकाम के साथ कफ हमारे लिये बड़ी परेशानी का सबब बन जाता है। निमोनिया ऐसी ही एक स्वास्थ्य जनित परेशानी है। जो हमारे फेफड़ों को प्रभावित करता है। जो मुख्य रूप से जीवाणु या विषाणु के संक्रमण के कारण होता है। व्यस्कों की तुलना में बच्चे मौसम में हो रहे बदलाव, धूल, मिट्टी सहित अन्य चीजों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। लिहाजा उनके रोगग्रस्त होने का खतरा अधिक होता है। गौरतलब है कि निमोनिया पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के प्रमुख कारणों में से एक है। लिहाजा इसके प्रति सतर्कता व सावधानी जरूरी है। सिविल सर्जन डा. राजेश कुमार ने बताया कि निमोनिया से जुड़े लक्षण दिखने पर तत्काल जांच व उपचार को प्राथमिकता दें। इसमें होने वाली किसी तरह की देरी जानलेवा साबित हो सकती है। उन्होंने कहा कि निमोनिया के कारण रोगी की छाती में कफ जम जाता है। इस कारण उसका दम फूलने लगता है। शुरू में ठंड व बाद में बुखार की शिकायत होती है। बच्चों को सर्दी-जुकाम जल्द ठीक न होने पर ये निमोनिया का रूप ले लेता है। इससे सर्दी-खांसी के साथ सांस लेने में परेशानी व घरघराहट की आवाज आती है। इसमें किसी तरह का लक्षण दिखने पर नजदीकी अस्पताल जाकर जरूरी व उपचार को प्राथमिकता दिया जाना चाहिये।सिविल सर्जन डा. राजेश कुमार ने बताया कि बच्चों में रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता का अभाव होता है। साथ ही वे मौसम, धूल, गंदगी सहित अन्य पर्यावरणीय कारकों के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं। व्यस्कों की तुलना में बच्चों के सांस लेने की दर अधिक होती है। जहां एक व्यस्क एक मिनट में 12 से 18 बार सांस लेता है। वहीं तीन साल का बच्चा एक मिनट में 20 से 30 बार सांस लेता है। इसके अलावा बच्चे घर के अंदर व बाहर विभिन्न गतिविधियों में संलग्न रहते हैं। इससे उनके रोगग्रस्त होने का जोखिम अधिक होता है। लिहाजा इस बदलते मौसम में बच्चों की सेहत के प्रति अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अगर बच्चा बार-बार सर्दी-खांसी की चपेट में आ रहा है। सर्दी, खांसी व कफ से जुड़ी शिकायत ठीक होने में अगर ज्यादा वक्त लग रहा है तो बिना किसी देरी के नजदीकी अस्पताल में बच्चों की समुचित जांच के बाद उपचार कराया जाना चाहिये।