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किशनगंज : नवजात शिशु देखभाल व रोग प्रबंधन के लिये एसएनसीयू का सफल संचालन करायें सुनिश्चित: सिविल सर्जन

हर दिन जन्म लेने वाले करीब 20 फीसदी बच्चे होते हैं किसी न किसी रोग के शिकार, सिविल सर्जन ने किया सदर अस्पताल के एसएनसीयू का निरीक्षण, दिये जरूरी निर्देश

किशनगंज, 04 फरवरी (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में मिल रही बेहतर सुविधाओं की वजह से लोगों की सोच बदली है। अब लोग सरकारी स्वास्थ्य सेवा लेने में नहीं हिचक रहे हैं। केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार स्वास्थ्य विभाग को लगातार बेहतर करने में लगी हुई है। बेहतर से बेहतर स्वास्थ्य  सुविधा लोगों को मिले इसके लिए जिलाधिकारी तुषार सिंगला के दिशा निर्देश के आलोक में प्रभारी सिविल सर्जन डा. मंजर आलम द्वारा किया जा रहा हैं। उन्ही सेवाओं में से एक है सदर अस्पताल स्थित एसएनसीयू जिसका निरीक्षण करते हुए संबंधित कार्यों की गहन समीक्षा की सिविल सर्जन ने। निरीक्षण के दौरान उन्होंने कहा कि सदर अस्पताल का एसएनसीयू  सरकारी अस्पताल में के साथ ही निजी अस्पतालों में भी जन्मे बच्चोँ के लिए जीवनरक्षक  साबित हो रहा है। लोग अब निजी अस्पताल की सुविधाओं को छोड़ सरकारी अस्पताल में मौजूद एसएनसीयू पर पूरा भरोसा कर रहे और नवजात शिशुओं को सदर अस्पताल के एसएनसीयू में ही भर्ती करवा रहे हैं। नवजात की मौत से संबंधित अधिकांश मामले प्रसव के 24 घंटों के अंदर घटित होते हैं। समय पूर्व प्रसव, नवजात का संक्रमित होना, प्रसव के दौरान दम घुटना, जन्मजात विकृतियां इसके प्रमुख वजहों में शामिल हैं। समुचित पोषण का अभाव, कम उम्र में शादी, एएनसी जांच की अनदेखी सहित अन्य वजहों से नवजात किसी जन्मजात विकार के शिकार हो सकते हैं। ऐसे बीमार नवजात को तत्काल सुविधाजनक इलाज की सुविधा उपलब्ध कराने में एसएनसीयू यानी स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट की भूमिका महत्वपूर्ण है। जिले में नवजात मृत्यु के मामलों में कमी लाने के उद्देश्य से एसएनसीयू के प्रभावी क्रियान्वयन पर जोर दिया जा रहा है। डा. मंजर आलम ने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक हर दिन पैदा होने वाले करीब 20 फीसदी बच्चे किसी न किसी रोग के शिकार होते हैं। तत्काल उचित चिकित्सकीय सुविधा के अभाव में उन्हें जान का खतरा होता है। उन्होंने कहा कि नवजात में रोग का पता लगाना मुश्किल होता है। जन्म के उपरांत बच्चों के वजन, आकार, आव-भाव, हरकत व लक्षणों के आधार पर रोगग्रस्त नवजात की पहचान की जाती है। जन्म के उपरांत बच्चों का नहीं रोना, शरीर व हाथ पांव का रंग पीला होना, हाथ-पांव ठंडा होना, मां का दूध नहीं पीना, अधिक रोना, चमकी, कटे तालू व होंठ सहित अन्य लक्षणों के आधार पर रोगग्रस्त नवजात की पहचान किये जाने की जानकारी उन्होंने दी। उन्होंने कहा कि एसएनसीयू सेवाओं के प्रति आम लोगों को जागरूक होने की जरूरत है। ताकि इसका समुचित लाभ उठाया जा सके। सिविल सर्जन के निरीक्षण के क्रम में एसएनसीयू में 11 नवजात इलाजरत मिले। स्टॉफ नर्स, पदमा, प्रियंका भारती, भारत सिंह तैनात मिलीं। उन्होंने बताया कि रोग पहचान में आने के तत्काल बाद उन्हें एसएनसीयू में इलाज के लिये भर्ती कराया जाता है। आम लोगों के लिये इसकी सेवांए मुफ्त हैं। जबकि निजी क्लिनिकों में इसी सेवा के लिये लोगों को बड़ी रकम चुकानी पड़ती है। एसएनसीयू के साथ-साथ आईसीयू एवं नवजात शिशु से जुड़े अन्य विभागों के अलावा सदर अस्पताल के सभी विभागों को बेहतर किया गया है। जिसका परिणाम यह है कि सदर अस्पताल में इलाज के प्रति लोगों में विश्वास जगा है। लोग सभी तरह के इलाज के लिए अस्पताल में पहुंच रहे और बेहतर इलाज से लाभान्वित भी हो रहे हैं। बीमार नवजात की 24 से 48 घंटों तक विशेष चिकित्सकीय देखरेख में रहने की जरूरत होती है। इस दौरान नवजात की सेहत पर विशेष निगरानी रखी जाती है। एसएनसीयू आधुनिक सुविधाओं से लैस है। इसमें रेडियो वॉर्मर, ऑक्सीजन की सुविधा, जॉन्डिश पीडित बच्चों के लिये महत्वपूर्ण फोटो थैरेपी सहित नवजात के लिये डाइपर, सक्शन मशीन जैसी सुविधा उपलब्ध हैं।

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