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*जलियांवाला बाग हत्याकांड – गांधी जी ने कहा था ब्रिटिश राज का, सबसे काला अध्याय*

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना,  ::13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर शहर में जलियांवाला बाग में एक भयंकर और दिल दहला देने वाला नरसंहार हुआ था। उस दिन बैसाखी का त्योहार था, और हजारों लोग पुरुष, महिलाएं और बच्चे वहां एक शांतिपूर्ण सभा के लिए इकठ्ठा हुए थे, जो रोलेट एक्ट के खिलाफ थी।

ब्रिटिश जनरल डायर ने उस भीड़ को बिना किसी चेतावनी के घेर लिया था और सैनिकों को आदेश दिया था कि वे भीड़ पर सीधे गोली चलाएं। वहाँ मौजूद लोगों के पास न तो भागने का रास्ता था और न ही कोई बचाव का जरिया। लगभग 379 लोगों की मौत हुई और हजारों घायल हुए, हालांकि असली संख्या इससे कहीं अधिक मानी जाती है। यह घटना पूरे देश में रोष और दुःख का कारण बनी। गांधी जी ने इसे “ब्रिटिश राज का, सबसे काला अध्याय” कहा था।

इस हत्याकांड के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना होने लगी और भारतीयों में आक्रोश बढ़ने लगा। भारतीयों में आक्रोश को बढ़ता देख उसे शांत करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने कुछ पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने की घोषणा की। उनका इरादा था कि पैसों के बल पर लोगों के दुःख को कम किया जा सके और राज के खिलाफ गुस्सा शांत हो सके। लेकिन हर कोई इस लालच में नहीं आया। दो बहादुर महिलाओं ने साफ इनकार कर दी। जब ब्रिटिश अधिकारियों ने मुआवजे के तौर पर कुछ महिलाओं को पैसे देने की कोशिश की, जिनके पति या बेटे मारे गए थे, तो दो बहादुर महिलाओं ने साफ मना कर दिया। मना करने वालों में से एक ने कहा कि “हम अपने बेटे का खून बेचने नहीं आए हैं। अंग्रेजों के पैसे से हमारा दुःख कम नहीं होगा।” वहीं दूसरी ने कहा कि
“जिसने हमारा सब कुछ छीन लिया, उससे मदद लेना हमारे आत्मसम्मान के खिलाफ है।”

दोनों महिलाओं ने जो किया, वह केवल विरोध नहीं था, बल्कि वह अपने आत्मसम्मान और देशभक्ति का प्रतीक था। उन्होंने यह दिखा दिया था कि भारत की जनता सिर्फ गुलाम नहीं थी, बल्कि स्वाभिमानी और जज्बे से भरी हुई थी।

जलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ था और उन दो महिलाओं का मुआवजा ठुकराना, इस बात का सबूत था कि आजादी सिर्फ जमीन या सरकार से नहीं थी, बल्कि आत्मा और सम्मान से जुड़ी थी। अंग्रेजों ने गोली चलाई, लेकिन उन्होंने भारतीयों के जज्बे को नहीं मार पाया था।
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