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किशनगंज : जिले में एईएस व जेई के संभावित खतरों से निपटने की तैयारियों में जुटा स्वास्थ्य विभाग

जानलेवा बीमारी है एईएस व जेई, रोगग्रस्त बच्चों का सही समय पर उचित उपचार जरूरी : जिलाधिकारी

एईएस व जेई के रोग प्रबंधन व उपचार को लेकर DM की अध्यक्षता में टास्क फ़ोर्स का हुआ गठन

मस्तिष्क ज्वर के मरीजों की पहचान एवम् इसके लक्षण:

  • सरदर्द, तेज़ बुखार आना जो 5-7 दिनों से ज्यादा का ना हो।
  • अर्द्ध चेतना एवम् मरीज़ में पहचानने की क्षमता नहीं होना/भ्रम की स्थिति में होना/बच्चें का बेहोश हो जाना।
  • शरीर में चमकी होना अथवा हाथ पैर में थरथराहट होना।
  • पूरे शरीर या किसी खास अंग में लकवा मार देना या हाथ पैर में अकड़ जाना।
  • बच्चें का शारीरिक एवम् मानसिक संतुलन ठीक नहीं होना।

मस्तिष्क ज्वर के बच्चों की पहचान होने पर क्या करना चाहिए:

  • तेज बुखार होने पर पूरे शरीर को ताजे पानी से पोछे एवम् पंखे से हवा करे ताकि बुखार 1oo0 F से कम हो सके।
  • पारासीटामोल की 500mg की गोली अथवा 125mg/5ml की सीरप मरीज़ को उम्र के हिसाब से देना चाहिए।
  • यदि बच्चा बेहोश नहीं हैं तब साफ़ पानी में ORS का घोल बनाकर पिलाए।
  • बेहोशी/मिर्गी की अवस्था में बच्चें को हवादार स्थान पर रखें।
  • बच्चें के शरीर से कपड़ा हटा लें एवम् छायादार जगह में लिटाए एवम् गर्दन सीधा रखें।
  • यदि मरीज़ के मुंह से झाग या लार बार बार व ज्यादा निकल रहा हैं तो साफ़ कपड़े से मरीज़ का मुंह साफ़ करते रहें।
  • मरीज़ को यदि झटके आ रहे हो तो उसके दांतो के बीच साफ़ कपड़ो का एक गोला बनाकर रखें, जिससे जीभ कटने से बच सके।

किशनगंज 29 मार्च (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, जिला स्वास्थ्य विभाग एईएस व जेई के संभावित खतरों से निपटने की तैयारियों में जुट गया है। इसी कड़ी में गुरुवार को जिलाधिकारी तुषार सिंगला की अध्यक्षता में एईएस व जेई यानी चमकी बुखार व मस्तिष्क ज्वर से संबंधित टास्क फ़ोर्स का गठन समाहरणालय सभागार में किया गया। डीएम तुषार सिंगला ने कहा कि चमकी बुखार व मस्तिष्क ज्वर का कुशल प्रबंधन जरूरी है। प्रारंभिक अवस्था में रोग की पहचान व इलाज से जान माल की क्षति को काफी हद तक कम किया जा सकता है। लिहाजा इसे लेकर स्वास्थ्य अधिकारी व कर्मियों को विशेष तौर पर सतर्क रहने की जरूरत है। कार्यक्रम में सिविल सर्जन डा. राजेश कुमार, जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डा. मंजर आलम, डीआईओ डा. देवेन्द्र कुमार , ज़िला परिवहन पदाधिकारी, ज़िला आपूर्ति पदाधिकारी, ज़िला प्रोग्राम पदाधिकारी, डीपीआरओ, डीपीएम डब्ल्यूएचओ के जोनल कॉर्डिनेटर डा. दिलीप कुमार झा, सभी प्रखंडों के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी ने भाग लिया। सिविल सर्जन डा. राजेश कुमार ने कहा कि अप्रैल से लेकर मई का महीना रोग के प्रसार के लिहाज से बेहद संवेदनशील माना जाता है। ये रोग खासतौर पर 01 से 15 साल तक के बच्चों को प्रभावित करता है। कुपोषित बच्चे, वैसे बच्चे जो बिना भरपेट भोजन किये रात में सो जाते हों, खाली पेट कड़ी धूप में लंबे समय तक खेलने, कच्चे व अधपके लीची का सेवन करने वाले बच्चों को ये रोग आसानी से अपनी चपेट में ले सकता है। उन्होंने कहा कि चमकी बुखार व मस्तिष्क ज्वर के संभावित खतरों से प्रभावी तौर पर निपटने की व इसकी रोकथाम व प्रबंधन के साथ-साथ संबंधित मामलों को प्रतिवेदित करने के लिये स्पष्ट दृष्टिकोण विकसित करना मूल उद्देश्य है। जिलाधिकारी ने स्वास्थ्य अधिकारियों को जानकारी ग्रामीण स्तर पर कार्यरत एएनएम, आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, जीविका दीदियों से साझा करने के लिये निर्देशित किया। जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डा. मंजर आलम ने स्वास्थ्य अधिकारी व कर्मियों को रोग प्रबंधन व उपचार से संबंधित विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि सिर में दर्द, तेज बुखार, अर्ध चेतना, मरीज में पहचानने कि क्षमता नहीं होना, भ्रम कि स्थिति में होना, बेहोशी शरीर में चमकी, हाथ व पांव में थरथराहट, रोगग्रस्त बच्चों का शारीरिक व मानसिक संतुलन बिगड़ना एईएस व जेई के सामान्य लक्षण हैं। ठीक नहीं होना मस्तिष्क ज्वर के महत्वपूर्ण लक्षण हैं। इन लक्षणों के प्रकट होने से पहले बुखार हो भी सकता है और नहीं भी। ऐसे मामले सामने आने पर रोग ग्रस्त बच्चों का उचित उपचार जरूरी है। लिहाजा हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर से लेकर सभी प्रमुख चिकित्सा संस्थानों में रोग के उचित प्रबंधन के उद्देश्य से एईएस इमरजेंसी ड्रग किट की उपलब्धता सुनिश्चित कराने की बात उन्होंने कही। डीवीबीडीसीओ ने कहा कि रोग से संबंधित गंभीर मामले सामने आने पर जरूरी उपचार के साथ उन्हें तत्काल एंबुलेस उपलब्ध कराते हुए उच्च चिकित्सा संस्थान रेफर किया जाना जरूरी है। ताकि रोगी का समुचित इलाज संभव हो सके। प्रशिक्षण कार्यक्रम में डब्ल्यूएचओ के जोनल कॉर्डिनेटर डा. दिलीप कुमार झा ने उपस्थित स्वास्थ्य अधिकारी व कर्मियों को रोग से जुड़े तमाम तकनीकी पहलुओं से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि एईएस व जेई एक प्राणघातक बीमारी है। सही समय पर रोग का उचित प्रबंधन नहीं होने से बीमार बच्चों की मौत हो सकती है। एईएस मच्छरों द्वारा प्रेषित इंसेफलाइटिस जिसे जापानी बुखार भी कहा जाता है की एक गंभीर स्थिति है। जो जेई नामक वायरस के कारण होता है। क्यूलेक्स मच्छर इस बीमारी का वाहक है।

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