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किशनगंज : सघन दस्त पखवाड़ा के दौरान स्कूली बच्चों को सिखायी गयी हाथ की धुलाई।

नियमित हाथ की धुलाई स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का हिस्सा है-सिविल सर्जन

  • अत्यधिक दस्त होने के कारण शिशु मृत्यु दर को शून्य स्तर तक लाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष किया जाता है आयोजन।

ओआरएस घोल देने के बावजूद बच्चा ठीक नहीं हुआ तो नज़दीकी स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाएं- डीआईओ

किशनगंज/धर्मेन्द्र सिंह, जिले में दस्त से होने वाले शिशु मृत्यु को शून्य स्तर तक लाने के उद्देश्य से जिले में 15 से 30 जुलाई तक सघन दस्त नियंत्रण पखवाड़ा मनाया जा रहा है इसी क्रम में आज जिले के दिघलबैंक प्रखंड के आदर्श मध्य विद्यालय में स्कूली बच्चो को दस्त से मुक्ति हेतु बच्चों को नियमित हाथ की धुलाई करना सिखाया गया उपस्थित यूनिसेफ के प्रखंड समन्वयक प्रणव कुमार ने बताया की हमारे हाथों में अनदेखी गंदगी छिपी होती है, जो किसी भी वस्तु को छूने, उसका उपयोग करने एवं कई तरह के दैनिक कार्यों के करण होती है। यह गंदगी, बगैर हाथ धोए खाद्य एवं पेय पदार्थों के सेवन से आपके शरीर में जाती हैं, और बीमारियों को जन्म देती हैं। दुनियाभर में कई लोग आज भी हाथ की धुलाई के प्रति जागरूक नहीं हैं। वही कार्यक्रम के बारे में सिविल सर्जन डॉ कौशल किशोर ने बताया की बचपन में स्कूल में सिखाया जाना आवश्यक है कि खाना खाने के पहले हाथ धोना चाहिए। इसके अलावा साफ-सफाई से जुड़ी बहुत सी बातें बताई जाती थी। धीरे-धीरे यह बातें हमारी अच्छी आदतों में शामिल हो गई, लेकिन दुनियाभर में कई लोग आज भी इनके प्रति जागरूक नहीं हैं। हाथ धुलाई कार्यक्रम का उद्देश्य इसी जागरूकता को समाज तक पहुंचाना है। सरकारी स्कूलों एवं कार्यालयों में हाथ धोने से होने वाले लाभ एवं न धोने से होने वाले नुकसान को बताने के लिए विभिन्न आयोजन किया जाना चाहिए। आंगनबाड़ी एवं सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन के पूर्व बच्चों को हाथ धोने के प्रति शिक्षित और जागरूक किया जाता है। ताकि‍ वे इसे अपनी आदत बनाएं। सिविल सर्जन डॉ किशोर ने बताया कि नियमित हाथ की धुलाई स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का ही एक हिस्सा है। क्योंकि हाथ की धुलाई से बीमारियों से बचा जा सकता और यह बेहतर स्वास्थ्य की ओर एक अच्छी पहल है। हर व्यक्ति को स्वास्थ्य के प्रति इन छोटी-छोटी बातों के प्रति सजग होना चाहिए, ताकि हम एक स्वास्थ समाज का निर्माण कर सकें। सघन दस्त पखवाड़ा कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए पूरे अभियान की सतत निगरानी एवं अनुश्रवण करने के लिए वरीय अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति की गई है। इस पखवाड़े के दौरान कुछ विशेष क्षेत्रों में विशेष रूप से ध्यान दिया जा रहा है। इन स्थानों में पर्याप्त सफाई व्यवस्था के अभाव वाले इलाकों के अलावा शहरी क्षेत्रों के झुग्गी-झोपड़ी, कठिन पहुंच वाले क्षेत्र, बाढ़ प्रभावित क्षेत्र, निर्माण कार्य में लगे मजदूरों के परिवार, ईंट भट्टे वाले क्षेत्र, अनाथालय तथा ऐसा चिह्नित क्षेत्र जहां दो-तीन वर्ष पूर्व तक दस्त के मामले अधिक संख्या में पाये गये हों आदि शामिल हैं। वहां इस अभियान को वृहद रूप से चलाया जाएगा। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के घरों में प्रति बच्चा एक-एक ओआरएस पैकेट का वितरण किया जा रहा है। ज़िला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ देवेन्द्र कुमार ने बताया कि जिंक का उपयोग दस्त होने के दौरान बच्चों को आवश्यक रूप से कराया जाएगा। हालांकि दस्त बंद हो जाने के बावजूद जिंक की खुराक 2 माह से 5 वर्ष तक के बच्चों को उम्र के अनुसार 14 दिनों तक जारी रखा जाए। जिंक और ओआरएस के उपयोग के बावजूद दस्त ठीक नहीं हो रहा है तो जल्द ही अपने बच्चे को नज़दीकी स्वास्थ्य केंद्र पर लेकर जाएं। दस्त के दौरान और दस्त के बाद भी नौनिहालों की आयु के अनुसार स्तनपान, ऊपरी आहार एवं भोजन जारी रखना चाहिए। वहीं उम्र के अनुसार शिशु पोषण से संबंधित परामर्श भी दिया जायेगा। पीने के लिए साफ एवं सुरक्षित पेयजल का उपयोग करना चाहिए। खाना बनाने एवं खाना खाने से पूर्व और बच्चे का मल व मूत्र की सफ़ाई करने के बाद साबुन या हैंड सेनिटाइजर से रगड़-रगड़ कर हाथ धोना चाहिए। इससे शरीर के अंदर किसी भी तरह की बैक्टी रिया प्रवेश नहीं कर पायेगी। सबसे अहम बात यह है कि डायरिया होने पर ओआरएस और जिंक का उपयोग करने से बच्चों में तीव्र सुधार होता है।

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