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शिक्षा विभाग के अधिकारी की लापवाही के चलते अभिभावकों को आर्थिक परेशानियों से जूझना पड़ रहा है

 

सुमित कुमार मिश्रा की रिपोर्ट   पटना में संचालित अधिकांश निजी स्कूल संचालक शासन प्रशासन के आदेशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। निजी स्कूलों में भी एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाने का निर्देश है इसके बावजूद अधिकांश निजी स्कूल संचालक दुकानों को चिन्हांकित कर मनमाने ढंग से पाठ्यक्रम संचालित कर रहे हैं। हर साल निजी स्कूलों में किताबें बदल दी जाती है। इसके चलते बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा पाना मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए कठिन होता जा रहा है। सभी निजी स्कूल संचालकों को स्कूल संचालन की अवधि 10 माह का ही शिक्षण शुल्क लेने का नियम हैं, मदवार प्राप्त शुल्क की आडिट रिपोर्ट जिला शिक्षा कार्यालय में जमा करने, शुल्क वृद्धि के लिए जिला शिक्षा अधिकारी की उपस्थिति में शाला प्रबंधन समिति की बैठक में सकारण सर्वसम्मति से निर्णय लेने का निर्देश पूर्व से ही सभी निजी स्कूलों में बिना कारण विद्यार्थियों का गणवेश निर्धारित अवधि में परिवर्तन नहीं करने व गणवेश का एक बार निर्धारण होने पर पांच वर्ष के बाद ही उसमें परिवर्तन करने का निर्देश दिया गया था, ताकि अभिभावकों को आर्थिक नुकसान न हो सके। साथ ही पुस्तक व गणवेश किसी संस्था विशेष से खरीदने के लिए अभिभावकों पर दबाव न डालने की बात भी कही गई थी। कक्षा पहली से कक्षा दसवीं तक केवल एनसीईआरटी की पुस्तकों से अध्ययन करवाने व अन्य सहायक पुस्तकों से अध्ययन नहीं करवाने का आदेश दिया था। साथ ही कक्षा नर्सरी तथा एलकेजी व यूकेजी कक्षाओं के लिए जिन प्रकाशकों की सहायक पुस्तकों को चलाना होगा इसकी जानकारी जिला शिक्षा कार्यालय में दो माह पूर्व देने की बात कही गई थी।

सीबीएसई से मान्यता संबंधी दस्तावेज, शिक्षकों की योग्यता की जानकारी, स्कूल वाहन की फिटनेस, वाहन चालक व सहचालक संबंधी जानकारी के दस्तावेज जिला शिक्षा कार्यालय में प्रस्तुत करने का निर्देश था, मगर विभागीय उदासीनता के चलते जिले में संचालित अधिकांश स्कूल संचालक प्रशासन के निर्देश व नियमों को ताक पर रखकर स्कूल का संचालन कर रहे हैं। यहां ज्यादातर स्कूल के संचालकों ने पुस्तक व गणवेश के लिए दुकान निर्धारित कर दिया है। पालकों को वहीं से सामान खरीदना पड़ता है। सीबीएसई से मान्यता प्राप्त कई स्कूलों में अनावश्यक रूप से कई किताबें बच्चों पर थोप दी जा रही है। इसकी कीमत भी एनसीईआरटी की किताबों से कई गुना अधिक होती है। वर्कबुक, रिफ्रेंस बुक व अन्य किताबों के नाम पर स्कूल संचालक विद्यार्थियों को लंबी लिस्ट थमाते हैं।इसके कारण बच्चों का बस्ता भी भारी हो जाता है।इससे उनके शरीर पर विपरीत असर भी पड़ता है।
हद तो यह है कि यह सारा करोड़ों का व्यापार सरकार को बिना जी एस टी चुकाए चलाया जा रहा है। मगर किसी स्कूल के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने से स्कूल संचालकों के हौसले बुलंद हैं और वे पालकों को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ते।
संत जार्ज एकेडमी मीठापुर पटना में कार्यरत एक अस्थाई कर्मी से बात करने पर जानकारी मिली कि स्कूल ही एक अस्थाई कर्मचारी नियुक्त कर यह व्यापार संचालित करते है या फिर किसी पुस्तक दुकान को निश्चित कर वहां से पुस्तकों की बिक्री करते हैं। जहां अभिभावक जाने को विवश होते है।
शिक्षा विभाग के अधिकारी की लापरवाही या मिलीभगत के चलते अभिभावकों को आर्थिक और मानसिक परेशानियों से जूझना पड़ रहा है।

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