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किशनगंज : जिले में हाई रिस्क प्रेग्नेंसी वाली मरीजों का बनेगा डाटा।

जिले में हाई रिस्क प्रेग्नेंसी वाली महिलाओं की होगी टैगिंग।

किशनगंज/धर्मेन्द्र सिंह, सूबे में शिशु-मातृ मृत्य दर को कम करने के लिए सरकार द्वारा लगातार कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इसके लिए हर तरह खर्च का वहन किया जा रहा है। जिले के सदर अस्पताल सहित सभी सामुदायिक एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व सुरक्षा योजना के तहत प्रत्येक माह की 9 तारीख को गर्भवती महिलाओं का एएनसी किया जाता है। इस दौरान कई हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की महिलाएं आती है। लेकिन ऐसे मरीजों का डाटा तैयार नहीं किया जाता है। इस कारण जितनी सुविधा मिलनी और देखभाल होनी चाहिए वह नहीं हो पाती है। ऐसे में जच्चा-बच्चा दोनों को खतरे की संभावना बढ़ जाती है। इन्ही समस्याओं काे दूर करने के लिए अब प्रत्येक माह की 9 और 21 तारीख को प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अश्वासन कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इसके साथ ही एएनसी के दौरान हाई रिस्क प्रेग्नेंसी वाली महिलाओं का डेटा तैयार करने के साथ-साथ विशेष नजर रखने का आदेश जारी किया गया है। सिविल सर्जन डॉ कौशल किशोर ने बताया कि किसी भी बीमारी को नियंत्रित करने के लिए समय पर जांच होनी जरूरी है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को एएनसी किया जाता है। ताकि जांच के क्रम में किसी प्रकार की समस्या मिलती है तो उसका त्वरित निष्पादन किया जा सके। जांच के क्रम में ही हाई रिस्क प्रेग्नेंसी का भी पता चल पाएगा। इसके लिए कार्यक्रम के दौरान ही महिलाओं को जांच के साथ-साथ उसी दिन रिपोर्ट भी उपलब्ध कराया जाएगा। साथ आवश्यकतानुसार चिकित्सीय सलाह व सहायता भी दी जानी है।सिविल सर्जन डॉ कौशल किशोर ने बताया की हाई रिस्क प्रेग्नेंसी वाले केस पर नजर रखने के लिए विभाग द्वारा कई तरह का गाइडलाइन तैयार किया गया है। मरीज का वजन, पल्स, बीपी, हीमोग्लोबिन, बच्चे का डेवलपमेंट आदि प्रमुख जांच कराना जरूरी है। साथ ही मरीज को दी जाने वाली पूर्जा की टैगिंग भी किया जाना है। उन्होंने बताया कि हाई रिस्क प्रेग्नेंसी केस वाले पूर्जा को रेड एवं सामान्य को ग्रीन टैगिंग किया जाएगा। साथ ही एएनसी के दौरान कम से कम 10 प्रतिशत केस हाई रिस्क प्रेग्नेंसी का होता है। लेकिन सही तरीके से जांच नहीं होने के कारण सही तरह से केयर नहीं हो पाता है। ऐसी महिलाओं को खतरा अधिक सदर अस्पताल में कार्यरत महिला चिकित्सिका डॉ शबनम यास्मिन ने कहा कि हर महिला को एक दिन मां बनना है और इसी से सृष्टि चलती है। उन्होंने बताया की निम्लिखित महिलाये ज्यादा खतरे में होती है। 19 वर्ष से कम और 35 वर्ष से अधिक आयु की गर्भवती महिलाओं को इसका खतरा होता है। कम उम्र की गर्भावस्था और देर से उम्र की गर्भावस्था को उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था कहा जाता है। गर्भावस्था के दौरान खान-पान का ध्यान न रखना और तंबाकू और धूम्रपान का सेवन, खराब जीवनशैली, नशीली दवाओं के प्रयोग से गर्भावस्था की जटिलता बढ़ जाती है। गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर, किडनी संबंधी रोग, मोटापा, एचआईवी, कैंसर जैसी बीमारियां हाई रिस्क प्रेग्नेंसी का कारण बनती हैं।गर्भ में जुड़वा बच्चों के जन्म के कारण हाई रिस्क प्रेग्नेंसी का भी खतरा रहता है। पिछली गर्भावस्था में गर्भपात का जोखिम भविष्य की गर्भावस्था में उच्च जोखिम वाले प्रसव के जोखिम को बढ़ाता है। यदि गर्भवती महिला के रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा सात ग्राम से कम हो तो हाई रिस्क डिलीवरी होने का खतरा रहता है। लगातार तेज बुखार, सिरदर्द, सांस लेने में तकलीफ, पेट में दर्द, भ्रूण के हिलने-डुलने में कमी, पेट के अल्सर, रक्तस्राव और पानी का निर्वहन, बिगड़ी हुई दृष्टि, त्वचा पर दाने, सूजन, वजन बढ़ना। महिला चिकित्सिका डॉ शबनम यास्मिन ने बताया की गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान, तंबाकू, शराब से बचें। सुबह की सैर और व्यायाम करें। मानसिक और शारीरिक रूप से भरपूर आराम करें। भरपूर मात्रा में तरल पदार्थ का सेवन करें। शरीर का वजन बहुत कम या बहुत कम न होने दें। नियमित स्वास्थ्य जांच कराएं। कोई अगर आपको किसी खाने से एलर्जी है तो इसका सेवन बंद कर दें। खाने में चीनी और नमक की मात्रा सीमित रखें। अधिक मात्रा में चाय न पिएं। तनाव से बचें। स्वास्थ्य और पोषण की बात करें तो महिलाओं को सालों से नज़र अंदाज़ किया जाता रहा है। कई परिवारों में यह द्वितीय श्रेणी का उपचार उनके बचपन से ही देखा जा सकता है। गर्भावस्था में पौष्टिक आहार की कमी के कारण गर्भावस्था का उच्च जोखिम होता है। 50-60 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं के रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी होती है। गर्भवती महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति अधिक सावधान रहना चाहिए। गर्भावस्था से संबंधित कोई भी शारीरिक समस्या होने पर चिकित्सकीय सलाह लेनी चाहिए।

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