किशनगंज : शिक्षक बहाली के नए नियम पर शिक्षक संगठनों की राय भी जरूरी: अख्तरूल ईमान

शैक्षणिक स्तर को ऊंचा उठाने का प्रयास सराहनीय है, लेकिन शिक्षकों के हितों की रक्षा होनी चाहिए।
किशनगंज/धर्मेन्द्र सिंह, मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन के बिहार प्रदेश अध्यक्ष व बिहार विधान सभा सदस्य अख्तरूल ईमान ने शिक्षक पुनर्वास की नई संहिता पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने के संबंध में सरकार की ओर से यह कदम उठाया गया है। यह प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय और बेहतर कदम है, लेकिन इसके लिए शिक्षकों के हितों की रक्षा करना भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि इस तरह के महत्वपूर्ण और बड़े फैसले लेने से पहले शिक्षक संगठनों से परामर्श करना और उन्हें विश्वास में लेना एक सकारात्मक और स्वस्थ तरीका है। अगर सरकार ने ऐसा किया होता तो आज ऐसा विरोध और टकराव नहीं होता।
अख्तरूल ईमान ने कहा कि जब सरकार ने वादा किया था कि वह अनुबंध पर बहाल शिक्षकों को नियमित करेगी, तो इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए और बीच का रास्ता निकाला जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस तरह का फैसला पूर्व से बहाल संविदा शिक्षकों को अपमानित करता है जो किसी भी तरह से उचित नहीं है और सरकार को इस पर सहानुभूति पूर्वक विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि लंबे समय तक अध्यापन में रहने के कारण संविदा पर बहाल शिक्षकों की शिक्षण क्षमता में निश्चित रूप से सुधार हुआ है, यह उनका एक सकारात्मक और उज्ज्वल पहलू है, इसे नजर अंदाज नहीं किया जाना चाहिए। लंबे समय तक अध्यापन सेवा में रहने के बाद शिक्षकों की प्रतियोगी परीक्षा से उनमें भारी मानसिक पीड़ा और हीन भावना पैदा होती है।यह बिल्कुल भी सही नहीं है। अख्तरूल ईमान ने सुझाव दिया कि सरकार को उपयुक्त और स्वीकार्य समाधान खोजने के लिए शिक्षक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक करनी चाहिए और ऐसा निर्णय लेना चाहिए जो सभी को स्वीकार्य हो।
इससे शिक्षकों को सड़कों पर नहीं उतरना पड़ेगा और सरकार का नाम भी अच्छा रहेगा। एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष ने सरकार से उम्मीद जताई है कि प्रदेश के स्कूलों में खाली पदों पर करीब 70 हजार उर्दू शिक्षकों की बहाली की जाएगी और अपने वादे व घोषणा के अनुसार सभी उच्च विद्यालयों में उर्दू शिक्षक की अनिवार्य रूप से बहाली की जाएगी। मैट्रिक स्तर तक उर्दू की शिक्षा सुनिश्चित करना और उर्दू को राज्य की दूसरी राजभाषा के रूप में पढ़ाने और सीखने का मार्ग प्रशस्त करना आवश्यक है।