नियंत्रक एवं महालेखाकार(सीएजी) ने राज्य के दो मुख्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति को गलत करार दिया है।हालांकि यह दोनों मुख्य सूचना आयुक्त-आरजेएम पिल्लै एवं अशोक कुमार चौधरी,अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं,मगर सीएजी की निरीक्षण रिपोर्ट ने मुख्य सूचना आयुक्त पद पर तैनाती के लिए अपनाई गई चयन प्रक्रिया पर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।वर्तमान में पूर्व मुख्य सचिव अशोक कुमार सिन्हा राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त हैं।रिपोर्ट में कर्नाटक के एक ऐसे ही मामले का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने नियुक्ति पर की गई सीएजी की आपत्ति को जायज ठहराते हुए कर्नाटक के तत्कालीन मुख्य सूचना आयुक्त के इस दावे को खारिज कर दिया था कि नियुक्ति में कोई गड़बड़ी नहीं की गई है।जवाब में राज्य सरकार ने कहा है कि आरजेएम पिल्लै और अशोक कुमार चौधरी की मुख्य सूचना आयुक्त पर नियुक्ति किसी भी प्रकार से अनुच्छेद 319(बी) का उल्लंघन कर नहीं की गई थी।दोनों को ही महालेखाकार कार्यालय से वेतन एवं भत्ते के भुगतान के लिए पे-स्लिप जारी हुई थी।लेकिन,सीएजी ने कहा है कि सरकार का यह जवाब संतोषजनक नहीं है और न ही इसमें सुप्रीम कोर्ट के किसी ऐसे फैसले का उल्लेख है जिसके तहत कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को शिथिल किया गया हो।सीएजी ने यह भी टिप्पणी की है कि क्यों नहीं इनको दिए गए वेतन एवं भत्ते को सरकार पर अतिरिक्त बोझ मान लिया जाए?आरटीआइ एक्टिविस्ट एवं जन अधिकार मंच के संयोजक शिव प्रकाश राय ने बताया कि आरजेएम पिल्लै ने राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में 11 अगस्त,2012 को योगदान दिया था और इस पद पर 15 नवंबर,2014 तक कार्यरत थे।वहीं अशोक कुमार चौधरी का कार्यकाल 21 अक्टूबर,2009 से लेकर 2 अगस्त,2012 तक था।दोनों ही मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्त होने से ठीक पहले बिहार लोक सेवा आयोग(बीपीएससी) के अध्यक्ष पद पर कार्यरत थे। राय ने कहा कि सरकार को मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त की नियुक्ति को लेकर संवेदनशील रहना चाहिए।इन पदों पर नियुक्ति के लिए जनता के हित का ध्यान रखनेवाले व्यक्तियों को प्राथमिकता देनी चाहिए।