किशनगंज जिले में गेहूं के बाद मक्का की सबसे अधिक खेती होती है। हालांकि इसकी खेती में फायदा को देख किसान अब गेहूं की खेती से विमुख होते जा रहे हैं।विभाग के आंकड़ों की मानें तो इस साल गेहूं की खेती लक्ष्य से भी कम हुई है। वहीं मक्का की खेती पिछले साल से इस बार अधिक हुई है। मालूम हो की गोल्डेन क्राप कहे जानेवाला मक्का किसानों के लिए रीढ़ माना जाता है।इस साल गेहूं की खेती का लक्ष्य 28 हजार था।जिसके विरुद्ध मात्र 20 हजार हेक्टेयर में ही आच्छादन हो पाया है।जबकि मक्का का लक्ष्य 35 सौ हेक्टेयर के विरुद्ध अब तक गरमा व रबी मिलाकर 65 सौ हेक्टेयर में किसानों ने खेती है।जिस तरह से किसानों में मक्के की खेती के प्रति रुचि जगी है।अगर यहां मक्का आधारित उद्योग लगा दिए जाए तो किसानों की तकदीर बदल सकती है।यह जिला परिवहन के मामले में समृद्ध माना जाता है।यहां बीच शहर से एनएच गुजरी है जो बिहार, बंगाल, असम व गुवाहाटी तक को जोड़ती है।वहीं रेल मार्ग के मामले में भी यह जिला अव्वल है।ऐसे में मक्का प्रसंस्करण उद्योग लगने से किसानों को बाजार भी आसानी से उपलब्ध हो जाएंगे वहीं इनके आर्थिक समृद्धि का द्वार भी खुल जाएगा। जिला कृषि पदाधिकारी श्री संतलाल साहा का कहना है की इस बार 25 फीसद गेहूं का आच्छादन कम हुआ है,
प्रखंड हेक्टेयर
दिघल बैंक 1545
बहादुरगंज 905
कोचाधामन 730
किशनगंज 528
ठाकुरगंज 402
पोठिया 296
टेढ़ागाछ 145
वही मक्का का लक्ष्य 35 सौ हेक्टेयर रखा गया है।जिसमें गरमा व रबी मिलाकर किसानों ने 65 सौ हेक्टेयर में इसकी खेती की है।जबकि पिछले साल 35 सौ लक्ष्य के विरुद्ध 6 हजार मक्का का उत्पादन हुआ था। आंकड़ों से स्पष्ट है कि पिछले साल की अपेक्षा इस बार 500 हेक्टेयर अधिक में खेती हुई है।गेहूं का लक्ष्य 28 हजार के विरुद्ध अब तक 20 हजार हेक्टेयर में ही आच्छादन हो पाया है।मक्का की खेती के प्रति किसानों में रुचि जगी है। जिले में मक्का की दोनों फसल गरमा व रबी की खेती हो रही है।पिछले साल की अपेक्षा इस बार किसानों ने 5 सौ हेक्टेयर अधिक में मक्का की खेती की है।