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कैसे मजबूत होगा समाज,भूखा रहेगा अन्नदाता तो….?
- 3 लाख एमटी से अधिक धान का हुआ उत्पादन ।
- 93 हजार हेक्टेयर में की जाती है धान की खेती ।
- 1470 रुपये प्रति क्विंटल लेना है पैक्सों को ।
- 900-1000 रुपये प्रति क्विंटल धान बेचने की है किसानों की मजबूरी ।
किसानों को नहीं मिल रही फसल की सही कीमत,खाद-बीज का भी अभाव’कृषि क्षेत्र की बेहतरी के लिए सरकारी तंत्र उदासीन,सरकारी योजनाओं में बिचौलियों का बोलबाला किसानों की हालत में सुधार तथा खेती की नई तकनीक से अन्न के गोदाम भरने को उत्तरदायी सरकारी कृषि विभाग दूसरी हरित क्रांति के प्रति उदासीन बना हुआ है।सरकार के एग्रीकल्चर रोड मैप का दस प्रतिशत फायदा भी सही किसानों तक नहीं पहुंचता।क्योंकि तमाम सरकारी योजनाओं में बिचौलियों का बोलबाला है।याद रहे कि इसी जिले के किसानों ने साठ के दशक में हरित क्रांति की शुरूआत की थी,लेकिन आज वे न केवल नई तकनीक के मोहताज हैं,बल्कि उन्हें सही खाद-बीज भी वक्त पर नहीं मिल पाता।
आज किसान दिवस है।राजनीतिक रहनुमा उनकी बेहतरी के लिए एक बार फिर दावों की झड़ी लगा देंगे। लेकिन अररिया सहित पूरे सीमांचल में उनकी जो दशा-दिशा है,वह निश्चित रूप से यह सोचने पर विवश कर देती है कि खेती-किसानी के लिए हर साल होने वाले आयोजन केवल हाथी के दांत भर ही हैं। किसान दिवस महज एक रस्म भर ही है।रहनुमाओं को तो इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि अन्नदाता अगर भूखा रहेगा तो समाज कैसे मजबूत होगा।किसानों को नहीं मिलती उपज की सही कीमत सीमांचल में जूट,धान,गेहूं व मकई की खेती बड़े पैमाने पर होती है।बाढ़-सुखाड़ जैसी कुदरती आपदाओं के बावजूद किसान अपने खेतों से रिकार्डतोड़ उत्पादन करते हैं।लेकिन उन्हें अपनी फसल की सही कीमत नहीं मिलती।विडंबना देखिए कि इस साल जिले में 2.30 लाख एमटी धान उत्पादन लक्ष्य के विरुद्ध तीन लाख एमटी से अधिक उपज हुई है।क्राप कटिंग से इस बात की पुष्टि होती है कि इस साल किसानों की मेहनत व धरती मां की रहमत ने अन्नदाता की झोली भर दी है।लेकिन किसानों को समर्थन मूल्य का फायदा नहीं मिल रहा है।अभी एक महीने से किसान अपना धान बेचने के लिए तरस रहे हैं,लेकिन सरकारी घोषणा के बावजूद पैक्सों द्वारा धान की खरीद शुरू नहीं हुई है।लाचार होकर वे अपना धान औने पौने भाव में बेच रहे हैं।कैसे होगी किसानों के दर्द की दवाम,रामपुर कोदरकट्टी के किसान अबु तालिब ने दिन रात मेहनत कर अपने खेत में धान की भरपूर फसल उगाई।लेकिन उसकी उपलब्धि ही अभिशाप बन गयी है।गांव में या उनके पास अपनी फसल के भंडारण की कोई व्यवस्था नहीं है।इसीलिए वे हजार-नौ सौ रुपए प्रति ¨क्वटल की दर से पैकार के हाथ अपनी फसल को बेचने के लिए लाचार हैं। सरकारी खरीद होती तो उन्हें कुछ ज्यादा पैसे मिलते ! वही जिला कृषि पदाधिकारी,अररिया शिवदत्त सिंहा कहते है की खेती-किसानो की तस्वीर को बेहतर करने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।सरकारी योजनाओं में बिचौलिया गिरी हरगिज बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
POSTED BY:-Dharmendra singh DECEMBER 23,2016