न्यायपालिकाविचार

आइये जानते है अपने अधिकारों के बारे में….

महिलाएं आज कामयाबी की बुलंदियों को छू रही हैं।जीवन के हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा व क्षमता का लोहा मनवा रही हैं।इन सब के बावजूद उन पर होने वाले अन्याय, प्रत़ाडना,शोषण आदि में कोई कमी नहीं आई है और कई बार तो उन्हें अपने अधिकारों के बारे में जानकारी तक नही होती तो आइए आज हम जानते हैं महिलाओं के उन् अधिकारों के बारे में जो उन्हे प्राप्त हैं….

1:-अपहरण,भगाना या औरत को शादी के लिए मजबूर करना धारा 366-10 वर्ष
2:-नबालिग लड़की को गलत नियत से अपहरण,भगाना 366A सजा 10 साल
3:-पहली पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह करना,धारा 494 सजा 7 वर्ष
4:-पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता, धारा 498 ए सजा 3 वर्ष
5:-बेइज्जती करना,झूठे आरोप लगाना,धारा 499 सजा 2 वर्ष
6:-दहेज,धारा 304A सजा आजीवन कारावास
7:-दहेज मृत्यु,धारा 304B सजा आजीवन कारावास
8:-आत्महत्या के लिए दबाव बनाना-धारा 306 सजा 10 वर्ष
9:-सार्वजनिक स्थान पर अश्लील कार्य एवं अश्लील गीत गाना धारा 294 सजा 3 माह कैद या जुर्माना या दोनों
10:-महिला की शालीनता भंग करने की मंशा से की गई अश्लील हरकत धारा 354 सजा 2 वर्ष
11:-महिला के साथ अश्लील हरकत करना या अपशब्द कहना धारा 509 सजा 1 वर्ष
12:-बलात्कार धारा 376 सजा 10 वर्ष तक की सजा या उम्रकैद
13:-महिला की सहमति के बगैर गर्भपात कारित करना धारा 313 सजा आजीवन कारावास या 10 वर्ष कैद या जुर्माना इसके आतिरिक्त महिलाऑ के अधिकारो के संरक्षण के लिय समाज में कई सरकारी गैर सरकारी संस्थाये कार्य कर रही हैं आप महिलाये उनसे सम्पर्क कर सकती हैं….।

शादीशुदा या अविवाहित महिला अपने साथ हो रहे अन्याय व प्रत़ाडना के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के अतंर्गत केस दर्ज कराकर उसी घर में रहने का अधिकार पा सकती हैं जिसमें वे रह रही हैं।यदि किसी महिला की सहमती के विरूद्ध उसके पैसे,शेयर्स या बैंक अकाउंट का इस्तेमाल किया जा रहा है तो इस कानून का इस्तेमाल करके वह इसे रोक सकती हैं।इस कानून के अंतर्गत घर का बंटवारा कर महिला को उसी घर में रहने का अधिकार मिल जाता है और उसे प्रताडत करनेवालों को उससे बात तक करने की इजाजत नहीं दी जाती।विवाहित होने की दशा में अपने बच्चो की कस्टडी और मानसिक/शारीरिक प्रत़ाडना का मुआवजा मांगने का अधिकार भी है।घरेलू हिंसा में महिलाएं खुद पर हो रहे अत्याचार के लिए सीधे न्यायालय से गुहार लगा सकती है,इसके लिए वकील को लेकर जाना जरूरी नहीं है।अपनी समस्या के निदान के लिए पीडत महिला वकील,प्रोटेक्शन ऑफिसर और सर्विस प्रोवाइडर में से किसी एक को साथ ले जा सकती हैं और चाहे तो खुद ही अपना पक्ष रख सकती है।हिंदू विवाह अधिनियम-1995 के तहत निम्न परिस्थितियों में कोई भी पत्नी अपने पति से तलाक ले सकती है।पहली पत्नी होने के बावजूद पति द्वारा दूसरी शादी करने पर,पति के सात साल तक लापता होने पर,मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताडत करने पर,अवैध संबंध रखने पर,धर्म परिवर्तन करने पर,पति को गंभीर या लाइलाज बीमारी होने पर,यदि पति ने पत्नी को त्याग दिया हो और उन्हें अलग रहते हुए एक वर्ष से अधिक समय हो चुका हो तो।यदि पति बच्चो की कस्टडी पाने के लिए कोर्ट में पत्नी से पहले याचिका दायर कर दे,तब भी महिला को बच्चो की कस्टडी प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है।तलाक के बाद महिला को गुजारा भत्ता,स्त्री धन और बच्चो की कस्टडी पाने का अधिकार भी होता है,लेकिन इसका फैसला साक्ष्यों के आधार पर अदालत ही करती है।पति की मृत्यु या तलाक होने की स्थिति में महिला अपने बच्चो का संरक्षक बनने का दावा कर सकती है।भारतीय कानून के अनुसार, गर्भपात कराना अपराध की श्रेणी में आता है,लेकिन गर्भ की वजह से यदि महिला के स्वास्थ्य को खतरा हो तो वह गर्भपात करा सकती है।ऎसी स्थिति में उसका गर्भपात वैध माना जाएगा। साथ ही कोई व्यक्ति महिला की सहमति के बिना उसे गर्भपात के लिए बाध्य नहीं कर सकता।यदि वह ऎसा करता है तो महिला कानूनी दावा कर सकती है।तलाक की याचिका पर एक शादीशुदा स्त्री हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन-24 के तहत गुजारा भत्ता ले सकती है।तलाक लेने के निर्णय के बाद सेक्शन-25 के तहत परमानेंट एलिमनी लेने का प्रावधान भी है।विधवा महिलाएं यदि दूसरी शादी नहीं करतीं तो वे अपने ससुर से मेटेनेंस पाने का अधिकार रखती हैं।इतना ही नहीं,यदि पत्नी को दी गई रकम कम लगती है तो वह पति को अधिक खर्च देने के लिए बाध्य भी कर सकती है।गुजारे भत्ते का प्रावधान अडॉप्शन एंव मेंटेनेंस में भी है।सी.आर.पी.सी. के सेक्शन 125 के अंतर्गत पत्नी को मेंटनेंस,जो कि भरण-पोषण के लिए आवश्यक है,का अधिकार मिला है।जिस तरह से हिंदू महिलाओं को ये तमाम अधिकार मिलें हैं,उसी तरह या उसके समकक्ष या समानान्तर अधिकार अन्य महिलाओं (जो हिंदू नहीं है) को भी उनके पर्सनल लॉ मे उपलब्ध हैं,जिनका उपयोग वे कर सकती हैं।भारतीय दंड संहिता 498-ए के तहत किसी शादीशुदा महिला को दहेज के लिए प्रताडित करना कानूनन अपराध है।अब दोषी को सजा के लिए कोर्ट में लाने या सजा की अवधि बढाकर आजीवन कर दी गई है।एक्ट 2005 अगर नहीं जाना तो तो हर कदम पडेगा दू:ख और दर्द सहनाशादीशुदा या अविवाहित महिला अपने साथ हो रहे अन्याय व प्रत़ाडना के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के अतंर्गत केस दर्ज कराकर उसी घर में रहने का अधिकार पा सकती हैं जिसमें वे रह रही हैं।को ये तमाम अधिकार मिलें हैं,उसी तरह या उसके समकक्ष या समानान्तर अधिकार अन्य महिलाओं (जो हिंदू नहीं है) को भी उनके पर्सनल लॉ मे उपलब्ध हैं,जिनका उपयोग वे कर सकती हैं।भारतीय दंड संहिता 498-ए के तहत किसी शादीशुदा महिला को दहेज के लिए प्रताडित करना कानूनन अपराध है। अब दोषी को सजा के लिए कोर्ट में लाने या सजा की अवधि बढाकर आजीवन कर दी गई है।

रिपोर्ट:-पवन सिंह की कलम से 

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