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पार्ट १६: कहाँ गए वो दिन?

बिहार प्रदेश के पूर्व महानिदेशक की कलम से

कानून अपना काम करेगा”। यह युक्ति मैं विद्यार्थी जीवन से सुनता आया था। अर्थ भली-भांति समझ नहीं आया। ऐसा प्रतीत होता था मानो कानून कोई अदृश्य शक्ति है जो सामाजिक व्यवस्था को चलाती रहती है।पुलिस में नौकरी लग गई। वह भी IPS में। यद्यपि कि पूजनीय पिताश्री भी IPS ही थे और पूरा विद्यार्थी जीवन पुलिस की ही गोद में बीता, तथापि समाज और उसकी पेचीदगियाँ समझ नहीं पाया। पढ़ाई भी कर ली विज्ञान की।ट्रेनिंग के दौरान कानून पढ़ा, परन्तु केवल किताबी ज्ञान ही हासिल कर पाया। इस बात का एहसास ज़रूर हुआ कि अगर IPS की सृष्टि की गई है, तो इस सोच के साथ कि वे कानून की बारीकियाँ समझ कर, उसे विभिन्न परिस्थितियों में समाज की तात्कालिक समस्याओं को सुलझाने में बुद्धिमता से उपयोग करें। फ़िजिक्स का विद्यार्थी था तो ऐसा लगता था कि “कानून” न्यूटन लॉ की तरह है जिसको याद सभी कर लेते हैं, परन्तु प्रॉब्लम सॉल्विंग में अप्लाई वही कर पाते हैं जो उसके तह तक जाते हैं।पुलिस अधीक्षक बना तो पाया कि आम आदमी और पुलिस के कनीय सहयोगी के बीच आपसी विश्वास का बेहद अभाव है। पुलिस अधीक्षक की बहुत सारी चुनौतियों में से एक इस विश्वास को कायम करना है।एक ज़िले में एक पुलिस के निरक्षक के विरुद्ध शिकायत आ रही थी कि वे दो परिवारों के बीच के लम्बे झगड़े में पक्षपात करते हैं। मैंने इस समस्या पर बहुत सोचा। कोई हल दिख नहीं रहा था। अगर तबादला कर देता तो केवल एक परिवार के आपसी कलह को आधार बना कर, थाना की स्क्रिप्ट लिख दी जाए, मुझे उचित नहीं लगा। अचानक एक युक्ति सूझी।आदेश पारित किया। जो भी मामला किसी भी रूप में, थाना में इन दोनों परिवार के बीच का आएगा, तो यह थानाध्यक्%E

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