ब्रेकिंग न्यूज़

पार्ट १४ : कहाँ गए वो दिन ?

बिहार प्रदेश के पूर्व  महा निर्देशक की कलम से

स्क्वॉड सावधान। बाएँ मुड़। यह शब्द आज भी मेरे कानों में गूंजते हैं। हैदराबाद के पुलिस अकादमी में योगदान देने ट्रेन से पहुँचा ही था कि परेड शुरू हो गया। एक हवलदार साहब हमारे स्क्वाड के प्रभार में रखे गए थे। पूरे एक वर्ष उनके साथ हमने पुलिस में प्रशिक्षण के क्षण बिताये।विद्यार्थी जीवन में खेल के मैदान से लगाव प्रायः नहीं रहता था सो शारीरिक विकास मानसिक की तुलना में ख़ासा कम हुआ। परेड और शारीरिक व्यायाम के क्लास में पीछे रहा करता था। हाँ, घुड़सवारी में अधिक दिलचस्पी हो गई। संभवतः एक भावना घर कर गई थी कि अपने से अधिक बलशाली प्राणी को तकनीक और बुद्धि से अपने काबू में कैसे किया जा सकता है। हमेशा लगता था कि शारीरिक बल में थोड़ा अभावग्रस्त हूँ तो समस्याओं पर मानसिक शक्ति से काबू पाया जाए। फ़िजिक्स की पढ़ाई से कुछ यही भाव मन में आया।हमारे हवलदार साहब ने व्यायाम के क्लास में, मुझे पुल-अप के बार के नीचे खड़ा किया और पुल-अप का आदेश दिया। मैं बार में लटका ज़रूर पर अपने भारी शरीर को खींच नहीं पाया। हाथों में उतनी शक्ति नहीं थी। हताश होकर मैंने बार छोड़ दी और ज़मीन पर खड़ा हो गया। ज़ोर की आवाज़ कानों में आई – “अभयानंद साहब, आपको उतरने का आदेश नहीं मिला है, आप क्यों उतर गए?”
ऐसे कई वाक़ये हुए जब मैं शारीरिक रूप से उन व्यायामों को पूरा करने में अपने को अक्षम पाता था। कभी कभी हीन भावना भी होती थी।
एक दिन मैंने निर्णय किया कि बिलकुल एकांत में अपने हवलदार साहब से बातें करूँगा, वे परेड ग्राउंड पर बहुत सख्त थे। उनसे डर लगता था।
रविवार का दिन था। छुट्टियाँ थीं। मैं हवलदार साहब के घर पहुँच गया। घर में दाख़िल होते ही, लगा नहीं कि मैं एक सख्त पुलिस के प्रशिक्षक के घर में हूँ। भक्तिमय वातावरण था। ईश्वर पूजा और उसकी आराधना की सभी व्यवस्था उपलब्ध थी उनके घर में। उनका एक अलग स्वरुप देखने को मिला।बड़े आदर से उन्होंने बैठाया। पानी दिया और पधारने का कारण पूछा। संभवतः वे भी हैरान थे कि एक IPS उनके घर पर क्यों आया है।पुलिस में प्रशिक्षकों को “उस्ताद” से सम्बोधित किया जाता है सो हमने वार्ता उसी शब्द से शुरू की। “उस्ताद, मुझसे यह ट्रेनिंग नहीं हो पाएगी। मैं अपने को इस लायक नहीं पाता हूँ। आपकी डाँट जो परेड ग्राउंड पर पड़ती है, वह और भी अधीर बना देती है।” मेरा गला बोलते बोलते रूँध गया। बड़े प्यार से हवलदार साहब ने समझाया और अध्यात्म के माध्यम से बताया कि मुझे हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। ईश्वर भक्ति में आस्था हो और लगन हो, तो कड़ी से कड़ी परीक्षा पास की जा सकती है।वार्ता के दौरान उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उन्हें अनुशासन प्रिय दिखता हूँ और उनकी एक सलाह होगी कि जीवन में कभी भी शराब और सिगरेट का सेवन न करूँ। ढाढस बढ़ा। निराशा के बादल छंट गए थे। चिंतन की मुद्रा में मैं वापस IPS होस्टल लौट गया था। हमारे ऊपर हवलदार साहब की बातों का आजीवन असर रहा।मैंने उन्हें पुलिस का प्रथम गुरु माना, इसके बावजूद कि मेरे पिता स्वयं एक IPS पदाधिकारी थे।DGP बनने के बाद एक प्रबल इच्छा हुई कि अपने इस प्रथम गुरु को बुलाकर सम्मानित कर, कुछ ऋण चुकाऊँ।उनका पता हैदराबाद अकादमी से मालूम किया और उनसे फ़ोन पर बात की। उन्होंने आर्शीवाद अवश्य दिया परन्तु सम्मानित होने से साफ़ इनकार कर दिया। लगा कि वे जीवन की दूसरी डगर पर बहुत दूर निकल गए हैं।सीख मिल गयी थी। नेकी कर और दरिया में डाल।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button