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जब शनिदेव को पिता सूर्यदेव ने बतौर देवराज दिया न्याय

त्रिलोकी नाथ प्रसाद:-एक समय माता छाया के विलुप्त होने के बाद पूरे घटनाक्रम से अनजान होने के चलते संध्या के प्रति अनुराग से भरे हुए थे शनिदेव। तब भगवान विश्वकर्मा ने संध्या को चेताया कि अगर वह शनि से दूर रहेंगी तो वह खुद को सुरक्षित रख सकेंगी, बावजूद देवरानी बनने की तैयारी कर रही संध्या ने पिता का आग्रह ठुकराते हुए उन्हें इस मामले से दूर हट जाने की चेतावनी दे डाली। नाराज भगवान विश्वकर्मा ने उन्हें पिता की हैसियत से फटकार लगाई। इस पर आक्रोशित संध्या ने अपने ही पिता पर शक्ति से हमला कर दिया। लेकिन ऐन वक्त शनिदेव आ गए तो विश्वकर्माजी की जान बच गई।
मां के इस कृत्य से नाराज शनि ने उन्हें नाना विश्वकर्मा के समझाने पर कुछ नहीं कहा। अगले दिन देवराज की जिम्मेदारी उठाने जा रहे सूर्यदेव के अभिषेक में पहुंचकर शनि ने पूजा रुकवा दी। इससे मां संध्या फिर बेकाबू हो गईं और इस बार उन्होंने खुद अपनी और छाया की सच्चाई बयां करते हुए शनिदेव को खूब कोसा। उन्होंने छाया के लिए इतने कटु शब्द और आरोप कहे, जिनसे आहत होकर शनिदेव ने उनकी कोख पर लात मार दी। प्रतिशोध में संध्या ने अपनी सभी शक्तियां बटोर कर शनि का पैर काट दिया। यह देखकर देव और दानवों में हाहाकार मच गया।

और सभी सूर्यदेव की सभा में हो रहे अन्याय को लेकर सवाल उठाने लगे। खुद विश्वकर्मा ने भी सूर्य को उलाहना दिया तो सूर्यदेव ने उन्हें धोखा देने वाली पत्नी संध्या को तिरस्कृत करते हुए शनि से चल रहे बैर को दूर कर उनके हाथ-पैर जोड़ दिए। लेकिन यह भी साफ किया कि संध्या का देवी के तौर दिया गया दंड खाली नहीं जाएगा। जिससे शनि की चाल धीमी और टेढ़ी हो गई। यह सूर्यदेव का बतौर देवराज पहला न्याय था, जिसके पात्र खुद उनके पुत्र शनि बने। सूर्यदेव के इस न्याय को हर किसी ने सराहा। जिसके बाद खुद शनिदेव ने पिता को ग्रहण के घाव से मुक्त कर दिया।

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