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*मिथिला चित्र कलाकार और इसके अंतर्राष्ट्रीय बाजार के बीच के गैप को भरने की जरूरत है : रीना सोपम*

जितेन्द्र कुमार सिन्हा,  ::कोहबर वैसे तो मिथिला के जीवन शैली का एक हिस्सा है लेकिन अब यह एक पारंपरिक चित्रकला के रूप में देश- विदेश में प्रतिष्ठित है। लेकिन इन दिनो इसके सामने कई चुनौतियाँ भी हैं जिसपर चर्चा करने के लिए पटना के मल्टीपर्पस कल्चरल कॉम्प्लेक्स में तीन दिवसीय परिचर्चा और प्रदर्शनी आयोजित की गई थी जिसका समापन आज 17 नवंबर को हुआ।

‘कोहबर, रूट टू रूट’ नाम से आयोजित इस समारोह का आयोजन मिथिला चित्रकला की महिला कलाकारों ने ही किया था। उन्होंने अपने बनाए कोहबर को कला दीर्घा में प्रदर्शित भी किया था और इसके अनेक पहलुओं पर हो रही परिचर्चा में शामिल भी हुईं। वैसे इस आयोजन में कुछ पुरुष कलाकार भी शामिल हुए।

‘कोहबर चित्रकला के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार का मूल्यांकन’ विषय पर आयोजित एक सत्र में शामिल वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र ने कहा कि मिथिला चित्रकला के बढावा के लिए कम काम किया गया है। कलाकारों को स्वयं ही इसकी औनलाइन मार्केटिंग की तरफ बढना चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार तथा कला लेखिका, रीना सोपम ने आयोजन पर चर्चा करते हुए कहा कि यह आयोजन ऐतिहासिक है। महिला कलाकारों ने ही इसे आयोजित किया है। कल तक ये महिलाएं बस कलाकार थीं, आज आयोजक भी बन गईं। यानि महिला सशक्तिकरण के अगले पडाव पर आ गई। मै इसे मिथिला की एक बड़ी उपलब्धि मानते हैं।

विषय पर चर्चा करते हुए रीना सोपम ने कहा कि मिथिला चित्रकला का एक व्यापक बाजार है। बल्कि राष्ट्रीय बाजार से पहले ही ये अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दशकों पहले पहुंच गया था और इसकी यह यात्रा कैसे हुई, इसे आज हम सभी जानते हैं। लेकिन इस कला के अंतर्राष्ट्रीय अपील का सबसे पहला अह्सास तब हुआ मुझे जब हमारे घर की ड्राॅइंग रूम में टंगा हैंडमेड पेपर पर बना कोहबर का एक चित्र हमारे अतिथियों का ध्यान खींचने लगा। हमारी बड़ी बहन, डाॅ रमा दास जो बिहार की वरिष्ठ कत्थक कलाकार हैं, उन्होने माँ और नानी से पूछकर बनाई थी ये पेंटिंग। सबसे पहले तो संगीत लेखक पद्मश्री गजेंद्र नारायण सिंह जो मेरे पिता, प्रो सी एल दास के अभिन्न मित्र थे, वे रमा जी का बनाया कोहबर चित्र मांग कर ले गए। रमा जी ने एक बार फिर कोहबर चित्र बनाया और उसी ड्राॅइंग रूम में लगा दी। लेकिन एक बार फिर ये मांग ली गई। जर्मनी से ध्रुपद का अध्ययन करने बिहार आए थे पीटर और पं रामचतुर मल्लिक ने उन्हे सरोद वादक तथा संगीत इतिहासकार प्रो सी एल दास के पास बिहार की ध्रुपद परंपरा और इसका इतिहास जानने के लिए भेजा था। वे घर आए तो रमा जी का बनाया कोहबर उन्हे भा गया और इस तरह ये कोहबर उनके देश पहुंच गया। बल्कि पीटर ने कुछ और मिथिला चित्र लेने की इच्छा जाहिर की तो रीता जी उसे लेकर स्व यशोदा देवी के पास उपेंद्र महारथी शिल्प संस्थान ले गई थी।

रीना सोपम ने कहा कि इससे पहले उन्होंने घर में मौसी-मामियों को कोहबर बनाते देखा था। मिथिला के जीवन शैली का एक हिस्सा था यह। लेकिन इस घटना ने अह्सास कराया कि कोहबर एक कलात्मक चित्रकला है जिसकी राष्ट्रीय क्या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मांग है।
उन्होने कहा कि आज इस कला की मांग विश्व भर मे है।और मिथिला की लगभग हर महिला इसे आंकती हैं और कलाकार हैं। लेकिन राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय बाजार और दूर दराज इलाके के कलाकारों के बीच अभी भी एक बड़ा गैप है जिसे भरने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अब लोग इसलिए भी चिंतित हैं कि कोहबर में कई बदलाव आने लगे है। तो इसके मूल स्वरूप से अगली पीढी को रूबरू कराने के लिए वर्कशॉप होने चाहिए। सरिता दास ने कहा कि वो अपनी संस्था मिथिलांगन के माध्यम से मिथिला के कलाकारों को प्रदर्शनी का मौका देती है।

बापू टावर के निदेशक, विनय कुमार ने कहा कि पारंपरिक चित्रकला बनाते समय रीतियों का भी ध्यान रखना होगा। आर्ट कॉलेज के पूर्व प्रिसिंपल, अजय पांडेय ने कहा गुणवत्ता पर भी ध्यान हो तथा आर्ट कॉलेज की प्रिसिंपल, राखी कुमारी ने कहा कि मिथिला के रीतिगत संस्कारों को भी बचाना होगा।
आयोजन के उद्घाटन सत्र में बिहार विद्यापीठ के अध्यक्ष, विजय प्रकाश ने कहा कि कोहबर तो मिथिला की शिक्षा प्रणाली का हिस्सा रही है। इंटैक के राज्य कॉर्डिनेटर, प्रेम शरण ने कहा कि पटना में कला दीर्घा की जरूरत है। सुल्तान पैलेस को इस रूप मे विकसित करने की चर्चा एक बार हुई थी, लेकिन वह हो नही पाया। इस अवसर पर वरिष्ठ कलाकार विमला दत्त की किताब, ‘मिथिलाक पावनि तिहार आ सोलह संस्कार ‘ का विमोचन किया गया। विमला जी ने कहा कि कलाकार जीवन के आरंभिक दौर मे अपने लिए चित्र बनाता है लेकिन बाद मे वह समाज के लिए रचता है। मनीषा झा ने 1934से लेकर मिथिला चित्र कला की अब तक की यात्रा पर पावर पौइंट प्रेजेंटेशन दिया। अमृता दास की किताब का लोकार्पण भी हुआ।

कार्यक्रम का संचालन इंटैक पटना चैप्टर के संयोजक भैरव लाल दास ने सफलतापूर्वक किया। कलाकार अलका दास और निभा लाभ ने पूरे आयोजन मे विशेष भूमिका निभाई।

उक्त अवसर पर वहां भारत ज्योति, वरिष्ठ वन पदाधिकारी, प्रियंका, कल्पना मधुकर, चंदना दत्त, श्यामल दास, संजीता, विनीता मल्लिक, हेमंत दास, नीरजा उपस्थित थे।
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