वाराणसी सिविल कोर्ट ने काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद स्थल पर एएसआई से सर्वेक्षण कराने की मंजूरी दे दी है। इस सर्वेक्षण का खर्च यूपी सरकार उठाएगी। सर्वेक्षण के दौरान कमिटी के किसी भी सदस्य को मीडिया से बात करने की इजाजत नहीं होगी।

गौतम कुमार सिंह-चर्चा में क्यों? हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या विवाद मामले (Ayodhya verdict) में उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 {Places of Worship (Special Provisions) Act, 1991} का उल्लेख किया, जो स्वतंत्रता के समय मौजूद धार्मिक उपासना स्थलों को बदलने (Conversion of Religious Places) पर रोक लगाता है।
यह अधिनियम बाबरी मस्ज़िद (वर्ष 1992) के विध्वंस से एक वर्ष पहले सितंबर 1991 में पारित किया गया था।
उद्देश्य:
इस अधिनियम की धारा 3 (Section 3) के तहत किसी पूजा के स्थान या उसके एक खंड को अलग धार्मिक संप्रदाय की पूजा के स्थल में बदलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
यह अधिनियम राज्य पर एक सकारात्मक दायित्व (Positive Obligation) भी प्रदान करता है कि वह स्वतंत्रता के समय मौजूद प्रत्येक पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखे।
सभी धर्मों में समानता बनाए रखने और संरक्षित करने के लिये विधायी दायित्व राज्य की एक आवश्यक धर्मनिरपेक्ष विशेषता (Secular Feature) है, यह भारतीय संविधान की मूल विशेषताओं में से एक है।
छूट (Exemption)
अयोध्या में विवादित स्थल को अधिनियम से छूट दी गई थी इसलिये इस कानून के लागू होने के बाद भी अयोध्या मामले पर मुकदमा लड़ा जा सका।
यह अधिनियम किसी भी पूजा स्थल पर लागू नहीं होता है जो एक प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक या प्राचीन स्मारक हो अथवा पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 (Archaeological Sites and Remains Act, 1958) द्वारा कवर एक पुरातात्विक स्थल है।
दंड
अधिनियम की धारा 6 में अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर जुर्माने के साथ अधिकतम तीन वर्ष की कैद का प्रावधान है।
भारतीय पुरातत्व विभाग को काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित स्थल पर सर्वेक्षण कराने की मंजूरी
वाराणसी की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने विश्वेश्वरनाथ के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी के आवेदन को स्वीकार कर लिया
सर्वेक्षण के दौरान मुस्लिम समुदाय से संबंधित लोगों को विवादित स्थल पर नमाज अदा करने से रोका नहीं जाएगा
सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट श्रीः आशुतोष तिवारी की अदालत ने गुरुवार को विश्वेश्वरनाथ के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी के आवेदन को स्वीकार कर लिया। अदालत में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ के वादमित्र विजयशंकर रस्तोगी की तरफ से वर्ष 1991 से लंबित इस प्राचीन मुकदमे में आवेदन दिया था।
महत्वपुर्ण बातें:-
सर्वेक्षण के दौरान कमिटी इस बात को सुनिश्चित करेगी कि मुस्लिम समुदाय से संबंधित लोगों को विवादित स्थल पर नमाज अदा करने से न रोका जाए। समानांतर खुदाई तभी होगी जब कमिटी इस निष्कर्ष पर पहुंचेगी कि इससे निश्चित निर्णय के बाबत अवशेष जमीन के नीचे मिलने की संभवना है। सर्वेक्षण के लिए डायरेक्टर जनरल 5 सदस्यीय टीम गठित करेंगे जो पुरातत्व विज्ञान में पारंगत और विशेषज्ञ होंगे। कमिटी में दो अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य भी शामिल किए जाएंगे।
याचिका में क्या कहा गया है?
याचिका में कहा गया कि मौजा शहर खास स्थित ज्ञानवापी परिसर के आराजी नंबर 9130, 9131, 9132 रकबा एक बीघे नौ बिस्वा जमीन का पुरातात्विक सर्वेक्षण रडार तकनीक से करके यह बताया जाए कि जो जमीन है, वह मंदिर का अवशेष है या नहीं। साथ ही विवादित ढांचे का फर्श तोड़कर देखा जाए कि 100 फीट ऊंचा ज्योतिर्लिंग स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ वहां मौजूद हैं या नहीं। दीवारें प्राचीन मंदिर की हैं या नहीं।
कब से चल रहा है विवाद?
साल 1991 से चल रहे इस विवाद में 2 अप्रैल को सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट के सिविल जज आशुतोष तिवारी ने दोनों पक्षों के सर्वेक्षण के मुद्दे पर बहस के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट को 1991 में मंदिर के ट्रस्ट की ओर से हिंदुओं को भूमि की बहाली करने के लिए दायर मुकदमे पर यह तय करना बाकी है कि यह सुनवाई योग्य है या नहीं?
दूसरे पक्ष में कौन-कौन शामिल है?
याचिकाकर्ता का दावा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण 2050 साल पहले महाराज विक्रमादित्य ने करवाया था, लेकिन मुगल सम्राट औरंगजेब ने साल 1664 में मंदिर को नष्ट करा दिया था। पूरे मामले में वादी के तौर पर स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर काशी विश्वनाथ और दूसरा पक्ष अंजुमन इंतजामिया मसाजिद और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड हैं। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से अधिवक्ता मुमताज अहमद, रईस अहमद सेंट्रल वक्फ बोर्ड यूपी तौफीक खान और अभय यादव ने कोर्ट में बहस की थी।
कोर्ट ने क्या आदेश?
-एएसआई के डायरेक्टर जनरल पूरी साइट की व्यापक पुरातात्विक भौतिक सर्वेक्षण करेंगे।
-पुरातात्विक सर्वे का पहला उद्देश्य यह पता लगाना होगा कि क्या विवादित जमीन पर मौजूद वर्तमान धार्मिक ढांचा किसी अन्य धार्मिक ढांचे के ऊपर, परिवर्तन या जोड़ से तैयार किया गया है या फिर दूसरे धार्मिक ढांचे के साथ या उसके ऊपर ओवरलैपिंग करके बनाया गया है।
-कमिटी इस बात का भी पता लगाएगी कि क्या विवादित स्थल पर मस्जिद के निर्माण से पहले वहां कोई हिंदू समुदाय से जुड़ा मंदिर कभी मौजूद था।
-अगर ऐसा है तो वह कितने साल पुराना था, उसका साइज कैसा था, उसकी स्मारक और वास्तुशिल्प डिजाइन कैसी थी, और यह किसी हिंदू देवी या देवता से जुड़ा हुआ था, इसका भी पता लगाया जाएगा।
-इस काम के लिए डायरेक्टर जनरल 5 सदस्यीय टीम गठित करेंगे जो पुरातत्व विज्ञान में पारंगत और विशेषज्ञ होंगे। कमिटी में दो अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य भी शामिल किए जाएंगे।
-सर्वेक्षण के दौरान कमिटी इस बात को सुनिश्चित करेगी कि मुस्लिम समुदाय से संबंधित लोगों को विवादित स्थल पर नमाज अदा करने से न रोका जाए।
-यदि सर्वेक्षण कार्य के कारण एक विशेष स्थान पर नमाज की अदा करना संभव नहीं हो तो समिति ऐसे मस्जिद के परिसर में किसी अन्य स्थान पर नमाज अदा करने के लिए एक वैकल्पिक और उपयुक्त स्थान प्रदान करेगी।
-सर्वेक्षण कार्य सुबह 9 बजे से 5 बजे के बीच किया जाएगा।
-सर्वेक्षण के दौरान आम जनता और मीडिया का प्रवेश निषेध रहेगा। न तो पर्यवेक्षक और न ही कमिटी का कोई सदस्य सर्वे के बारे में मीडिया से बात करेगा।-कमिटी विवादित स्थल के धार्मिक निर्माण के प्रत्येक भाग में प्रवेश कर सकेगी और जांच में जीपीआर अथवा जिओ रेडियोलॉजी सिस्टम अथवा दोनों का प्रयोग कर सर्वे करेगी।
-समानांतर खुदाई तभी होगी जब कमिटी इस निष्कर्ष पर पहुंचेगी कि इससे निश्चित निर्णय के बाबत अवशेष जमीन के नीचे मिलने की संभवना है।
हाई कोर्ट में चुनौती देगा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड
उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े मामले में विवादित परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती देगा। बोर्ड के अध्यक्ष जुफर फारूकी ने कहा कि बोर्ड का स्पष्ट मानना है यह मामला पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम- 1991 के दायरे में आता है। इस कानून को अयोध्या मामले की सुनवाई करने वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने बहाल रखा था। लिहाजा ज्ञानवापी मस्जिद का दर्जा किसी भी तरह के संदेह से मुक्त है।
पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम- 1991 का दिया हवाला फारूकी ने कहा कि वाराणसी की फास्ट ट्रैक अदालत का आदेश सवालों के घेरे में है क्योंकि वादी पक्ष की तरफ से कोई भी तकनीकी सुबूत पेश नहीं किए गए कि ज्ञानवापी मस्जिद की जगह पहले कभी कोई मंदिर हुआ करता था। यहां तक कि अयोध्या मसले में भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की गई खुदाई आखिरकार व्यर्थ साबित हुई। उन्होंने दावा किया कि यह संस्थान ऐसा कोई भी सुबूत नहीं पेश कर सका था कि बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी मंदिर को ढहाकर किया गया था। फारूकी ने कहा कि खुद सुप्रीम कोर्ट ने खासतौर पर इस बात का जिक्र भी किया था, लिहाजा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से मस्जिदों की पड़ताल की प्रथा को बंद कर दिया जाना चाहिए,1991 में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ तथा अन्य के पक्षकारों ने ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण तथा हिंदुओं को पूजापाठ करने के अधिकार देने को लेकर मुकदमा दायर किया था।
इस मामले में वादमित्र पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने ज्ञानवापी परिसर तथा कथित विवादित स्थल का भौतिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से भारतीय सर्वेक्षण विभाग से रडार तकनीक से सर्वेक्षण कराने की अदालत से अपील की है!