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मगही भाषा के उन्नयन को ले 88 वर्ष के मिथिलेश का संधर्ष जारी। -मगही भाषा की समृद्धि को ले दिनरात प्रयत्नशील रहते हैं वयोवृद्ध कवि मिथिलेश।

मनीष कमलिया/वारिसलीगंज (नवादा) मगही हम सब मगध वासियो की मां है। हमने जब तोतली आवाज में बोलना सीखा, सबसे पहला उच्चारण मगही भाषा में किया। क्योंकि मगही ही मगध वासियों की मातृभाषा है। मगही हमारी पहचान है। वैसे तो मगही भाषा के उत्थान के लिए मगध क्षेत्र में कई संस्थाएं सक्रिय हैं। उन्हीं में से एक है, मगही मंडप। जिसके संस्थापक हैं सेवा निवृत्त हिंदी के अध्यापक कवि कथाकार मिथिलेश। जिन्होंने मगही भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिलवाने को ले निरंतर लेखन, कार्यक्रम संचालन एवं अन्य प्रकार से भाषा के उन्नयन के प्रति संघर्षरत हैं। अपनी भाषा के अगाध प्रेम के वजह से वे अपने 88 वां वर्षी बाद भी अनवरत मगही उत्थान एवं युवाओ में मगही प्रेम का संचार को ले मगहिया दालान नामक आन लाइन प्लेटफार्म पर 193 वां कार्यक्रम आयोजित हुआ।
वयोवृद्ध कवि मिथिलेश कहते हैं कि 1967 में मगही विकास के लिए मगही मंडप की स्थापना किया। जिसके माध्यम से बिचार गोष्ठी, कवि सम्मेलन का आयोजन कर क्षेत्र के युवाओ में मगही के प्रति चेतना जगाने का काम किया। 1971 से मगही भाषा में सारथी नामक पत्रिका का प्रकाशन, इससे पहले 1970 में मिथिलेश लिखित प्रथम खण्ड काव्य रधिया, शेरावाली, मकरचान्दनी, खण्डर के भोर, सबरी तथा दशरथ मांझी खण्ड काव्य प्रकाशित हुआ। इस दौर में मगही कहानी कनकनशोरा तथा नवगीत संकलन महमह फूल का प्रकाशन कर भाषा की समृद्धि के लिए कार्य किया। कवि कथाकार मिथिलेश की कलम से मातृभाषा मगही के अतिरिक्त राष्ट्रभाषा हिन्दी की सेवा सतत चलाते रहे। 1975 में जीतेगा जग सारा, 1977 में अगला कदम हमारा नामक पद्यनाटिका प्रकाशन के साथ ही क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानी ज्वाला प्रसाद के जीवन पर आधारित उपन्यास छिटकाई जिनने चिंगारी प्रकाशित हुआ। जबकि 2007 में बहुचर्चित हिंदी पत्रिका अस्मिता का प्रकाशन कर अपनी यात्रा अनवरत जारी रखा। इनकी रचित रधिया खण्ड काव्य मगध विश्वविद्यालय के स्नातक से लेकर स्नातकोत्तर की कक्षा में पढ़ाई जाती है। विश्वव्यापी कोरोना संक्रमण के समय कवि सम्मेलन की जगह हर गुरुवार मगहिया दालान नामक आन लाइन कार्यक्रम शुरू किया। जो अपनी निरंतरता बनाकर दूसरा शतक अर्थात 193 वां कार्यक्रम पूरा किया गया। इस बीच दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से मगही चौपाल समेत अन्य कार्यक्रम के माध्यम से युवाओ में भाषा के प्रति अलख जगाने का कार्य कर रहे हैं। 88 वर्ष की उम्र में भी उनकी कलम हर दिन एक नई कविता, कहानी का सृजन करता है। अभी भी इनके रचित कई खण्ड काव्य, कविता एवं कहानी, उपन्यास प्रकाशन की प्रतीक्षा सूची में है। कवि मिथिलेश साफ शब्दों में कहते हैं कि मेरा उद्देश्य मातृभाषा मगही का उन्नयन है। अति प्राचीन भाषा मगही संविधान के अष्टम सूची का सच्चा अधिकारी है। बिहार के संवेदनशील सरकार से मगही भाषा को आठवीं सूची में शामिल करने का निवेदन किया है। उन्होंने कहा कि आने वाला समय मातृभाषा मगही का है।

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