: समाजसेवा :-:

पटना डेस्क
संवैधानिक व्यवस्था में समाजसेवा का मतलब हैं टैक्स
बचाना और कालेधन को सफ़ेद धन में बदलना। सभी ngo
एवं अन्य सामाजिक संस्थाएं चाहे वह आंगनबाड़ी
हो, अस्पताल हो या विद्यालय हो, इन सभी में यहीं खेल
चलता हैं। अभी बढ़े बढे अधिकारी, आईएएस, नेता, जज
आदि इन सभी के नाम पर या इनके परिचितों के नाम
पर, कोई न कोई सामाजिक संस्था रिजिस्टर्ड अवश्य होती
हैं। यह सब कानूनी देखरेख में, इस तरह से होता हैं कि क्या
भ्रष्टाचार हुआ, यह कभी किसी को पता नहीं लग पाता
और न ही किसी के पास भ्रष्टाचार के कोई सुबूत रहते हैं।
अंतिम विजय सत्य की ही होगी। नियम ही ऐसे बनाएं गए
हैं कि सुनियोजित तरीके, से सारे क्रिया क्रलाप को किया
जा सके और कोई इसके विरुद्ध आवाज़ उठाएं, तो या तो
संविधान ख़तरे में पड़ जाता हैं या फ़िर आवाज़ उठाने
वाला व्यक्ति, लेकिन इतने सब के बाद भी विजय सत्य की
ही होगी।