क्या गयाजी में श्राद्ध के बाद तर्पण नहीं करना चाहिए ?

*क्या गयाजी में श्राद्ध के बाद तर्पण नहीं करना चाहिए ? जानिये इस अज्ञानता रुपी बात की सचाई❗*
शास्त्र का वचन है-
*श्रद्ध्या इदं श्राद्धम्* अर्थात्- श्रद्धा ही श्राद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने पूर्वजों के निमित्त यथा सामर्थ्य श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। पुराणो के अनुसार प्रत्येक कुल के पितर पितृपक्ष मे जल के लिए लालायित होकर पितृगण कहते है-
*अपि धन्य: कुले जायाद स्माकं मति मान्नार:।*
*अकुर्वन्वित्तशाठ्यं य: पिण्डान्नो निर्वपिष्यति।।*
हमारे कुल मे कोई ऐसा बुद्धिमान पुरुष पैदा होगा जो हमारा पिंड दान करेगा और तर्पण कर हमे तृप्त करेगा।
और याद रहे श्राद्ध या तर्पण ना करने से हम अपने पितरों के कोप के भागी होते हैं। अत: प्रत्येक व्यक्ति को अपने पितरों की तृप्ति हेतु श्राद्ध करना आवश्यक है।
शास्त्रो के अनुसार श्राद्ध के कई अवसर बताए गए हैं और नित्य तर्पण करना चाहिए, किंतु महालय अर्थात् पितृ पक्ष में तो तर्पण,श्राद्ध अवश्य ही करना चाहिए। श्राद्ध संगम तट, तीर्थ स्थान एवं पवित्र नदी के तट पर करने का भी बहुत महत्व होता है। इन सब में गया श्राद्ध की अपनी विशेष महिमा एवं महत्व है। गया में श्राद्ध करने के पश्चात् पितर देवलोक प्रस्थान कर जाते हैं। कुछ विद्वान गया श्राद्ध को अंतिम श्राद्ध मानते हुए इसके पश्चात् श्राद्ध ना करने का परामर्श देते हैं जो पूर्णत: अनुचित है। ऐसी बात कहकर वे आम जनमानस को भ्रमित करते हैं। शास्त्रानुसार गया श्राद्ध के पश्चात् भी बदरीका क्षेत्र के *”ब्रह्मकपाली”* में श्राद्ध करने का विधान है। प्राचीन काल में जहां ब्रह्मा जी का सिर गिरा था उस क्षेत्र को *”ब्रह्मकपाली”* कहा जाता है। गया में श्राद्ध करने के उपरांत अंतिम श्राद्ध *”ब्रह्मकपाली”* में किया जाता है। हमारे शास्त्रों में श्राद्ध क्षेत्रों का वर्णन प्राप्त होता है जिनमें श्राद्ध करना श्रेष्ठ माना गया है, ये स्थान हैं- प्रयाग, पुष्कर, हरिद्वार, गया एवं ब्रह्मकपाली। कई लोगों को भ्रम होता है कि गया श्राद्ध करने के उपरांत श्राद्ध पक्ष में तर्पण ,पितरो के निमित्त दान एवं ब्राह्मण भोजन बंद कर देना चाहिए, यह एक गलत धारणा है।
गया में श्राद्ध करने के उपरांत भी अपने पितरों के निमित्त तर्पण एवं ब्राह्मण भोजन बंद नहीं करना चाहिए। गया श्राद्ध के उपरांत ब्रह्मकपाली में श्राद्ध किया जाना चाहिए। ब्रह्मकपाली में श्राद्ध करना चाहिए। और शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है कि गया एवं ब्रह्मकपाली में श्राद्ध करने के उपरांत भी अपने पितरों के निमित्त तर्पण,दान एवं ब्राह्मण भोजन करना चाहिए।
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*ज्योतिषाचार्य आचार्य राधाकान्त शास्त्री*
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