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एकल मां का नाम याद आते ही शकुंतला देवी की याद आती है

नवेंदु मिश्र

शेर का मुंह खोलकर दाँत गिननेवाले तेजस्वी बालक भरत का चित्र अंकित है बचपन से स्मृति में। कदाचित इसी चित्र के कारण मुझे पता नहीं क्यों एकल माँ की बात चलते ही सबसे पहले याद ही शंकुतला आतीं हैं।

अप्सरा की पुत्री,अत्यंत रूपवती शकुंतला से राजा दुष्यंत ने स्वयं प्रणय निवेदन कर गंधर्व विवाह किया और बाद में एक श्राप के फलस्वरूप उन्हें पूर्ण रूप से भूल गए (श्राप के इतर भी कई बार पुरुष ऐसा सहज स्वभाववश भी करते हैं)। किसी भी स्त्री के लिए यह बहुत बड़ी बात है। एकल माता होने के अलावा स्त्री के जीवन का सबसे बड़ा दुख जो उसकी समस्त आंतरिक शक्ति को जर्जर बना देता है वह है पति के द्वारा त्याग दिया जाना। कितनी ही स्त्रियों को कहते सुना जाता है,’इतना दुख तो उसके मर जाने पर भी ना होता जितना यह सुनकर हुआ कि अब मैं तुमसे प्रेम नहीं करता,वह मर भी जाता तो भी यह विचार कि वह अपने अंत समय तक मुझसे प्रेम करता था मेरे भग्न हृदय को अपार शांति और शक्ति देता रहता’।

और शकुंतला के पति ने उन्हें पहचानने तक से इंकार कर दिया। उस स्त्री की व्यथा कौन समझ सकता है, स्वयं नत होकर प्रणय निवेदन करनेवाला आज जिसे पहचान तक ना रहा हो, वह भी गर्भवती अवस्था में? यह सामान्य एकल माता परिस्थिति नहीं थी। प्रिय के द्वारा ठुकराई हुई स्त्री अपनी दयनीयतम अवस्था में होती है। प्रायः ऐसे समय में साधारण स्त्रियां मानसिक रूप से तनावग्रस्त हो बच्चों पर चिड़चिड़ाते हुए जीवन काटतीं हैं। पर शंकुतला ने भरत को चक्रवर्ती सम्राट भरत बनने योग्य पोषण दिया। शावक का मुँह फाडकर दाँत गिनते मिले थे भरत, अपनी माता को विस्मृत कर देनेवाले पिता को। यही शकुंतला के स्त्रीत्व, पत्नीत्व और मातृत्व की विजय का आख्यान है।

मानिनी शकुंतला ने पुत्र को पिता का भावनात्मक शोषण करने हेतु शस्त्र की भांति प्रयोग नहीं किया,एक बार ठुकराए जाने के बाद लौटकर कभी पति के द्वार पर गयीं ही नहीं। अपितु बिना एक शब्द कहे अपनी समस्त ऊर्जा एक सबल, ओजस्वी सुपुत्र के जीवन को सार्थक स्वरूप प्रदान करने के लिए केंद्रित, समर्पित कर दी। स्त्रीत्व के इसी गौरव का मान रखने के लिए अंततः नियति ने स्वयं ऐसा घटनाक्रम रचा कि एक दिन स्वयं महाराज दुष्यंत ने अपने आपको अपनी परित्यक्ता पत्नी द्वारा पालपोसकर बड़े किए गए शौर्यवान पुत्र के समक्ष पाया।

व्यथित, आहत, खंडित हृदय के साथ भी इस वीर चरित्र का निर्माण करनेवाली शंकुतला जैसी स्त्रियां ही मुझ जैसी साधारण लडकी का आदर्श हो सकती हैं, आजकल की बहुत सी स्त्रियों की भांति परिस्थितियों का बहाना लेकर संतान को मोहरे की तरह प्रयोग करनेवाली नहीं।
एक स्त्री द्वारा अबोध पुत्र की हत्या कर दिए जाने का समाचार पढ़कर याद आई यह पुरानी पोस्ट।

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