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*UPI यूजर्स के लिए 31 जुलाई से बदलेंगे नियम*

जितेन्द्र कुमार सिन्हा ::डिजिटल इंडिया की रफ्तार ने देशभर में यूपीआइ (UPI) को पेमेंट का सबसे लोकप्रिय माध्यम बना दिया है। अब लगभग हर स्मार्टफोन यूजर गूगल पे, फोनपे या पेटीएम जैसे ऐप्स का इस्तेमाल करके मिनटों में ट्रांजैक्शन कर लेता है। लेकिन अब यह सुविधा थोड़ी सीमित होने जा रही है। नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) ने एक अहम निर्देश जारी किया है, जो 31 जुलाई 2025 से लागू होगा। इसमें यूपीआइ यूजर्स को बैलेंस चेक, ऑटो-पे और ट्रांजैक्शन स्टेटस चेक जैसी सेवाओं के इस्तेमाल पर रोजाना एक सीमा में बांध दिया जाएगा। यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि यूपीआइ नेटवर्क पर अत्यधिक लोड से बचा जा सके और सभी यूज़र्स को समय पर सेवाएं मिल सकें।

अब एक यूजर एक दिन में एक ऐप से अधिकतम 50 बार ही अपना बैंक बैलेंस चेक कर सकेगा। अगर जिन्हें बार-बार बैलेंस देखने की आदत में हैं, तो यह नियम उन के लिए अहम है। NPCI ने कुछ समयावधियों को ‘पीक ऑवर्स’ घोषित किया है, जिसमें सुबह 10 बजे से दोपहर 1 बजे तक और शाम 5 बजे से रात 9:30 बजे तक। इन समयों में बैलेंस चेक जैसी गतिविधियों को सीमित या पूरी तरह रोका जाएगा। UPI ऑटो-पे के जरिए जो लोग सब्सक्रिप्शन सेवाएं (जैसे Netflix, SIP आदि) चालू रखते हैं, उन्हें ध्यान देना होगा कि अब यह सेवाएं केवल पीक टाइम के बाहर ही प्रोसेस होगी। अगर किसी पेमेंट का स्टेटस पेंडिंग है या फेल हुआ है, तो अब सिर्फ 2 घंटे में 3 बार ही उसका स्टेटस चेक कर सकेंगे।

NPCI ने इन निर्देशों के पीछे का तर्क बहुत हद तक स्पष्ट किया है कि कुछ यूजर्स बार-बार बैलेंस चेक या स्टेटस रिक्वेस्ट भेजते हैं, जिससे सर्वर पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है और दूसरों के लेन-देन में देरी होती है। पीक ऑवर्स में सबसे ज्यादा ट्रांजैक्शन होता हैं, ऐसे में सिस्टम की स्थिरता बनाए रखना प्राथमिकता होती है। बैंक अब हर ट्रांजैक्शन के बाद बैलेंस अलर्ट भेजेंगी ताकि ग्राहक बार-बार चेक न करें।
आंकड़ों की नजर में भारत में रोजाना 40 करोड़ से ज्यादा यूपीआइ ट्रांजैक्शन होता हैं। NPCI के अनुसार, करीब 18% ट्रांजैक्शन केवल बैलेंस चेक और स्टेटस रिक्वेस्ट से संबंधित होता हैं। वर्ष 2024 में UPI ट्रांजैक्शन की कुल राशि 200 लाख करोड़ रुपए से अधिक रही है। इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि नेटवर्क पर लोड कितना होता है और NPCI को यह फैसला क्यों लेना पड़ा।

NPCI के निर्देशानुसार, सभी यूपीआइ ऐप्स को अपने सिस्टम में बदलाव करने होंगे कि प्रति यूजर प्रतिदिन बैलेंस चेक सीमा निर्धारित करना। पीक ऑवर्स में बैलेंस चेक और ऑटो-पे रिक्वेस्ट को फिल्टर करना और हर ट्रांजैक्शन के बाद ग्राहकों को स्वतः बैलेंस अलर्ट भेजना। इन परिवर्तनों के लिए ऐप कंपनियों को अपने सर्वर और ऐप डिजाइन में बड़े बदलाव करने होंगे।

यदि ग्राहक हर ट्रांजैक्शन के बाद बैलेंस चेक करते हैं, तो अब ग्राहक को इस आदत को बदलना होगा। अपने SIP, OTT सब्सक्रिप्शन आदि के डेबिट टाइम को नॉन-पीक ऑवर्स में सेट करना होगा ताकि फेल न हों। यदि कोई ट्रांजैक्शन पेंडिंग है, तो जल्दबाजी में बार-बार स्टेटस देखने से बचना होगा, नहीं तो तीन बार की लिमिट के बाद सिस्टम ब्लॉक कर सकता है।

NPCI ने बैंकों को निर्देश दिया है कि प्रत्येक लेनदेन के बाद ग्राहकों को SMS या ऐप नोटिफिकेशन के माध्यम से बैलेंस की जानकारी दें। यूपीआइ रिक्वेस्ट की संख्या और स्पीड को नियंत्रित करें और पीक समय में अप्राथमिक सेवाओं (जैसे बैलेंस चेक) को प्रोसेस न करें। यह बदलाव ग्राहकों की सुविधा के लिए है, लेकिन इसे सही ढंग से लागू करने की जिम्मेदारी बैंकों पर ही है।

दुनिया के अन्य डिजिटल पेमेंट प्लेटफॉर्म जैसे Venmo (USA), WeChat Pay (China), PayPal आदि में भी बैकएंड लिमिट्स होता हैं, लेकिन वे यूजर पर सीधे लागू नहीं होता है। भारत में UPI का इस्तेमाल जिस बड़े पैमाने पर हो रहा है, वह दुनिया में कहीं नहीं है। इसलिए NPCI को यूजर लेवल पर लिमिट लगाने की जरूरत पड़ी है।

यदि कोई व्यक्ति तीन ऐप यूज करता हैं, तो वह कुल 150 बार बैलेंस देख सकता हैं। यानि एक ऐप यूज करने पर 50 बार बैलेंस देख सकता है। यह सभी यूपीआइ यूजर्स पर लागू होगा। लेकिन व्यापारिक अकाउंट्स के लिए अलग से गाइडलाइंस आ सकता हैं। इसके अतिरिक्त बैंकिंग, इंटरनेट बैंकिंग या ATM के माध्यम से बैलेंस देखा जा सकता है।

31 जुलाई 2025 से लागू होने वाले यूपीआइ नियम निश्चित रूप से शुरुआत में कुछ लोगों को असुविधा दे सकता हैं, लेकिन इसका उद्देश्य संपूर्ण डिजिटल पेमेंट सिस्टम को स्थिर और निर्बाध बनाए रखना है। ग्राहकों को अपनी आदतों में थोड़ा बदलाव लाकर इस व्यवस्था में सामंजस्य बैठाना होगा। NPCI का यह प्रयास डिजिटल इंडिया की नींव को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यदि हम तकनीकी सुधारों को समझदारी से अपनाएं, तो ये सीमाएं नहीं बल्कि एक बेहतर अनुभव की दिशा में प्रगति होगी।
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