ताजा खबर

*सतत एवं समावेशी विकास में विधायिका की भूमिका*

त्रिलोकी नाथ प्रसाद/10वां राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) भारत क्षेत्र सम्मेलन 2024 का समापन संसद भवन, नई दिल्ली में हुआ। बिहार विधान परिषद् के माननीय सभापति श्री अवधेश नारायण सिंह ने सम्मेलन का विषय “सतत एवं समावेशी विकास की प्राप्ति में विधायी निकायों की भूमिका” पर अपना वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि सतत एवं समावेशी विकास के बारे में अनेक विद्वानों ने अपना नजरिया पेश किया है। लेकिन सबसे प्रचलित परिभाषा 1987 ई. में ब्रटलैंड आयोग ने अपनी रिपोर्ट में दी। इस रिपोर्ट के अनुसार विकास ऐसा होना चाहिए जो वर्तमान की जरूरतों की पूर्ति इस प्रकार करे जिससे भविष्य की पीढि़यों की जरूरतों को पूरा करने की क्षमता पर असर न हो। इस आयोग के अनुसार सतत विकास के तीन उद्देश्य हैं: 1. आर्थिक कुशलता 2. सामाजिक स्वीकार्यता 3. पारिस्थितिकीय टिकाऊपन। साथ हीं विकास ऐसा होना चाहिए जिसमें आय का समान वितरण हो और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कम से कम हो। विश्व. के आम नागरिकों तक रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार, पेयजल, स्वास्थ्य , शिक्षा की सुविधा अनिवार्य रूप से पहुंचे। सतत विकास के लक्ष्य को हासिल करने के लिए योजनाओं का निमार्ण, कार्यान्वयन, लाभान्वितों से फीड बैक एवं इसके आधार पर सुधारात्मक कार्रवाई, अर्थात विकास के सभी पक्षों को कार्यान्वित एवं नियंत्रित करने का कार्य संसदीय व्यवस्था के अंतर्गत संभव है।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button