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वनों में आग का बढ़ता खतरा: भारत के वनों की स्थिति -श्री बिवाश रंजन

त्रिलोकी नाथ प्रसाद:-अतिरिक्त महानिदेशक (वन एवं वन्यजीव), पर्यावरण,वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय जीवन के प्रमुख तत्वों में से एक, आग समाज में और मानवता के समग्र अस्तित्व के लिए एक अभिन्न भूमिका निभाती है। आग वन पर्यावरण का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह स्वस्थ वनों को संरक्षित करने, पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण, पुनर्विकास की प्रक्रिया में वृक्ष की प्रजातियों की मदद करने, विदेशी एवं आक्रामक प्रजातियों को हटाने और लंबे समय तक प्राकृतिक वास बनाए रखने में अहम रही है। हालांकि, हाल के वर्षों में वनों में लगने वाली आग की तीव्रता, आवृत्ति और प्रसार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। हर साल, वनों के बड़े भूभाग अलग-अलग तीव्रता एवं पैमाने वाली आग से प्रभावित होते हैं। वनों में लगने वाली आग अब वनों के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक प्रमुख खतरा बन गई है।

पिछले एक दशक के दौरान भारत में एवं विश्व स्तर पर बड़े पैमाने की और अनियंत्रित आग की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। आग की इन घटनाओं ने कई जानें ली हैं, जंगलों एवं जैव विविधता को खासी क्षति पहुंचायी है, जिससे जी-20 के कई देशों में संपत्ति का व्यापक नुकसान हुआ है और बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए हैं। वनों में लगने वाली आग भी वनों के नुकसान का एक प्रमुख कारण है। वर्ष 2001 से 2021 के बीच, वनों की आग के कारण वैश्विक स्तर पर होने वाली वनों की कुल हानि का लगभग एक तिहाई यानी 118 मिलियन हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र1 का नुकसान हुआ।

अप्रैल 2020 में, 2019 की तुलना में दुनिया भर में आग की चेतावनियों की संख्या में 13 फीसदी की वृद्धि हुई, जोकि आग लगने की घटनाओं की दृष्टि से एक रिकॉर्ड वर्ष2 रहा। अलग-अलग स्तर पर, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और ब्राजील जैसे देश हाल ही में आग की कई बड़ी घटनाओं के गवाह बने3। वास्तव में, अकेले भारत ने पिछले दो दशकों में वनों में लगने वाली आग की घटनाओं में 10 गुना वृद्धि देखी है4। जहां कुल वनाच्छादन में 1.12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, वहीं वनों में लगने वाली आग की घटनाओं की आवृत्ति में 52 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। अनुमान है कि देश के 36 प्रतिशत से अधिक वनाच्छादन में बार-बार लगने वाली आग और राज्यों के 62 प्रतिशत से अधिक वनाच्छादन में उच्च तीव्रता वाली आग का खतरा रहता है5।
दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह, भारत में भी वनों में लगने वाली आग मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों के कारण होती है। जनसंख्या का दबाव, भूमि प्रबंधन की वर्तमान एवं ऐतिहासिक प्रणालियां, एक उपकरण के तौर पर आग का उपयोग, वन संसाधनों की मांग, लापरवाही और मानवजनित जलवायु परिवर्तन कुछ ऐसे कारक हैं, जिन्होंने वर्तमान वन व्यवस्था की रूपरेखा को ठोस तरीके से प्रभावित किया है।

आग मिट्टी के भौतिक एवं रासायनिक, दोनों गुणों को प्रभावित करती है। विशेष रूप से मिट्टी की उत्पादक परत को। भौतिक गुणों में परिवर्तन से जहां उत्पादक मिट्टी का नुकसान होता है, अपवाह में वृद्धि होती है तथा भूमिगत जल पुनर्भरण कम होता है, वहीं रासायनिक गुणों में परिवर्तन मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ और पोषक तत्वों के समीकरण को प्रभावित करता है। बार-बार लगने वाली आग बीज स्रोतों को कम करती है, अंततः वनो के पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्जनन और सिलसिले को प्रभावित करती है। उत्तर-पूर्वी भारत में, आग से जुड़े झूम चक्रों के जल्दी-जल्दी होने से भी मिट्टी की उर्वरता पर हानिकारक प्रभाव पड़ा है। जलवायु परिवर्तन और भूमि के उपयोग में बदलाव से आग की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि होने का पूर्वानुमान लगाया गया है। वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर प्रचंड आग की घटनाओं में 14 प्रतिशत तक, 2050 के अंत तक 30 प्रतिशत और इस सदी के अंत में 50 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो जाएगी7। बायोमास में कार्बन सहित मूल्यवान वन संसाधन हर साल वनों में लगने वाली आग के कारण नष्ट हो जाते हैं, जिससे वनों से मिलने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रवाह प्रभावित होता है।
वनों में लगने वाली आग पेड़ों, इकोसिस्टम एवं खाद्य आपूर्ति को नष्ट करके और शिकार के लिए जीवित जानवरों की संवेदनशीलता को बढ़ाकर जैव विविधता पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकती है। इसके अतिरिक्त, वे उन समुदायों की आर्थिक स्थिति को भी सीधे प्रभावित कर सकती हैं जो आय के स्रोत के रूप में वनों और गैर-इमारती वन उत्पादों पर निर्भर हैं। सेवाओं एवं उपयोगों की एक व्यापक श्रृंखला के लिए छोटे धारकों की वनों पर अधिक निर्भरता को देखते हुए, वनों में लगने वाली आग से जुड़े आर्थिक नुकसान बड़े धारकों की तुलना में छोटे धारकों के लिए बहुत अधिक भारी हो सकते हैं। भारत में वनों की आग से होने वाले नुकसान की संभावित लागत प्रति वर्ष 1,101 करोड़ रुपये से अधिक होने का अनुमान है।

यह तर्क दिया जा सकता है कि वनों में लगने वाली आग के इकोसिस्टम पर नकारात्मक और सकारात्मक, दोनों ही तरह के प्रभाव हो सकते हैं। ऐतिहासिक रूप से, आग ने वनस्पतियों और जीवों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आग वनों को स्वस्थ रखने, पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण, वृक्ष प्रजातियों के पुनर्जनन में सहायता, आक्रामक खरपतवारों और रोगजनकों को हटाने तथा प्राकृतिक वासों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कभी-कभार लगने वाली आग ईंधन के उस भंडार को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है जो बड़े और अधिक विनाशकारी वनों की आग को भड़का सकती है। हालांकि, आग की घटनाएं बढ़ती जनसंख्या वृद्धि और वन संसाधनों की परिणामी मांगों के साथ नियंत्रण से बाहर होकर उस बिंदु पर पहुंच गई हैं, जहां आग अब वनों की सेहत को नहीं बनाए रखती है। वास्तव में, आग बड़े भू-भाग को जला रही है और जलवायु के गर्म होने के कारण आग का मौसम लंबा होता जा रहा है।

जिस तरह सभी देश तेजी से वनों की आग और अन्य जलवायु संबंधी खतरों से निपटने के लिए सामाजिक-आर्थिक दृढ़ता को और बेहतर करने की दिशा में काम कर रहे हैं, वैसे ही वनों में लगने वाली आग से प्रभावित भूमि का पुनरुद्धार करने की भी जरूरत है। आग लगने से पहले उसके जोखिम को कम करने और उसके बाद बेहतर तरीके से उबरने की दृष्टि से इकोसिस्टम की पुनर्बहाली एक महत्वपूर्ण तरीका है। इसलिए, वनों की पारिस्थितिक अखंडता को बनाए रखने और प्रभावित वन परिदृश्यों की स्थिरता के लिए आग की घटना के बाद वनों की पुनर्बहाली अनिवार्य है।
भारत की अध्यक्षता से संबंधित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के महत्वाकांक्षी, समावेशी, निर्णायक और कार्रवाई-उन्मुख दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, पर्यावरण जलवायु स्थिरता कार्य समूह (ईसीएसडब्ल्यूजी) जी-20 के देशों में वनों की आग से प्रभावित क्षेत्रों में सार्थक कार्रवाई करने और इकोसिस्टम की बहाली में तेजी लाने के उद्देश्य से वनों में लगने वाली आग से जुड़े चर्चित मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करेगा और उनका समाधान करेगा। वनों में लगने वाली आग की घटनाओं में तेज और खतरनाक वृद्धि की वैश्विक प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, भारत की अध्यक्षता ‘एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य’ के सिद्धांत में निहित जी-20 के देशों के बीच ज्ञान एवं सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय कार्यप्रणालियों के सक्रिय साझाकरण और सहयोग को प्रोत्साहित करेगी।

 

 

 

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सन्दर्भ-
1. Global Forest Watch (Data pulled January 2023): www.globalforestwatch.org
2. WWF & BCG. (2020). Fires, Forests, and the Future.
3. FAO. 2022. The State of the World’s Forests 2022. Forest pathways for green recovery and building inclusive, resilient and sustainable economies. Rome, FAO.
4. Mohanty, Abinash and VidurMithal. 2022. Managing Forest Fires in a Changing Climate. New Delhi: Council on Energy, Environment and Water.
5. FSI. (2019). India State of Forest Report.
6. ICFRE (2019. Forest Fires in India
7. United Nations Environment Programme (2022). Spreading like Wildfire – The Rising Threat of Extraordinary Landscape Fires. A UNEP Rapid Response Assessment. Nairobi
8. Dogra, Pyush, Andrew Michael Mitchell, Urvashi Narain, Christopher Sall, Ross Smith, and Shraddha Suresh. 2018. “Strengthening Forest Fire Management in India”. World Bank, Washington DC

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