सूचना के अधिकार क़ानून पर मोदी–नीतीश सरकार का हमला: राष्ट्रीय प्रवक्ता अभय दुबे*
*“सूचना का अधिकार, जीवन का अधिकार”: राष्ट्रीय प्रवक्ता अभय दुबे*

मुकेश कुमार/बिहार प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय सदाकत आश्रम में आयोजित संवाददाता सम्मेलन को राष्ट्रीय प्रवक्ता अभय दुबे और प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के चेयरमैन राजेश राठौड़ ने संयुक्त रूप से संबोधित किया।
संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय प्रवक्ता अभय दुबे ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI Act, 2005) डॉ. मनमोहन सिंह और श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व में 12 अक्टूबर 2005 को पारित हुआ था।
यह कानून भारत के नागरिकों के संवैधानिक और सामाजिक सशक्तिकरण का सबसे प्रभावी माध्यम बना।
इसने आम जनता को सरकारी तंत्र से जवाब माँगने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की ताकत दी।
राष्ट्रीय प्रवक्ता अभय दुबे ने कहा कि आरटीआई के माध्यम से लाखों नागरिकों ने अपने हक़ — जैसे राशन, पेंशन, मज़दूरी, छात्रवृत्ति और योजनाओं का लाभ — हासिल किया।
परंतु पिछले दशक में, विशेषकर मोदी–नीतीश सरकार के दौरान, इस कानून की आत्मा को कुचलने की संगठित कोशिश हुई है।
कांग्रेस पारदर्शी प्रशासन के लिए 12 अक्टूबर 2005 में लाई थी सूचना का अधिकार कानून
यूपीए सरकार ने अपने अधिकार-आधारित एजेंडा के तहत मनरेगा (2005), वन अधिकार अधिनियम (2006), शिक्षा का अधिकार (2009), भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवज़ा कानून (2013) और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (2013) जैसे जनकल्याणकारी क़ानून लागू किए।
इसी क्रम में “सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005” भारतीय लोकतंत्र की आत्मा बना — जिसने सत्ता को जनता के प्रति जवाबदेह बनाया।
बिहार में सूचना आयोग की स्थिति — “पारदर्शिता पर पर्दा”
धारा 25 के अनुसार आयोग को हर वर्ष अपनी रिपोर्ट प्रकाशित करनी चाहिए,
लेकिन 2017–18 के बाद कोई वार्षिक रिपोर्ट जारी नहीं हुई है — यानी पिछले सात वर्षों से बिहार में पारदर्शिता ठप है।
सतर्क नागरिक संगठन (Satark Nagrik Sangathan) की रिपोर्ट 2023–24 बताती है —
• बिहार में 25,101 से अधिक अपीलें और शिकायतें लंबित हैं।
• आयोग ने 11,807 अपीलें और शिकायतें वापस कीं, जबकि उसी अवधि में 10,548 ही दर्ज हुई थीं।
• एक अपील या शिकायत को निपटाने में औसतन 5 वर्ष का समय लग रहा है।
स्पष्ट है कि बिहार सरकार ने आरटीआई को पंगु बना दिया है — पारदर्शिता अब सत्ता के डर से दबी हुई है।
बिहार में RTI माँगने की सज़ा — “सच्चाई के बदले मौत”
बिहार में सूचना माँगना अब साहस नहीं, बल्कि जोखिम का काम बन चुका है।
पिछले वर्षों में आरटीआई से भ्रष्टाचार उजागर करने वाले असंख्य कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है —
क्रम कार्यकर्ता का नाम जिला
1 शशिधर मिश्रा बेगूसराय
2 गोपाल प्रसाद बक्सर
3 रामविलास सिंह लखीसराय
4 डॉ. मुरलीधर जायसवाल मुंगेर
5 राहुल कुमार मुज़फ़्फरपुर
6 राजेश कुमार (यादव) भागलपुर
7 राम कुमार ठाकुर मुज़फ़्फरपुर (रत्नौली)
8 शिवशंकर झा सहरसा
9 सुरेन्द्र शर्मा पटना (मसौढ़ी)
10 गोपाल तिवारी गोपालगंज
11 रामकान्त सिंह रोहतास
12 मृतुंजय सिंह भोजपुर
13 जयंत कुमार वैशाली
14 राजेन्द्र प्रसाद सिंह पूर्वी चंपारण
15 वाल्मीकि यादव जमुई
16 भोला साह बांका
17 पंकज कुमार पटना (पालीगंज)
18 श्यामसुंदर कुमार बेगूसराय
19 विपिन अग्रवाल पूर्वी चंपारण (हरसिद्धी)
20 मोहम्मद हारून पश्चिम चंपारण
मोदी–नीतीश सरकार का रिकॉर्ड — “सूचना से डर, सवाल से परहेज़”
2019 के संशोधनों ने सूचना आयोगों की स्वायत्तता समाप्त कर दी,
केंद्र को आयुक्तों का कार्यकाल और वेतन तय करने का अधिकार दिया गया, जिससे आयोग सरकार के अधीन हो गए।
2023 के डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट ने “व्यक्तिगत जानकारी” को इतना व्यापक बना दिया कि अब
जनहित में मांगी गई जानकारी भी रोकी जा सकती है — चाहे वह
प्रधानमंत्री के विदेश दौरों पर खर्च की जानकारी हो या पीएम-केयर्स फंड का विवरण।
यह लोकतंत्र की नींव — सार्वजनिक जवाबदेही — पर सीधा प्रहार है।
कांग्रेस पार्टी की माँगें
1. 2019 के संशोधन निरस्त किए जाएँ, और सूचना आयोगों की स्वतंत्रता बहाल की जाए।
2. डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन कानून की धारा 44(3) में संशोधन कर जनहित की जानकारी को फिर से सार्वजनिक किया जाए।
3. बिहार सूचना आयोग की सभी लंबित वार्षिक रिपोर्टें तुरंत जारी की जाएँ।
4. आयोगों में सभी रिक्त पदों की नियुक्ति पारदर्शी प्रक्रिया से की जाए।
5. व्हिसलब्लोअर प्रोटेक्शन कानून लागू कर आरटीआई उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
6. आयोगों में पत्रकारों, शिक्षाविदों, कार्यकर्ताओं और महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाए।
बिहार कांग्रेस के मीडिया विभाग के चेयरमैन राजेश राठौड़ ने कहा कि हमारे देश की मोदी सरकार तालिबानी संस्कृति थोपना चाहती है। महिला पत्रकारों को अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री के आगमन पर संवाददाता सम्मेलन में जाने से रोकना इसका ताजा उदाहरण है। हमारे देश में महिलाओं का हमेशा सम्मान करने की संस्कृति रही लेकिन वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा ऐसे तालिबानी कानून हमारे देश में भी थोपने की कवायद निंदनीय है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राष्ट्रपति रही प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जैसी सशक्त महिलाओं ने हमारा नेतृत्व किया। जबकि आज हमारे देश में अफगानिस्तान के विदेश मंत्री के आगमन पर महिला पत्रकारों को बैन कर दिया जा रहा है। केंद्र की भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और विदेश मंत्री एस जयशंकर को सार्वजनिक माफी मांगनी चाहिए।
संवाददाता सम्मेलन में प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष जितेंद्र गुप्ता, प्रवक्ता डॉ. स्नेहाशीष वर्धन पाण्डेय, नदीम अख्तर अंसारी मौजूद रहें।