आओ खेलें जात-जात..

पटना/त्रिलोकीनाथ प्रसाद, विकास के लिए जानवर से लेकर आदमी तक परेशान है लेकिन विकास की चौखट पर पहुंचने के लिए मजबूत साधन एवं संसाधन क्या होंगे उसके ठोस उपाय के बजाय हम जात-जात का परिक्रमा का खेल, खेल रहे हैं।सर्वविदित है कि जिस भी देश-प्रदेश में राजनीति एवं राजनेता की नियत एवं नियति व्यवस्थित हो उसका विकास कोई रोक ही नहीं सकता और भारत का विकास के लिए 15 अगस्त 1947 से लेकर 11 मई 2020 तक सिर्फ कागजों एवं DPR के कोरम पूरा किया गया है का कूटनीति पर कार्य किया जा रहा है अन्यथा विकास ही नहीं विकसित माहौल के दहलीज पर भारत अब तक विश्व मे मजबूत स्थान बना चुका होता। सनातन को अलग कर दें तो आजादी का मूल अर्थ भी देशवासियों के समझ से परे है।इंदिरा की शक्ति, राजीव की आधुनिकीकरण, अटल की फोरलेन, मनमोहन की दरियादिली और मोदी का 56 इंच से विकास संभव नहीं क्योंकि इनके मूल उद्देश्य में भारत का विकास के बजाय लगभग डेढ़ अरब वाला भारत की जनता को सपना दिखाकर मूर्ख बनाना है।किसी दल में टिकट की बात हो या किसी मंत्रालय या विभाग में तबादले और प्रमोशन की, हम जात-जात खेलने लगते हैं और मनोनुकुल स्थिति या पद नहीं मिलने पर वही जात-जात का दुश्मन बन जाता है।संचार क्रांति के युग में हम सभी जात-जात खेलकर भारत को विश्वगुरु बनाने का झूठा ख्वाब नहीं तो और क्या देख रहे हैं।हद तो तब हो जाता है जब राष्ट्रीय पार्टी भी अब विचारों एवं सिद्धान्तों को ठेंगा दिखाते हुए जातिवाद का जहर फैलाने का सारे हथकंडे अपनाने का प्रयत्न कर रही है।दीगर बात है कि ऐसे में राष्ट्रवाद की सिर्फ दुहाई से बड़ा जात-जात का वर्चस्व स्थापित हो चुका है।इसके उदाहरण भी हैं जिसमें मोदी को शाह पर, नीतीश को आर०सी०पी० सिंह पर और देश की सभी पार्टियों का भी कमोवेश यही हाल है और यही कारण है कि जात-जात के खेल में अब प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री पार्टी के नाम का संधि-विच्छेद करने लगा है।देश चांद-मंगल पर पहुंच गया और भारत वर्ण व्यवस्था से जात-जात की राजनीति करके विकास की रफ्तार को ब्रेकर से धीमी करने में कामयाब हो चुकी है।आजादी के 73 साल में भी हम देशवासियों के लिए रोटी-पकड़ा-मकान की समुचित व्यवस्था करने में फंसे हैं बल्कि संचारक्रान्ति के महासंग्राम में हर घर शौचालय बनाकर भारत को विश्वगुरु बनाना चाहते हैं।जब सिर्फ जात-जात होगा तो 1990 से 2020 तक बिहार कितना बढा है अवलोकन किया जा सकता है।आज बिहार में यादव एवं कुर्मी जाति का होना राजनीति के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।वहीं जात-जात को सिंहासन पर बैठाने के दलित-महादलित का खेल भी पूरे देश मे बदस्तूर जारी है।नीतीश कुमार को समाजवाद का प्रणेता बनाने वाले इस खबर से आप संतुष्ट हो सकते हैं क्योंकि..आप से अधिक सोचने की क्षमता को ध्वस्त कर चुके हैं।बिहार में शराब बंद भी जात-जात के राजनीतिक खेल को ध्वस्त करने के लिए किया गया था।रेडियो से लेकर अन्य सुविधा में जात-जात देखकर योजना बनाया जाता है लेकिन सवर्ण और खासकर ब्राह्मण खुद को उदारवादी और विकल्पहीनता का हवाला देकर खुद ज्ञानी चाणक्य के अवतार समझते हैं जैसा माहौल की वजह से देश के भीतर विकल्पहीनता का आभाव दिखने लगता है।जब तक जात-जात का खेल बदस्तूर जारी रहेगा तो विकास की कहानी तो ऐसी ही लिखी जाती रहेगी और मुसीबत आने पर घर लौट रहे प्रवासी मजदूर की चिंता सताती रहेगी और चिंतन, चिता में तब्दील होगी।जात-जात खेलिए लेकिन सिर्फ दमाद एवं बहू चुनने लिए अन्यथा यह कारनामे आपके विकसित दिमाग पर ग्रहण बनकर तांडव मचाता रहेगा और विकास तो दूर फिर न कहीं हम किसी अन्य देश का आर्थिक गुलाम बन जाएं।इस बात आप खुद को झुठला नहीं सकते कि किसी भी जाति के पास यह योग्यता-दक्षता-कर्मठता-निष्ठा-धैर्य-शौर्य-बलिदान-त्याग- समर्पण का भाव हो वह आज के जातिवाद-परिवारवाद-वंशवाद होते हुए क्षेत्रवाद की राजनीति करता हो।राष्ट्रवाद के लिए बस एक ही जाति होनी चाहिए, वह है भारतीय।कुछ बहक गया हूँ इस लेख में लगे, तो क्षमा।आज के लिए बस इतना ही…