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पटना : असंवैधानिक नहीं हैं नागरिकता संशोधन बिल, अधूरी ज्ञान से जल रहा देश..

पटना/श्रीधर पांडे, नागरिकता संशोधन बिल को 10 दिसम्बर 2019 को लोकसभा में एवं 11 दिसम्बर 2019 को राज्यसभा में साधारण बहुमत के तहत पारित किया गया एवं इस बिल पर 12 दिसम्बर को राष्ट्रपति की हस्ताक्षर के बाद कानून बन गया।इस बिल के लागू होते ही देश में हिंसा, आगजनी, विरोध में लोग सड़क पर उत्तर आए और इन्हें असंवैधानिक करार देते हुए प्रदर्शन करने लगे।देश आज भी इस आग में जल रहा हैं लोगो के मन मे कई तरह के प्रश्न उठ रहे है, आइए देखते हैं।

क्या हैं नागरिकता संशोधन बिल 2019

नागरिकता संशोधन बिल में स्पष्ट तौर पर वर्णित हैं पड़ोसी देश पाकिस्तान बंग्लादेश एवं अफगानिस्तान से 31 दिसम्बर 2014 से पहले आए शरणार्थी हिन्दू, सिख, बौद्ध, ईसाई, पारसी, जैन लोग भारत के नागरिक होंगे।इस विधेयक में भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए इन्हें केवल 5 वर्षो तक भारत मे रहने का शर्त का भी वर्णन मिलता हैं साथ ही साथ इस विधेयक में मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता संशोधन 2019 के तहत नागरिकता नहीं प्रदान किए जाने का भी वर्णन हैं।

असंवैधानिक नहीं हैं नागरिक संशोधन बिल

भारतीय नागरिकता संशोधन का प्रावधान संविधान के भाग 2 के अनुच्छेद 5 से 11 तक मे वर्णन हैं जिसमें संवैधानिक संशोधन नहीं किया गया हैं बल्कि नागरिकता संशोधन अधिनियम 1955 में कुछ बदलाव किए हैं जिसके लिए लोकसभा एवं राज्यसभा में साधारण बहुमत की जरूरत होती हैं, उसके बाद में राष्ट्रपति के हस्ताक्षरनुसार यह विधेयक लागू हो जाता हैं।इस अधिनियम के बनने के बाद से इसमें यह नौंवी बार संशोधन किया जा रहा हैं।1955 के नागरिक संशोधन अधिनियम के अनुसार भारत मे नागरिकता प्राप्त करने के लिए पहले 11 साल रहने की शर्त का प्रावधान था और नागरिकता प्राप्त करने के लिए कम से कम उसे 1 साल पहले से यहाँ रहने की जरूरत होती थी, जिसमें कुछ ढिलाई करते हुए इसकी समय सीमा पाकिस्तान, बंगलादेश एवं अफगानिस्तान के 6 धर्मो को क्रमशः हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी एवं जैन को मानने वाले के लिए 5 साल के लिए कर दिया गया हैं।गौरतलब हो कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने मेनिफेस्टो में स्पष्ट लिखा था कि उनकी सरकार आएगी तो वे नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू करेंगे।वे अपने किये गए वादों को पूरा कर रही हैं, जिससे पूरे देश में तरह तरह के सवाल उठ रहे हैं कोई धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठा रहा हैं तो किसी के मन मे दूसरा सवाल ? तमाम तरह की अफवाहें इतनी फैल गयी हैं कि हर कोई आज सड़क पर उत्तर हिंसा करने वाले लोगो से परेशान हैं ऐसा क्या इस संशोधन में गलत हैं जो परेशानी की वजह हैं, कुछ लोगो का मानना हैं कि सिर्फ मुस्लिम को छोड़कर सभी धर्मों को इसमे क्यों शामिल किया गया हैं, कुछ अफवाहें चल रही हैं कि अवैध मुस्लिम को भारत से निकाल दिया जाएगा, नार्थ ईस्ट में इसके व्यापक प्रभाव देखने को मिल रहे हैं जहाँ हिंसा, झड़प एवं उग्रता में कई लोगो की जाने भी चल गई हैं ? कुछ लोग अनुच्छेद 14 एवं 15 का उल्लंघन भी मान रहे हैं।आपको बताते चले कि नार्थ ईस्ट राज्यो में भयानक हिंसात्मक रूप देखने को मिल रहे हैं खासकर असम में।1971 के बंग्लादेश के बंटवारे के बाद असम में काफी मात्रा में बंगलादेशी घुसपैठियों ने शरण ले रखी थी, जिसकी वजह से वहाँ काफी मात्रा में जनसंख्या बढ़ गयी।असम के लोगो ने इसका जबरदस्त विरोध किया जिसकी वजह से राजीव गांधी की सरकार ने असम ऑकवर्ड 1985 में लिखित समझौता किया था कि सरकार 25 मार्च 1971 के बाद अवैध प्रवासी को असम से निकाला जाएगा साथ ही क्लॉज़ 6 कहता है कि असमिया संस्कृति, सभ्यता एवं भाषा के संरक्षण का प्रयास सरकार करती रहेगी।सांस्कृतिक नायाब, जनसंख्या घनत्व कम, प्राकृतिक सौंदर्य यहाँ के संरक्षण रखना हैं।जबकि नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 में 6ठी अनुसूची में शामिल मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा असम में नहीं लागू होगा।एनआरसी लागू हो जाने के बाद असम में लगभग 19 लाख लोग अवैध बन गए हैं जिसमे से अधिकांश लोग नॉन मुस्लिम हैं इसलिए इस विधेयक को लाना जरूरी हो गया साथ ही इस संशोधन में पड़ोसी बंग्लादेश का नाम जुड़ जाने की वजह से फिर वही घटना की पुनरावृत्ति न हो इसका डर सता रहा हैं जिसकी वजह से वे उग्र रूप ले रहे है बहरहाल ऐसा कुछ इस बिल में नहीं हैं,जिसकी वजह से उग्र होने की जरूरत आन पड़े।जामिया इस्लामियां या अन्य कई जगहों पर हो रहे उग्र प्रदर्शन करने वाले लोगों का कहना हैं कि इन 6 धर्म एवं 3 देश के लोगो को ही नागरिकता संशोधन बिल 2019 में क्यो शामिल किया गया जबकि श्रीलंका में तमिलियन, बंग्लादेश में हिन्दू मुस्लिम, अहमदिया एवं शिया पाकिस्तान में, मधेशी नेपाल में, रोहंगिया म्यामार में, बुद्धिष्ट तिब्बत में भी धार्मिक आधार पर लोग परेशान हैं ? इन देश के लोगो को इस अधिनियम में क्यो नहीं रखा गया।पाकिस्तान, बंग्लादेश एवं अफगानिस्तान के संविधान में उन्हें धार्मिक होने का मेंशन हैं कि वह इस्लामिक देश हैं एवं 1951 के अनुसार पाकिस्तान में नॉन मुस्लिम की जनसंख्या 12.9% थी जो अबघटकर 1.6% हो गई हैं वही बांग्लादेश में 22.8% से घटकर 8.5% पर आ गई हैं।नॉन मुस्लिम की घटती जनसंख्या के आधार पर यह सहज अनुमान लगाया जा सकता हैं कि वहाँ इनलोगो पर अत्याचार हुआ हैं जिसकी वजह से इनलोगो के लिए संशोधन जरूरी थे जिसकी वजह नागरिकता प्रदान करने की अवधि में थोड़ा ढीली बरती गई है ताकि मानवता के आधार पर वह भी यहाँ रहकर अपने रोजगार एवं बच्चे की शिक्षा का फायदा ले सके।इन 6 धर्म एवं तीन देश को छोड़कर बाकी के लिए वही अधिनियम लागू होगा जो पहले से चलता आ रहा हैं चाहे वह मुस्लिम भी क्यों न हो, उसे 1955 की नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत ही मिल सकेगा।आर्टिकल 15 के अनुसार किसी भी नागरिक के साथ जाती,धर्म, क्षेत्र एवं सम्प्रदाय के साथ भेदभाव नहीं करने का वर्णन हैं, जिन्हें नागरिकता नहीं मिली हैं वह व्यक्ति नागरिक कैसे हो सकता है ये बिल्कुल अफवाह की बाते फैलाई जा रही हैं।संविधान की आर्टिकल 13 में मननीय सर्वोच्च न्यायालय इस केश का रिव्यू कर सकते हैं का वर्णन हैं अगर यह गलत हैं तो उसे रद्द भी किया जा सकता हैं लेकिन उपरोक्त बातें स्पष्ट करती हैं।नागरिकता संशोधन अधिनियम पूरी तरह संवैधानिक हैं जबकि अफवाह की आग से देश जल रहा हैं।

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