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आज मोकामा के औंटा ग्राम में आयोजित श्री श्री 1008 विष्णु महायज्ञ एवं श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में भाग लिया।…

त्रिलोकी नाथ प्रसाद-धर्म को जानने वाला दुर्लभ होता है, उसे श्रेष्ठ तरीके से बताने वाला उससे भी दुर्लभ, श्रद्धा से सुनने वाला उससे दुर्लभ, और धर्म का आचरण करनेवाला सुबुद्धिमान सबसे दुर्लभ है। धर्म लोगों को जोड़ने, सही मार्ग दिखाने, परोपकार का रास्ता दिखाता है।

धर्म सत्य सदाचार की महत्ता बताने, बंधुत्व और एकता पैदा करने के लिए होता है। धर्म के नाम पर समाज में विद्वेष और वैमनस्यता नहीं होनी चाहिए।

गरीब, ज़रूरतमंद और लाचार की सेवा और मदद करना ही सबसे बड़ा धर्म है। मानवता और इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है। आपसी भाईचारा, समता, न्याय, बंधुत्व ही धर्म का आधार है।

धार्मिक व्यक्ति के दिल में करुणा, शील और संतोष होता है। सब लोगों को धर्म के मार्ग पर चलकर दीन-दुखियों की मदद करनी चाहिए। हमें आपस में जात और धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। किसी भी प्रकार के वाद-विवाद में पड़कर झगड़ना नहीं चाहिए।

 

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