रबी विपणन, 2024-25 वर्ष के लिए न्यूनत्तम समर्थन मूल्य निर्धारण हेतु कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की बैठक का आयोजन।…
त्रिलोकी नाथ प्रसाद:-सचिव, कृषि विभाग, बिहार श्री संजय कुमार अग्रवाल तथा कृषि लागत एवं मूल्य आयोग, भारत सरकार के अध्यक्ष प्रो॰ विजय पाॅल शर्मा द्वारा बामेती, पटना के सभागार में आयोजित रबी विपणन मौसम, वर्ष 2024-25 में रबी फसलों यथा गेहूँ, जौ, चना, मसूर, राई/सरसों एवं कुसुम की न्यूनत्तम मूल्य निर्धारण हेतु भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के प्रतिनिधियों की बैठक का संयुक्त रूप से उद्घाटन किया गया। इस बैठक में बिहार, पश्चिम बंगाल, उडी़सा, छत्तीसगढ एवं झारखण्ड राज्य के कृषि विभाग के पदाधिकारी, कृषि वैज्ञानिक तथा प्रगतिशील किसानगण भाग लिये।
सचिव, कृषि ने इस बैठक में उपस्थित प्रतिभागियों का स्वागत संबोधन करते हुए कहा कि बिहार कृषि की भूमि है। यहाँ हमने खेती की विषम एवं आधुनिक परिस्थितियों को देखा है। यहाँ के युवा आज जहाँ नई तकनीक के साथ खेती करते है, तो वहीं पुराने लोग भी परम्परागत रूप से खेती कर रहे हंै। देश के कई राज्यों में खेती करने में बिहार के मजदूर का अहम् योगदान रहा है। यहाँ के लोगों को किसानी का अच्छा अनुभव है। उन्होंने कहा कि बिहार राज्य एग्रो इकोनोमी में काफी मजबूत रही है। यहाँ ग्रामीण जनसंख्या सर्वाधिक है, जिसकी खेती पर निर्भरता भारत में सबसे ज्यादा है। बिहार में सरकार द्वारा तीन-तीन कृषि रोड मैप को बनाकर कार्यान्वित किया जा चुका है तथा चैथा कृषि रोड मैप बन रहा है। कृषि लागत मूल्य बढ़ा है। एग्रीकल्चर प्राइसिंग एक महत्त्वपूर्ण विषय हो गया है। कृषि में नई चुनौतियाँ आई है, इसे निपटना आवश्यक है। उन्होंने कहा यदि किसान की आय पर्याप्त नहीं होगी, तो वे बाहर जाने को मजबूर होंगे। फसलों का लागत मूल्य बढ़ा है, इसे कैसे कम किया जाये, इस ओर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। इसमें कृषि विश्वविद्यालयों की बड़ी भूमिका होगी।
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग, भारत सरकार के अध्यक्ष द्वारा बताया गया कि पहले यह बैठक दिल्ली में हुआ करती थी, जिसमें पर्याप्त समय नहीं मिल पाता था, ना ही ज्यादा लोग आ पाते थे। इसको ध्यान में रखते हुए हमने सोचा कि आयोग को ही आपके पास जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके पूर्व 2019 में खरीफ मौसम के लिए कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की बैठक बिहार में हुई थी। यह बिहार में दूसरी बैठक है। उन्होंने कहा कि न्यूनत्तम समर्थन मूल्य में एक बहुत महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। यह आयोग के लिए चुनौती है। इससे किसान, उद्यमी आदि प्रभावित होते हैं। फसलों के उत्पादन में लागत मूल्य बहुत बड़ा फैक्टर है। आज उपभोगता की माँग बदल रहा है। हमें उनकी माँग की हिसाब से फसलों के उत्पादन की योजनाएँ बनानी होगी। उन्होंने कहा कि आज 90 प्रतिशत से ज्यादा लघु एवं सीमांत किसान है। उन्होंने कहा कि उत्पादन लागत कम होने पर किसानों की आय बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि बिहार में मक्का की उत्पादकता राष्ट्रीय औसत से अधिक है, साथ ही, विगत वर्षों में गेहूँ की उत्पादकता में भी वृद्धि हो रही है। मसूर उत्पादन 05-06 साल में बढ़ा है। पूर्वोत्तर राज्य में किसानों को संस्थागत ऋण की उपलब्धता एक चुनौती है। ऋण की साथ-साथ सिंचाई की सुविधा पर भी कार्य किया जाना है। बिहार सरकार द्वारा हर खेत को पानी के लिए संबद्ध विभागों में समय-सारणी के अनुसार कार्य किया जा रहा है, जिससे बहुतायत किसान लाभन्वित होगे। उन्होंने कहा कि इस बैठक में प्रतिभागियों द्वारा अच्छे सुझाव प्राप्त हुए है, आयोग इस पर विचार करेगा। किसान एवं उपभोक्ता की भलाई के लिए आयोग कार्य करेगा। हम वही फसल पैदा करें, जिसकी बाजार में माँग हो।
कृषि निदेशक, बिहार डाॅ॰ आलोक रंजन घोष ने कहा कि 2008 से 2023 तक 03-03 कृषि रोड मैप कार्यान्वित किया गया है, जिससे बिहार में फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि हुई है। बिहार को पाँच-पाँच कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त हुए है। गेहूँ एवं मक्का के औसत उत्पादन में वृद्धि हुई है। चैथे कृषि रोड मैप में जलवायु परिवत्र्तन, फसल विविधता, जैविक खेती, मोटे अनाज को प्राथमिकता दिया गया है। अंत में उनके द्वारा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों को स्मृति चिह्न भेंट किया गया।