मनरेगा घोटाले का खुलासा: दिघलबैंक के जागीर पदमपुर पंचायत में फर्जीवाड़े का आरोप, पारदर्शिता पर उठे सवाल
पहले से मौजूद खुदे हुए तालाब को "दुना तालाब" के नाम से दोबारा योजना में दिखाया गया और उसी पर फिर से निर्माण कार्य दिखाकर फर्जी रूप से योजना की राशि निकाली गई

मनरेगा पोर्टल पर अपलोड की गई मजदूरों की तस्वीरों में कई छात्र-छात्राओं की फोटो लगाई गई हैं, जो कभी भी काम पर नहीं गए
दिघलबैंक के मनरेगा पीओ के नजर में यह सब मजदूर है
किशनगंज/दिघलबैंक,25जून(के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) जैसी देश की सबसे बड़ी श्रम रोजगार योजना की पारदर्शिता पर उस वक्त बड़ा सवाल खड़ा हो गया, जब किशनगंज जिले के दिघलबैंक अंचल के ग्राम पंचायत जागीर पदमपुर से भारी पैमाने पर अनियमितता और गबन का चौंकाने वाला मामला सामने आया। पंचायत के उपसरपंच मोहम्मद नसीम आलम ने पंचायत की मुखिया शायेदा बेगम और पंचायत समिति सदस्य आश्मा खातून पर फर्जी हस्ताक्षरों और कागजी खेल के जरिए योजनाओं की राशि का दुरुपयोग करने का गंभीर आरोप लगाया है।
परिवार के लोग चला रहे पंचायत!
उपसरपंच का कहना है कि योजनाओं में मुखिया के स्थान पर उनके पुत्र सरफराज और समिति सदस्य की जगह उनके पति, डीलर अब्दुल लतीफ, हस्ताक्षर कर योजनाओं की स्वीकृति ले रहे हैं। आरोपों के अनुसार, एक ही योजना को दो बार स्वीकृत कराया गया और एक ही सड़क पर दो बार मिट्टीकरण और बांध निर्माण दिखाकर सरकारी खजाने से लाखों की निकासी कर ली गई।
“दुना तालाब” योजना – एक ही तालाब, दो बार भुगतान
नसीम आलम ने बताया कि पहले से मौजूद एक खुदे हुए तालाब को “दुना तालाब” के नाम से दोबारा योजना में दिखाया गया और उसी पर फिर से निर्माण कार्य दिखाकर फर्जी रूप से योजना की राशि निकाली गई। उन्होंने इस आशय की शिकायत 15 जून 2025 को पंचायत की मुखिया और समिति सदस्य को सौंपते हुए वर्ष 2023-25 तक की सभी योजनाओं का विवरण मांगा था, लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला, उल्टे उन्हें समाजसेवा से दूर रहने की धमकी दी गई।
ज़मीन से मिट्टी निकालकर बोर्ड लगा दिया!
उपसरपंच का आरोप है कि दिघलबैंक प्रखंड के बांसबाड़ी गांव में नदी किनारे स्व. सहा आलम की जमीन से 12 फीट मिट्टी निकालकर उसका उपयोग किया गया, और बाद में मनरेगा योजना का बोर्ड लगाकर गड्ढों को सरकारी कार्य बताकर राशि की निकासी कर ली गई।
जॉब कार्डधारी मजदूरों की गवाही: “हमने कोई काम नहीं किया”
मनरेगा योजना में मजदूरी के नाम पर किए गए भुगतान की सच्चाई तब सामने आई जब तमन्ना बेगम, नीमा खातून, रहमानी बेगम, गुलाबी परवीन और सीमा परवीन ने शपथ पत्र देकर बताया कि उन्होंने कोई कार्य नहीं किया, लेकिन फिर भी उनके खातों में मजदूरी का भुगतान कर दिया गया।
फर्जी फोटो, फर्जी मजदूर – जिला तक मिलीभगत?
सबसे गंभीर आरोप यह है कि मनरेगा पोर्टल पर अपलोड की गई मजदूरों की तस्वीरों में कई छात्र-छात्राओं की फोटो लगाई गई हैं, जो कभी भी काम पर नहीं गए। जब ये फोटो पंचायत के पीओ द्वारा जिला कार्यालय भेजे गए, तो जिला स्तर पर बिना जांच के ही अनुमोदन (अप्रूवल) दे दिया गया। यह पूरी प्रक्रिया जिला प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल खड़े करती है।
प्रशासन की चुप्पी या संरक्षण?
उपसरपंच ने इस पूरे मामले की शिकायत डीडीसी किशनगंज के साथ-साथ बिहार के विकास मंत्री, जिलाधिकारी किशनगंज और मुख्यमंत्री को भी भेजी है। अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह घोटाला कुछ अफसरों और प्रतिनिधियों की मिलीभगत से हुआ? और क्या प्रशासन इन गंभीर आरोपों की निष्पक्ष जांच करेगा?
गौर करे कि मनरेगा योजना ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सुनिश्चित करने की एक आधारशिला है। यदि इसी योजना में फर्जीवाड़ा, फर्जी मजदूर और कागजी खेल के जरिए धन की लूट होती रही, तो ग्रामीण विकास का सपना सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाएगा। अब देखना यह है कि जिला प्रशासन इस मामले पर कितनी गंभीरता से कार्रवाई करता है। क्या दोषियों के खिलाफ होगी कोई ठोस कार्रवाई? या यह मामला भी सिर्फ कागजों में सिमट कर रह जाएगा?