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अब कोई भी राजनेता तानाशाह बनने और देश में इमरजेंसी लगाने की हिम्मत नहीं कर सकता- सुशील मोदी

आपातकाल हटने की 44 वीं वर्षगांठ पर कहा

त्रिलोकी नाथ प्रसाद इमरजेंसी हटने (21 मार्च,1977) की 44 वीं वर्षगांठ पर अपने बयान में पूर्व उपमुख्यमंत्री व राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि इमरजेंसी भारतीय लोकतंत्र पर लगा एक ऐसा बदनुमा दाग है कि अब कोई भी राजनेता तानाशाह बनने और फिर से देश में आपातकाल लगाने की हिम्मत नहीं कर सकता है।

श्री मोदी ने कहा कि 46 साल पहले 25 जून, 1975 की आधी रात को इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल की घोषणा की गई, जो 21 मार्च 1977 तक लगी रही। स्वतंत्र भारत के इतिहास में वह सबसे काला दिन था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे। पूरे देश को जेलखाने में तब्दील कर दिया गया था। तमाम नागरिक अधिकारों को निरस्त कर राजनीतिक कार्यकर्ताओं से लेकर सरकार के खिलाफ मुंह खोलने वाले आम नागरिकों तक पर जुल्म ढाये गए। जेपी से लेकर अटल, आडवाणी और सभी बड़े विपक्षी नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया था।

उन्होंने कहा कि आपातकाल के पीछे कई वजहें बताई जाती है, जिसमें सबसे अहम है 12 जून 1975 को इलाहबाद हाईकोर्ट की ओर से इंदिरा गांधी के खिलाफ दिया गया फैसला। उस दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रायबरेली के चुनाव अभियान में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का दोषी पाया था और उनके चुनाव को खारिज कर उनके छह साल तक चुनाव लड़ने और किसी भी तरह के पद संभालने पर रोक भी लगा दी थी।

इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ जेपी के नेतृत्व में लड़ाई निर्णायक मुकाम तक पहुंची और 21 मार्च,1977 को देश से इमरजेंसी हटाई गई। जनता के प्रतिरोध के कारण इंदिरा को सिंहासन छोड़ना पड़ा। 1977 के चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हारी, इंदिरा खुद रायबरेली से चुनाव हार गईं। आजादी के तीस साल बाद देश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ। देश के लोगों में लोकतंत्र के प्रति विश्वास जगा कि बड़े से बड़े तानाशाह के खिलाफ भी शान्तिपूर्ण तरीके से सत्ता परिवर्तन हो सकता है।

बिहार सरकार ने 2009-10 से जेपी सेनानी सम्मान योजना के तहत 2678 सेनानियों को पेंशन देना शुरू की है। 2019-20 तक 169 करोड़ का भुगतान किया गया है। जेपी सेनानियों के पेंशन पर प्रति वर्ष करीब 25 करोड़ रुपये खर्च किये जाते है।

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