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किशनगंज : नवरात्रि के सातवें दिन महाकाल मंदिर में हुई मां कालरात्रि की पूजा अर्चना

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥ वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।किशनगंज, 15 अप्रैल (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, चैत्र नवरात्रि का सातवां दिन है जो माता कालरात्रि को समर्पित किया गया है। ये दिन चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भक्त मां के आशीर्वाद के लिए उपवास रखकर मां कालरात्रि की विधि-विधान से पूजा करते हैं। सोमवार को महाकाल मंदिर के पुरोहित गुरु साकेत ने बताया कि देवी कालरात्रि की पूजा करने से उपासक को कई आशीर्वाद और सिद्धियां प्राप्त होती हैं। मां दुर्गा का ये रूप दुष्टों का विनाश करने के लिए जाना जाता है। गुरू साकेत ने बताया कि मां दुर्गा के स्वरूप कालरात्रि ने असुरों का वध करने के लिए रूप लिया था। मां कालरात्रि को लेकर यह भी मान्यता है कि इनकी पूजा करने से भूत-प्रेत या बुरी शक्ति का डर नहीं सताता है। मां कालरात्रि के इस स्वरूप की बात करें तो कालिका का अवतार यानि काले रंग का है और अपने विशाल केश चारों दिशाओं में फैलाती हैं। चार भुजा वाली मां, जो वर्ण और वेश में अर्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं। माता के तीन नेत्र हैं और उनकी आंखों से अग्नि की वर्षा भी होती है। मां का दाहिना ऊपर उठा हाथ वर मुद्रा में है तो नीचे दाहिना वाला अभय मुद्रा में। बाएं वाले हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खड्ग तलवार सुशोभित है। इनकी सवारी गर्दभ यानि गधा है, जो समस्त जीव जंतुओं में सबसे ज्यादा मेहनती और निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि को लेकर इस संसार में विचरण कर रहा है। गुरु साकेत ने बताया कि रक्तबीज नामक राक्षस के वध करने के लिए मां ने ऐसा रूप रखा था। गुरु साकेत कहते है मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना करने से साधक को सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। तंत्र-मंत्र के साधक मां कालरात्रि की विशेष रूप से पूजा करते हैं। साथ ही मां कालरात्रि की आराधना करने से व्यक्ति को भय से मुक्ति मिलती है। उन्होंने बताया कि मां कालरात्रि साधक की अकाल मृत्यु से रक्षा करती है।नवरात्रि की सप्तमी के दिन मां की पूजा अन्य दिनों की तरह ही कर सकते हैं लेकिन मां कालरात्रि की पूजा करने के लिए सबसे उपर्युक्त समय रात्रि का माना जाता है। मां कालरात्रि की पूजा करने के लिए पूजा करने वाले स्थान को अच्छे से साफ करें। पूजा स्थल को स्वच्छ करने के साथ खुद भी साफ सुथरे कपड़े पहनें। इस दिन लाल कपड़े पहने तो बेहतर होगा। इसके बाद पूजा स्थल पर लाल कपड़ा बिछाकर मां कालरात्रि की तस्वीर या मूर्ति को स्थापित करें। माता की विधि-विधान से पूजा करने के बाद मां को रातरानी के फूल चढ़ाएं। मां कालरात्रि को तिल या सरसों के तेल की अखंड ज्योति जलाएं। मां कालरात्रि को खुश करने के लिए दुर्गा चालीसा का पाठ करें। पूजा करने के बाद भोग चढ़ाने के लिए गुड़ अर्पित करें। भोग लगाने के बाद मां की कपूर या दीपक से आरती उतारें। इसके साथ ही लाल चंदन की माला से माता के मंत्रों का जाप करें।

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